क्या देश में लोकतंत्र है

हेमलता पंत

पार्टियाँ देखी बार-बर उम्मीदवार देखो अबकी बार। यह नारा था इस बार उत्तराखण्ड के विधानसभा चुनाव में कैण्ट, देहरादून विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी श्री अनूप नौटियाल का। नौटियाल जी के प्रचार के लिये उत्तराखण्ड के विभिन्न भागों से आये कार्यकर्ताओं की टीम में मैं भी शामिल थी।

हम सभी किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि से आये हुए लोग नहीं थे। हम सामान्य कार्यकर्ता थे जिन्हें अनूप जी पर विश्वास था कि यदि वे विजयी होते हैं तो कैंट, देहरादून में भ्रष्टाचार कम होगा और सकारात्मक बदलाव आयेगा।

हम सभी ने तीन-चार महीने मेहनत व लगन के साथ प्रचार-कार्य किया। अधिकतर कार्यकर्ता छ:-सात घंटे प्रचार करते थे जबकि हम महिलाएँ शाम को तीन-चार घंटे प्रचार के लिए निकलती थीं। इस कारण हमें कैंट, देहरादून की कई बस्तियों व मोहल्लों को देखने और वहाँ रहने वाले लोगों की समस्याओं को सुनने व समझने का अवसर मिला। हम लोग प्रेमनगर, गढ़ी कैण्ट, काँवली गाँव, बसन्त बिहार, इन्दिरा नगर, मोहित नगर, आशीर्वाद एन्क्लेव, बाजावाला गाँव, जी.एम.एस. रोड, विजय पार्क आदि विभिन्न क्षेत्रों में प्रचारार्थ गये। अधिकतर लोग भाजपा व कांग्रेस दोनों ही पार्टियों से असन्तुष्ट थे। कई लोग भाजपा से असन्तुष्ट थे पर मोदी जी पर उन्हें विश्वास था। कुछ लोग कांग्रेस समर्थक भी मिले। शास्त्री नगर, गाँधी आश्रम, संगम बिहार, वाल्मीकी बस्ती जैसे पिछड़े इलाकों में भी हमने कई दिन प्रचार किया। यहाँ लोगों को सरकार से बहुत शिकायतें थीं। उनकी समस्याओं को सुनने वाला कोई न था। यहाँ की प्रमुख समस्याएँ गन्दी नालियाँ, टूटी सड़कें व कूड़े का ढेर थीं। बरसात में घरों में पानी भर जाता था। कूड़ा उठाने बस्ती में कोई न आता था। नालियाँ बन्द थीं और गन्दगी से भरी थीं। इतनी दुर्गन्ध थी कि वहाँ पर देर तक खड़े रहना मुश्किल प्रतीत हो रहा था और बस्ती के लोग वहाँ रह रहे थे। यह देखकर अत्यन्त दु:ख हुआ। सरकार जनता की छोटी-छोटी समस्याओं का निराकरण नहीं कर सकती, शिक्षा व बेरोजगारी जैसी समस्याओं को क्या दूर करेगी! बस्तियों में कुछ बच्चे तो स्कूल भी नहीं जाते थे। उनके माता-पिता सुबह मजदूरी पर निकल जाते और वे दिनभर इधर-उधर घूमते रहते। एक कमरे में 4-5 लोग रह रहे थे। बच्चों की संख्या कुछ ज्यादा ही थी। एक वृद्धा हमें अपने घर ले गई। उसके घर के ऊपर ढंग से छत भी न थी। हम क्या कहते। यहाँ तो सभी लोग समस्याओं से ग्रस्त थे। कहा नौटियाल जी जीतेंगे तो अवश्य कुछ करेंगे।
(Is there democracy in the country)

हमारे लिए यह प्रचार-कार्य से अधिक एक जन-जागरण अभियान था। हम मिलकर जन-गीत गाते थे। ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के 2. ये कैसी राजधानी है 3. लड़ना है भाई ये तो लम्बी लड़ाई है 4. हिमालय पुकारता एक हो के हम चलें आदि। हम भ्रष्टाचार के विरुद्ध जोर-जोर से नारे लगाते थे, लोगों को चुनाव का महत्व समझाते थे। उनकी समस्याएँ सुनते और नोट कर लेते। हमारे एक साथी संजीव शर्मा जी ने इसी दौरान कई विधवाओं को पेंशन दिलवाने का कार्य किया, कई लोगों के वोटर काडर््स बनवाये। कई जगह कार्यकर्ताओं ने मिलकर मैदानों से गन्दगी साफ की। हाई टेंशन तारों व कूड़े के ढेरों को हटाने के लिए लोगों के साथ मिलकर धरने दिए। लोग धीरे-धीरे हम पर विश्वास करने लगे थे। वे ध्यानपूर्वक हमारी बातें सुनते और हमें अपनी समस्याएँ सुनाते थे। हमारा कहना था कि बड़ी-बड़ी पार्टियों ने उत्तराखण्ड को, देहरादून को या बस्ती को क्या दिया? आप लोगों को अनूप नौटियाल जी जैसे कर्मठ, योग्य व ईमानदार व्यक्ति को अपना अमूल्य वोट देना चाहिए। अधिकांशत: लोग हमारी बातों से सहमत थे। बढ़ती हुई महंगाई और जनसमस्याओं की उपेक्षा के कारण वे सरकार से नाराज थे। एक महिला ने कहा- ‘हमारी बस्ती में एक स्कूल खुलवा दो। हम बच्चों को दूर-दूर नहीं भेज सकते और महंगे स्कूलों में पढ़ाने की हमारी हैसियत नहीं है।’

बसन्त विहार जैसी सम्भ्रान्त लोगों की कालोनियों में भी हम प्रचार के लिए गये। पर वहाँ बड़ी-बड़ी कोठियाँ ज्यादा व लोगों के दर्शन कम होते थे। लोगों को हमारी बात सुनने का समय न था। हाँ, इन्दिरानगर में जब वोटर-स्लिप बनाकर हम घर-घर बाँटने लगे तो लोगों ने प्रेमपूर्वक हमारी बातें सुनीं। हमें भरोसा होने लगा था कि नौटियाल जी चुनाव में अवश्य विजयी होंगे। कई लोगों ने अपने-अपने क्षेत्रों में बैठक रखने का प्रस्ताव भी दिया। इस तरह कई जगह पार्कों में या लोगों के घरों में छोटी-छोटी बैठकें रखी गयीं, जो सफल हुईं। लोग हमारी हरी जैकिट व टोपी से हमें पहचानने लगे थे। वे कहते- ‘हमें भी जैकिट दो’। हम कहते- ‘प्रचार के लिए साथ चलो’। धीरे-धीरे कई लोग हमसे जुड़ने लगे और हमारी संख्या बढ़ने लगी। लोग हमें सहयोग देने लगे। अपने घरों, दुकानों में सहर्ष बैनर, पोस्टर लगाने की अनुमति देते। हम बिना पूछे कहीं पर भी पोस्टर नहीं लगाते थे। 3 फरवरी को नौटियाल जी को ‘सीटी’ चुनाव चिह्न मिला अब कार्यकर्ता सीटी बजाते और नारे लगाते- ‘सीटी बजाओ जोरों से, कैंट बचाओ चोरों से’। पैसों व शराब में अपना वोट न बेचने के लिए नारा लगाते- ‘जो दारू-मुर्गा खायेगा, वो पाँच साल पछतायेगा’। छोटे-छोटे बच्चे भी हमारे साथ यह नारा लगाया करते। हमने बच्चों को सीटियाँ बाँटी। वे हमें देखकर कहते- ‘हमें सीटी चाहिए’। ‘पार्टियाँ देखीं बार-बार’ नारा तो लोगों की जुबान पर चढ़ गया था।

चुनाव का समय समीप आ रहा था। अब हम ‘रोड शो’ के लिए निकलते। कई जगह लगा कि हवा कुछ बदल रही है। शायद बड़ी-बड़ी पार्टियों की कृपा गरीबों पर हो रही थी। कहीं-कहीं सड़कें भी बन गयीं थीं। खैर हमें अपने सत्प्रयासों पर विश्वास था कि जनता अवश्य ही हमारा साथ देगी। इस प्रकार यह चुनाव-प्रचार कार्य हमारे लिए अत्यन्त ही रोचक एवं उत्साहवर्धक रहा। परिणाम जो भी हों, वे सभी को स्वीकार्य होंगे क्योंकि लोकतंत्र में जनता का मत ही सर्वोपरि है।

कई बार मन में प्रश्न उठते हैं कि क्या भारत में लोकतंत्र है। यदि है तो अधिकांश जनता अशिक्षित और निर्धन क्यों है? देश के नेता भ्रष्ट क्यों है? यदि सरकार लोगों को रोजगार नहीं दे सकती, बच्चों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं कर सकती, स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान नहीं कर सकती, सफाई व पानी उपलब्ध नहीं करा सकती तो उसकी क्या आवश्यकता है?
((Is there democracy in the country)