कीनिया : समृद्ध विरासत का देश

गिरिजा पाठक

अफ्रीकी महाद्वीप में बसे देशों में कीनिया अपने पड़ोसी देशों से तुलनात्मक रूप में ज्यादा समृद्ध है। यहाँ का भूगोल और समाज हमारे देश के किसी न किसी हिस्से से मेल खाता दिखता है। समाज का बड़ा हिस्सा मेहनतकश और गरीब है। कीनिया और इसके आस-पास बसे तंजानिया तथा युगांडा प्राकृतिक रूप से ज्यादा समृद्घ देश हैं लेकिन इन देशों की तुलना में कीनिया ने अपनी प्राकृतिक संपदा का देश के विकास में बेहतर उपयोग किया है। उसके कुल राजस्व का दूसरा बड़ा स्रोत पर्यटन है।

देश में चल रहे विकास का मॉडल कमोबेश तीसरी दुनिया के देशों की तर्ज पर बाजारोन्मुख ही है। विश्व बैंक और विभिन्न देशों के कर्ज से यहाँ विकास कार्य चल रहे हैं। सड़क और रेलवे में सबसे ज्यादा पूंजी-निवेश चीन ने किया है। होटल, मॉल और पर्यटन व्यवसाय में वहाँ बसे अनिवासी भारतीयों की अच्छी-खासी संख्या है।

कीनिया की राजधानी नैरोबी की बसावट और आबोहवा हमारे किसी पहाड़ी इलाके की तरह ही है। पुराना बाजार आमतौर पर आठ- दस छोटे कमरों के एक समूह में है। अधिकांश दीवारों में लोहे की मोटी ग्रिल लगी है। किराना-कपड़ा या किसी भी तरह की दुकान हो, यह ग्रिल दिखाई देती है, जिसके अंदर दुकानदार कैद रहता है और बाहर ग्राहक मिलाई करने वाले किसी संबंधी की तरह उससे सौदा लेता नजर आता है। जानकारी लेने पर पता चला कि यह सुरक्षा के लिए है। क्यों? अक्सर लूट, छीना-झपटी की घटनाएँ होती रहती हैं। एशियाइयों में यह बात खासतौर पर प्रचारित है कि शाम के बाद पैदल घर से बाहर नहीं निकलना है। यहाँ तक कि अपने घरों में भी वे हर समय अंदर से बाहरी ग्रिल वाले दरवाजे और अंदर के दरवाजों को तालों से बंद रखते हैं। विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप बने हैं जो एक-दूसरे को सूचनाएँ देते हैं। ऐसा ही एक संदेश मेरे साथी जीवन के मोबाइल में भी आता है कि चार-पाँच स्थानीय नौजवानों का ग्रुप सरकारी कर्मचारियों के नाम पर सोसाइटी में विभिन्न जानकारियां लेने के बहाने घरों में घुसकर लूटपाट कर रहा है। लगा कि क्या अपना देश, क्या कीनिया सभी जगह स्थितियाँ एक सी ही हैं।
(Kiniya : country of rich heritage)

नैरोबी से घूमने मसाईमारा की ओर जाना है। जैसे-जैसे हम मसाईमारा नेशनल रिजर्व के पास पहुँचते हैं, सड़क के दोनों ओर मसाई जनजाति की छिटपुट आबादी दिखनी आरंभ होती है। मसाई अपना घर घास और लकड़ी से बने एक बड़े घेरे के अंदर मिट्टी के छोटे-छोटे आठ-दस घरों के समूहों के रूप में बनाते हैं। छिटपुट पक्के रंगरोगन वाले मकान भी हैं जो उन र्चुंनदा मसाइयों के हैं जिन्होंने कुछ पूँजी बना ली है। गाय का यहाँ की आर्थिक में महत्वपूर्ण स्थान है। इसे हर तरह से उपयोग में लाया जाता है। इसलिए सभी मसाइयों के पास दर्जनों की संख्या में गायें होती हैं, इनके बीच आपस में वैवाहिक संबंध भी तभी पूर्ण होते हैं, जब लड़का (पति) होने वाली पत्नी को 40-50 गाय देने में सक्षम होता है। सड़क नेशनल पार्क के गेट पर जाकर समाप्त हो जाती है। यहाँ पर मसाई महिलाओं का एक समूह लकड़ी से बनी सजावटी चीजों को बेच रहा है। मसाईमारा अपने समृद्ध प्राकृतिक जीवन के लिए प्रसिद्घ होने के साथ ही मसाई जनजाति की समृद्ध संस्कृति के लिए भी जाना जाता है।

नैरोबी से जब सुबह-सुबह 6 बजे रवाना हो रहे थे तो जीवन ने बताया कि बारिश का मौसम न होने के बावजूद इस बीच काफी बारिश हुई है। आज की सुबह भी बारिश से भीगी हुई सड़कें, पेड़-आंगन धुले-धुले नजर आ रहे थे। बारिश थमी थी। मैं अपनी गाड़ी से अगल-बगल के फुटपाथों को आश्चर्य से देख रहा था, जहां तड़के लोग बड़ी संख्या में तैयार होकर काम पर निकल चुके थे। फुटपाथ, पैदल चलने वालों से भरे हुए थे। पता चला कि यहाँ अफिस और काम का समय 8.30 से 4.30 है और अधिकांश लोग अपने कार्यस्थलों के लिए पैदल ही जाते हैं। पैदल यात्रियों में महिलाओं की अच्छी खासी तादाद है।
(Kiniya : country of rich heritage)

यहाँ की आर्थिकी में महिला की प्रमुख भूमिका है और समाज के भीतर संबंध बराबरी पर आधारित। यह फुटपाथ पर चलते, दुकानों- रेस्तराओं- अफिस- घर सब जगह दिखाई देता था। इसके मूल में आदिवासी समाज का होना है। समाज में आर्थिकी रूप से समृद्धि के कुछ छोटे-छोटे टापू हैं लेकिन अधिकांश समाज विपन्न हालत में ही है। बावजूद इसके, समाज में लोगों, विशेषकर महिलाओं को सक्रियता के साथ जीवन जीने की जद्दोजहद करते देखना अच्छा लगता है। व्यवसाय और नौकरियों में महिलाएँ काम करती दिखती हैं। वैश्वीकरण के बाद भारत में भी महिलाएं अच्छी तादाद में काम की तलाश में घर से निकली हैं लेकिन कीनिया  में यह परिदृश्य इस मामले में इतर लगता है कि यहां पर सभी उम्र की महिलाएँ काम करती दिखती हैं, साथ ही महिलाओं के प्रति एक खास संस्कृति यहाँ दिखती है जिसमें महिला बराबरी और सम्मान के साथ काम करती है। यह परिदृश्य काम के स्तर पर ही नहीं हर स्तर पर दिखता है।

भारत का बंद समाज और रोज ब रोज महिलाओं के प्रति होने वाली बर्बर्र हिंसा मुझे इस परिदृश्य के प्रति सहज ही आर्किषत कर रही थी। यह अवश्य पढ़ते थे कि विकसित देशों में पुरुष सत्तात्मक समाज के होते हुए भी महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव आया है, लेकिन एक गरीब- अविकसित और आर्थिक रूप से पिछड़े समाज में सामाजिक स्तर पर भी इन बीमारियों को दूर रखा जा सकता है, केन्या को देखने से समझा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि यहाँ पर महिला विभिन्न तरह की कठिनाइयों से नहीं घिरी होगी, लेकिन उससे निकलने की जद्दोजहद में उसके सामने सामाजिक- सांस्कृतिक रुकावटों का रूप उदार नजर आता है। सड़क पर एक छोटा सा मेजनुमा रैक लगाए वह बैठी दिखेगी तो दुकानों में सामान बेचती भी नजर आती है, सुबह-सुबह काम पर निकलने वालों की भारी तादाद में महिलाओं की अच्छी खासी संख्या आर्थिकी में उनके योगदान को बता रही होती है। यात्रा के दरमियान सड़क के किनारों, छोटे-छोटे कस्बों, ठहरने के स्थानों, यात्रा के स्थानों- बस, ट्रेन में वह अपनी आत्मविश्वास पूर्ण उपस्थिति दर्ज कराती नजर आती है। काम के प्रति हर स्तर पर सम्मान केन्याई समाज की एक और विशेषता है। महिलाएँ, चाहे किसी भी स्तर के काम में लगी हों हर स्तर के अधिकारी-कर्मचारी के साथ समान स्तर पर व्यवहार करती हैं और उसके प्रति भी उसी सम्मान के साथ व्यवहार देखा जाता है।
(Kiniya : country of rich heritage)

लगभग 5 करोड़ की आबादी वाला केन्याई समाज जनजातीय समाज है। यहाँ कुल 44 जनजातियाँ हैं। इसमें माकोन्डे (तंजानिया मूल के) और एशियाई, जिसमें हिन्दू कम्युनिटी मुख्य है, को भी 43 और 44 वें जनजातीय समूह के रूप में मान्यता दी गई है। जनजातीय समाज की विशिष्टता ही समाज में महिलाओं की आत्मनिर्भर और मर्यादित स्थिति को बनाती है। महिलाओं के संदर्भ में अगर भारतीय समाज की तुलना केन्याई जनजातीय समाज से की जाय तो लगता है कि हम इस मामले में उनसे कोसों पीछे हैं। आज हमारे देश में जिस पैमाने पर हर स्तर पर महिला हिंसा और उसके रूप बढ़े हैं, वह आधुनिक समाज में स्तब्ध कर देने वाले हैं। कोई दिन नहीं छूटता जब मीडिया में बलात्कार, हत्या, अपहरण, की खबरें दर्ज न की जाती हों। किसी दूसरे समुदाय या जाति के साथ किसी युगल का स्वस्थ संबंध विकसित होना आज हमारा तथाकथित सभ्य समाज सहन नहीं कर पाता। रंग – जाति – मजहब के आधार पर चिन्हीकरण हमारे समाज की सामान्य परिघटना बन गई है, यह तब है जब हम विभिन्न आंकड़ों के माध्यम से विश्व के सबसे विकसित राष्ट्रों के साथ अपनी होड़ दिखाते नहीं थकते।

ऐसे परिदृश्य के बीच जब मैं केन्याई समाज को देखने लगता हूँ तो वहाँ के समाज का खुलापन, खासकर स्त्री-पुरुषों के बीच साहचर्य एक सुखद अहसास लगता है। दिल्ली में अगर कोई महिला/लड़की किसी अजनबी से कोई जानकारी भी लेना चाहे तो वह स्वाभाविक रूप से अपने आपको व्यक्त नहीं कर पाती, लेकिन इस देश में महिला को बेझिझक किसी अजनबी सहयात्री के साथ बोलते – ठहाका मारकर हँसते या फिर एक दूसरे की मदद करते देखते हैं तो सहज ही लगता है कि ऐसे स्वस्थ समाज से हम अभी कोसों दूर हैं। कीनिया के तटीय शहर मोम्बासा में रह रहे और यहाँ शिक्षा के महत्वपूर्ण केन्द्र आगा खान एकेडमी में पढ़ा रहे प्रशांत भूषण बताते हैं कि केन्याई समाज में महिलाओं और लड़कियों के प्रति बराबरी के स्तर पर व्यवहार होता है। महिलाओं के प्रति अपराधों का प्रतिशत काफी कम है। यहाँ महिला उत्पीड़न की दैनन्दिन घटनाएं काफी कम हैं। अफ्रीकी महाद्वीप ने अभी अपनी प्रकृति के साथ-साथ अपने मानवीय मूल्यों को सलामत रखा है। अभी भी वहां प्रकृति और मनुष्य का रिश्ता लूट का नहीं है। लेकिन विश्व में पूँजी बाजार और उपभोक्ता संस्कृति के भयावह हमलों के चलते यहाँ भी प्रकृति और सहज मानवीय जीवन और उसका एक दूसरे पर निर्भर वास्तविक रिश्ता कितने दिन चलेगा, पता नहीं। जिस तरह विश्व बैंक और विभिन्न देश वहाँ विकास के नाम पर बाजार – सड़कों – रेलवे के विस्तार के नाम पर कर्ज देकर निर्माण कार्यों में लगे हैं और इन सब के साथ बाजार अपने साथ जिस संस्कृति को लाता है, क्या इस सबके बावजूद प्रकृति और आम-जन  में बिना किसी भेद के एक स्वस्थ सामाजिक- सांस्कृतिक रिश्ता बना रह पायेगा़?
(Kiniya : country of rich heritage)

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