खिमुली : लघुकथा

रीता तिवारी

पहाड़ की जिन्दगी भी क्या अजीब होती है।

खिमुली से जब मैं मिली तो वह अपना जीवन लोगों की रजाई में ‘ताग’ देकर और गद्दे सिलकर चलाती थी।

खिमुली दलित वर्ग की है। अपने सारे कार्य स्वयं करती है। लड़के का अपना घर-परिवार है और लड़की की भी शादी हो गई है।

उसकी ग्यारह संतानों में से पाँच पुत्र तथा चार पुत्रियाँ पैदा होकर कोई तीन-चार माह, कोई तीन-चार साल के होकर मर गये। इतनी परेशानी के बाद यह बेटा और बेटी जीवित रहे।

वह भी इस कदर बेरहम निकलेंगे यह बूढ़ी माँ ने कभी नहीं सोचा होगा। वे पहले से भी गरीब ही थे। दोनों पति-पत्नी मिलकर खर्च चलाते थे, किन्तु आज लड़का-बहू उसे खर्च नहीं देते हैं और अपने साथ भी नहीं रखते हैं। अगर साथ रखते हैं तो घर का सारा काम करवाते हैं।

वह आज की तारीख में पचहत्तर वर्ष की होगी। पति की मृत्यु को तीन साल हो गये हैं, बहू और बेटा दोनों ही उससे बुरा व्यवहार करते हैं। वह दो वक्त की रोटी को भी तरसती है।

जब तक पति जीवित था तो वह उसे सुख से रखता था। वह दर्जी का काम कर घर का खर्च चलाता था। वह भी खर्च चलाने के लिए लोगों के घरों में काम करती और खेती-मजदूरी कर, गोड़ाई, निराई तथा घास काटती।

पहाड़ी जन-जीवन में आज भी कई महिलाएँ घास काटकर जीवन चलाती हैं। गाँव के घरों के निर्माण के लिए पत्थर, रेता, ईंट, ढोकर अपना जीवन निर्वाह करती हैं ।

यही उनकी रोजी-रोटी है। पुरुष हल जोतकर और दर्जी का काम कर रुपये कमाते हैं।

वह भी पत्थर ढोकर अपना खर्च चलाती थी। तब शरीर में थोड़ी ऊर्जा भी थी किन्तु आज वह शारीरिक रूप से दुर्बल तथा वृद्ध होने के कारण जीवन के ऐसे पड़ाव पर है कि उसका कोई सहारा होकर भी कोई सहारा नहीं है। आँसुओं के सिवा उसका कोई साथ नहीं देता।

कभी-कभी उस वृद्धा को खाने को भी नहीं मिलता है। तब भूखे रहकर या किसी के घर से मडुवे की रोटी व झंगुरा का भात माँगकर वह अपना पेट भरती है। अगर कभी उसकी तबियत खराब हो जाय तो उसे पानी देने वाला और देखने वाला भी कोई नहीं है।

जिन बच्चों के लिए दोनों पति-पत्नी दिन-रात मेहनत करते हैं, उन्हें पाल-पोस कर उनका विवाह कर देते हैं, वही आज उनके जीवित रह कर भी मृत के समान है। वृद्ध दम्पत्ति में एक की मृत्यु होने पर दूसरा जीवन साथी दुर्बल हो जाता है। पति-पत्नी का साथ ही साथ देता है। पर आज यह भी नहीं रहा।

अकेलेपन की साथी उसकी यादें ही हैं। कभी वह अपने अतीत की स्मृतियों में खो जाती है, जब वह नव विवाहिता बनकर आयी थी। अपने पति के संग बिताये वे पल उसे सदैव स्मरण रहते हैं। पति के न होने के कारण वह तन्हा हो गई है। इस स्थिति में वह अपने खाने-पीने, रहन-सहन और गरीबी से जूझती रहेगी।

जब तक वह जिन्दा है तब तक वह अपने आप को जीवित रखेगी। समाज में वृद्धों का बुरा हाल है। अगर वे पेंशन पाते हैं तो उनकी संतान रुपये पाने के लिए उन्हें सहारा देती है, नहीं तो उनका यही हाल होता है जो आज खिमुली का है। अगर उसे कुछ हो जाय या वह मर जाय तो शायद उस दिन उसके पुत्र और बहू को उसकी मृत्यु का समाचार कोई अन्य व्यक्ति बताये और वह फिर दाह-संस्कार करेंगे या कोई अन्य। यह तो वक्त ही बतायेगा कि क्या होगा उस खिमुली का अन्त?
(Khimuli Short Story)