अन्याय के खिलाफ इंदिरा जयसिंह

मधु जोशी

फॉर्च्यून  पत्रिका ने 2018 के लिए जारी ‘‘विश्व के पचास महानतम अधिनायकों’’ (World’s Greatest Leaders of 2018) की सूची में प्रतिष्ठित अधिवक्ता और निर्भीक सामाजिक-विधिक मानवाधिकार कार्यकर्ता  इंदिरा जर्यंसह को बीसवें स्थान पर शामिल किया है। यह पहली बार है कि फॉर्च्यून  पत्रिका में किसी भारतीय नेता के बजाय किसी वकील का नाम देखने को मिला है। उल्लेखनीय है कि इस सूची में दो अन्य भारतीयों उद्योगपति मुकेश अंबानी तथा वास्तुविद बालकृष्ण दोशी को भी स्थान मिला है।

मुम्बई में जन्मी और वहीं से स्कूली शिक्षा पूरी करने वाली इंदिरा जयसिंह ने स्नातक की उपाधि बंगलौर विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। इसके उपरान्त उन्होंने मुम्बई विश्वविद्यालय से एल.एल.एम की उपाधि प्राप्त की। 1981 में इन्होंने अपने पति आनन्द ग्रोवर (जो स्वयं जाने-माने वकील और विधिक  कार्यकर्ता हैं) के साथ Lavyers Collective  नामक गैर सरकारी संस्था की स्थापना की जिसका मूल उद्देश्य समाज के वंचित तथा प्रताड़ित तबके को नि:शुल्क सहायता प्रदान करना है। गृह मंत्रालय ने इस एन.जी.ओ. का लाइसेंस विदेशों से चंदा प्राप्त करने के लिए बनाये नियमों के उल्लंघन के लिए निलंबित कर दिया था किन्तु मुम्बई उच्च न्यायालय ने इसके स्वदेशी खातों को खोलने का आदेश दिया।

1960 के दशक में वकालत आरम्भ करने वाली इंदिरा जयसिंह पहली महिला थी जिन्हें बम्बई उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया था। वह पहली महिला थीं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव के निवारण हेतु बनायी गयी Committee for the elimination of discrimination against women की सदस्यता दी गयी थी। वह भारत की प्रथम महिला अपर महाधिवक्ता भी थी।
(Indira Jaisingh against unjustice)

इंदिरा जयसिंह ने अनेक महत्वपूर्ण मुकदमों में महिला समानता के विचार को प्रभावित करने वाले फैसले लेकर महिला सशक्तीकरण के मार्ग को प्रशस्त किया है। केरल की सीरियन ईसाई महिलाओं के लिए पुश्तैनी सम्पत्ति में समान अधिकार से जुड़े मुकदमे में उन्होंने मैरी रॉय, के.पी.एस. गिल के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में उन्होंने रूपन देओल बजाज, पिताओं के साथ-साथ माताओं को भी बच्चों के ‘‘स्वाभाविक अभिभावक’’ के रूप में मान्यता देने से जुड़े मुकदमे में उन्होंने गीता हरिहरन, अपनी संस्था को मिले चंदे के दुरुपयोग से सम्बन्धित मामले में उन्होंने तीस्ता सीतलवाड़, गैर पारसी व्यक्ति से विवाहित पारसी महिला के पारसी टॉवर ऑफ सायलैन्स में माता-पिता के अन्तिम संस्कार में भाग लेने की अनुमति से जुड़े फैसले में उन्होंने गुलरुख गुप्ता तथा ग्रीन पीस इण्डिया मामले में उन्होंने प्रिया पिल्लै की तरफ से पैरवी की थी। इंदिरा जयसिंह ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों और मुम्बई में फुटपाथ पर रहने वाले निराश्रितों का भी अदालत में प्रतिनिधित्व किया है। म्यानमार के रखाइन प्रान्त में रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार की तहकीकात करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्थापित, जांच दल का नेतृत्व भी इंदिरा जयसिंह को सौंपा गया है।

यह विडम्बना है कि फॉर्च्यून  पत्रिका की सूची उसी दिन जारी हुई जिस दिन भारत के उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति बी.एच. लोया की अकस्मात मृत्यु की तह तक जाने की मांग करने वाले वकीलों के खिलाफ (जिसमें इंदिरा जयसिंह भी शामिल थीं) अत्यन्त कड़ी प्रतिकूल टिप्पणी की थी। इस निर्णय के उपरान्त इंदिरा जयसिंह की प्रतिक्रिया थी, ‘‘मैं माननीय उच्चतम न्यायालय में किये गये अपने निवेदन पर कायम हूँ।’’ उल्लेखनीय है कि फॉर्च्यून  पत्रिका का इंदिरा जर्यंसह के संदर्भ में कहना है, ‘‘भारत में जब निर्धनतम लोगों को आवाज़ की आवश्यकता होती है,उन्हें यह आवाज़ इंदिरा जर्यंसह में मिलती है। वह ऐसी अधिवक्ता हैं जिन्होंने अपना जीवन अन्याय से लड़ते हुए बिताया है।’’
(Indira Jaisingh against unjustice)

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