लड़कियाँ सक्षम हैं

मधु जोशी

विशाखापत्तनम में तैनात नौसेना अधिकारी लैफ्टेनेन्ट पी़ स्वाति नेवल पार्क के जिस रिहायशी इलाके में आज रहती हैं वहीं कभी उनकी माँ श्रीमती रानी अधिकारियों के आवासों में घरेलू कामों में सहायता करती थीं। इन्हीं लैफ्टेनेन्ट स्वाति का चयन फरवरी 2017 में उन छह महिला नौसैनिक अधिकारियों के दल के लिए किया गया जो सितम्बर 2017 में पाल नौका आई़ एऩ एस़ वी़ तारिणी में सवार होकर सागर परिक्रमा के लिए गयी हैं। यह अभियान 10  सितम्बर 2017 को आरम्भ होकर लगभग सात माह तक लगातार चलेगा।

इस साहसिक अभियान की विस्तृत चर्चा करने से पहले लै स्वाति के जीवन पर नज़र डालना अप्रासंगिक नहीं होगा क्योंकि उनका अपना जीवन भी अत्यन्त प्रेरणादायक है। लै स्वाति की माँ श्रीमती रानी विशाखापत्तनम में नौसैनिक अधिकारियों के रिहायशी इलाके नेवल पार्क में अधिकारियों के घरों में घरेलू कामकाज में सहायता करती थीं और उनके पिता श्री आदिनारायणा नेवल डॉकयार्ड की कैण्टीन में कार्यरत थे। माता-पिता के जीवन का प्रमुख उद्देश्य था कि वह अपनी तीनों बेटियों लावण्या, सुवर्णा और स्वाति को अच्छी से अच्छी शिक्षा देकर उनका भविष्य संवार सकें।

इसी उद्देश्य को सर्वोपरि मानते हुए लै स्वाति की माँ ने एक अत्यन्त दूर दृष्टिपूर्ण फैसला किया। यद्यपि नेवल पार्क के जिस इलाके में वह सपरिवार रहती थीं, वहाँ अधिकांश मूलभूत सुविधाएँ निशुल्क थीं, उन्होंने उस नौसैनिक इलाके से बाहर निकलकर मलकापुरम में किराए के मकान में रहना आरम्भ कर दिया। ऐसा उन्होंने इसलिए किया ताकि माहौल से प्रभावित होकर भविष्य में कहीं उनकी बेटियाँ उनके व्यवसाय को अपना न लें। उसके बाद जब लड़कियाँ बड़ी होने लगीं और लोगों ने उनकी शादियाँ करने का सुझाव दिया तब भी उन्होंने जवाब दिया कि उनकी रुचि सिर्फ़ अपनी बेटियों को शिक्षित करने और स्वतंत्र बनाने में है।

लै स्वाति ने बालवाड़ी केन्द्र से शिक्षा प्रारम्भ की। फिर इन्होंने हिन्दुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा संचालित आदित्य कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की। नौसेना में अधिकारी के पद पर नियुक्ति के उपरान्त जब लै स्वाति को नेवल पार्क के बालवाड़ी केन्द्र में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया तो उन्होंने पाया कि वहाँ कुछ बच्चे ऐसे भी थे जिनकी माँए उनकी सहपाठी रही थी। उनमें से अधिकांश महिलाएँ नेवल पार्क में ही घरेलू कामकाज कर रही थीं। स्पष्टत: लै़ स्वाति की माँ द्वारा नेवल पार्क छोड़कर जाने के दूरदृष्टिपूर्ण निर्णय ने उन्हें वह अवसर प्रदान किये जो उनकी अन्य सहपाठियों को नहीं मिल पाये। उल्लेखनीय है कि लै स्वाति की दोनों बड़ी बहनें भी अपने-अपने व्यवसायों में सफलतापूर्वक कार्यरत हैं।
(INSV Tarini and Lt. Swati)

लै स्वाति की माँ ने उन्हें आरम्भ से ही नौसैनिक पाल नौका (यॉट) क्लब में पाल नौकायन सीखने को प्रोत्साहित किया। उन्हें लगता था कि चूँकि यह सामान्य जनता के लिए अत्यन्त महंगा खेल है और उनकी बेटी को इसमें भाग लेने का अवसर मिल रहा है, अत: उसे इस मौके का पूरा लाभ उठाना चाहिये। बारह वर्ष की आयु से एऩ सी़ सी़  कैडेट के रूप में लै स्वाति इसमें भाग लेने लगी थीं।

लै स्वाति के पिता ने बचपन में ही उन्हें सुझाव दिया था कि उन्हें नौसेना में भर्ती होने का प्रयास करना चाहिए। यद्यपि वह स्नातक होने तक भली-भाँति अंग्रेजी नहीं बोल पाती थीं, सर्विस सैलेक्शेन बोर्ड (एस़ एस़ बी़) द्वारा साक्षात्कार के दौरान उनसे कहा गया, ‘‘सहज रहो। चिन्ता मत करो। हम यहाँ तुम्हारा अंग्रेजी ज्ञान नहीं परख रहे हैं।’’ साढ़े बीस साल की आयु में लै स्वाति ने प्रथम प्रयास में ही नौसेना अधिकारी भर्ती परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। आज उन्हें नौसेना में कार्य करते हुए छह वर्ष हो गये हैं, जिनमें से दो वर्ष से अधिक समय तक वह वायु परिवहन नियंत्रण (ए़ टी़ सी़) शाखा में कार्यरत रहीं।

अपने माता-पिता से सदा प्रोत्साहन मिलने के अलावा लै स्वाति को अपने पति और सास़-ससुर से भी सहयोग मिला है। गत वर्ष उनका विवाह बिहार के एक नौसैनिक कमाण्डो से हुआ। उक्त अधिकारी ने लै स्वाति के विषय में नौसेना की एक पत्रिका में पढ़कर उनसे सम्पर्क किया और कुछ समय बाद दोनों ने विवाह कर लिया। लै स्वाति के पति पूरी तरह से उनका साथ तो निभाते ही हैं, उन्होंने अपने माता-पिता को भी इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि वह अपनी बहू को सागर परिक्रमा का उसका सपना जी लेने दें।

जनवरी 2017 में लै़ स्वाति ने एक अन्य महिला अधिकारी लै पायल गुप्ता और चार पुरुष अधिकारियों के साथ केप टू रियो रेस में भाग लिया था। इस प्रतियोगिता में वह हल्की नौका आई़ एऩ एस़ वी़ महादेई में सवार थीं। रेस में बीस देशों के प्रतिभातियों ने भाग लिया और भारतीय नौसैनिक दल ने इसे बीस दिनों में पूरा किया। ऐसा करके वह सबसे कम समय में अटलांटिक महासागर पार करने वाले भारतीय बने। इससे पूर्व इस अटलांटिकपार दौड़ को भारतीय नौसेना के कैप्टेन (से नि) दिलीप दोण्डे ने इकतीस दिनों में पूरा किया था। महादेई नौका में ही कैप्टेन (से़ नि़) दिलीप दोण्डे ने अकेले सागर परिक्रमा की थी और इसी में कमाण्डर अभिलाष टोमी ने अकेले, अविराम, बिना सहायता सागर परिक्रमा की थी।

अब लै स्वाति का चयन सागर परिक्रमा करने वाले नौसेना के सर्वमहिला दल के लिए हुआ है। इनके अलावा दल की अन्य सदस्य हैं लैफ्टेनेन्ट कमाण्डर र्वितका जोशी, लै. कमाण्डर प्रतिभा जामवाल, लै बी़ ऐश्वर्या, लै़ पायल गुप्ता और लै विजया देवी। इस अभियान का नेतृत्व उत्तराखण्ड मूल की लै. कमाण्डर वर्तिका जोशी करेंगी। इन्हीं के नेतृत्व में इस महिला दल ने गोवा से मॉरिशस और केपटाउन तक की समुद्री यात्राएँ की थीं।
(INSV Tarini and Lt. Swati)

अपनी नाविक कला को तराशने और परखने के उद्देश्य से इस दल ने अनुभवी नाविक कैप्टेन (से नि) दिलीप दोण्डे के मार्गदर्शन में सागर परिक्रमा के लिए तैयारी की है। उन्हें आरम्भ से ही नौ परिवहन, संचार व्यवस्था, मौसम विज्ञान, नाविक विद्या, सैटेलाइट सिग्नलों के अनुरूप  कार्य करना, विपरीत मौसम का सामना करना आदि का प्रशिक्षण दिया गया है। इसके अलावा उन्हें शारीरिक ही नहीं, मानसिक और भावनात्मक रूप से इतना मजबूत बनाया गया है कि वे विषम परिस्थितियों में भी न घबरायें और न ही हिम्मत हारें। लै़ कमाण्डर वर्तिका जोशी के अनुसार उनका प्रमुख उद्देश्य दुनिया को यह सन्देश देना है कि Girls Can (लड़कियां सक्षम हैं)।

निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ये महिलाएँ 10 सितम्बर 2017 को गोवा से यात्रा प्रारम्भ कर लगभग सात माह तक समुद्री यात्रा करेंगी। इस दौरान ये ऑस्ट्रेलिया में प्रीमैन्टल, न्यूज़ीलैण्ड में लिटिलटन, दक्षिण अमेरिका में फॉकलैण्ड और दक्षिण अफ्रीका में केप टाउन होते हुए वापिस गोवा लौटेंगी। इस यात्रा के दौरान ये अधिकारी अधिकांश समय समुद्र में ही बितायेंगी और उपर्युक्त बंदरगाहों पर रसद तथा अन्य आवश्यक सामग्रियों के भण्डारण और उपकरणों के रखरखाव हेतु पड़ाव डालेंगी। 10 सितम्बर 2017 को गोवा से यात्रा प्रारम्भ करके ये 25 सितम्बर 2017 को भूमध्य रेखा पार कर दक्षिणी गोलार्ध में पहुँचीं। इसके उपरान्त हिन्द महासागर में दक्षिण पूर्वी व्यापारिक हवाओं के निर्बाध थपेड़ों से जूझते हुए इन्होंने 6 अक्टूबर 2017 को मकर रेखा पार की। अगले छह माह यह उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के दक्षिण में यात्रा करेंगी। 23 अक्टूबर 2017 को 43  दिनों तथा लगभग 5450 नौटिकल मील की यात्रा करके ये ऑस्ट्रेलिया में प्रीमैन्टल पहुँचीं। इस बंदरगाह पर इन्होंने रसद तथा अन्य आवश्यक सामग्रियों के भण्डारण और उपकरणों के रखरखाव हेतु पड़ाव डाला। 5 नवम्बर 2017 को ये ऑस्ट्रेलिया में प्रीमैन्टल से न्यूज़ीलैण्ड में लिटिलटन के लिए रवाना हुईं। 19 नवम्बर को 3500 नौटिकल मील का सफर तय कर यात्रा का दूसरा चरण पूरा किया। लिटिलटन में इन यात्रियों का माओरी आदिवासी समाज द्वारा पारम्परिक स्वागत किया गया। 

नाविका सागर परिक्रमा नामक यह समुद्री परिभ्रमण भारतीय नौसेना में फरवरी में प्रविष्ट आई़ एन.एस़.वी. तारिणी द्वारा किया जायेगा। इस नौका का जलावतरण गोवा में किया गया था और इसका निर्माण गोवा स्थित उसी अक्वैरियस शिपयार्ड ने किया है जिसने महादेई का निर्माण किया था। तारिणी महादेई से अधिक विकसित और उद्दिनांकित है। यहाँ इस तथ्य का उल्लेख प्रासंगिक है कि इस नौका का नामकरण ओडिशा की तारातारिणी देवी के ऊपर किया गया है, अत: यह शब्द मातृशक्ति का प्रतीक है। संस्कृत में तारिणी का अर्थ नौका एवं उद्धारक दोनों ही है। तारातारिणी (मंदिर) विकास बोर्ड के सचिव प्रमोद पाण्डा के अनुसार यह नाम मातृशक्ति के साथ-साथ प्रकृति के संरक्षक रूप के प्रति श्रद्धा को भी इंगित करता है। इन दोनों ही रूपों में यह नाम इस नौका और इस अभियान के लिए पूर्णत: प्रासंगिक और उपयुक्त है।

बहुत पहले वाइस एडमिरल (से.नि. ) मनोहर आवटी ने प्रस्ताव रखा था कि भारतीय नौसेना एकल सागर नौकायन सरीखे साहसिक और चुनौतीपूर्ण अभियानों में भाग ले। उनके इस सपने को कैप्टेन (से.नि.) दिलीप दोण्डे और कमाण्डर अभिलाष टोमी जैसे निर्भीक और अग्रगामी पथ-प्रदर्शकों ने परवान चढ़ाया, और अब आई.एन.एस. वी. तारिणी का छह सदस्यीय महिला दल इस लक्ष्य को और आगे बढ़ाने की तरफ अग्रसर है। यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय नौसेना अभी तक अपने जहाजों में महिला अधिकारियों को पूर्ण रूप से उनका हक नहीं दे पायी है! ऐसे माहौल में लै. कमाण्डर वर्तिका, लै. कमाण्डर प्रतिभा, लै ऐश्वर्या, लै पायल, लै विजया और लै स्वाति जैसी निर्भय और महत्वाकांक्षी महिलाओं का यह दल ऐसे मार्ग पर कदम बढ़ाने को उद्यत है जो निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ियों के लिए अनेक  नूतन और चुनौतीपूर्ण अवसर प्रदान करेगा।
(INSV Tarini and Lt. Swati)

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