छात्राओं की नजर में भारतीय लोकतंत्र

जया पाण्डे एवं कमला आर्या

हम एक लोकतांत्रिक देश में साँस ले रहे हैं। लोकतंत्र की कुछ आवश्यकता होती है। जरूरी है कि हम अपनी शासन व्यवस्था को जानें, उसके मूल्यों को आत्मसात करें, सचेत नागरिक हों। लोकतंत्र में भले ही बहुत बुराई हो, मगर विद्यमान शासन प्रणालियों में वही सर्वोत्तम व्यवस्था है। आपकी आवाज का यहाँ महत्व है। लोकतंत्र का विकल्प सिर्फ अधिक लोकतंत्र है। यह लोकतंत्र और अधिक लोकतंत्र कैसे बने, इसके बारे में हर नागरिक को सोचना है। हर व्यक्ति अपनी जगह मूल्यवान है, उसका मत, उसकी दृष्टि, उसकी व्यापक सोच मिलकर लोकतंत्र बनाती है।

लोकतंत्र धर्म, जातिर्, लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता, इसलिए इसमें महिलाओं की सशक्त भागीदारी की आवश्यकता है। यह भागीदारी सिर्फ इस बात पर ही निर्भर करती है कि महिलाएँ प्रत्याशी के रूप में खड़ी हो या वे मतदान में भाग लेती हो। यह भागीदारी इस बात पर भी निर्भर करती है कि महिलाएँ/ छात्राएँ/लड़कियाँ राजनीतिक दलों के बारे में क्या सोचती हैं, शासन के बारे में उनका क्या रवैया है? एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे लोगों के लिए जानना जरूरी होता है कि संस्थाओं का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है? नीतियाँ कैसे लागू हो रही हैं? लड़कियाँ/छात्राओं को भी संस्थाओं को जानने का समझने का हक है। उन्हें अहसास कराना होता है कि वे अपने आसपास बिखरे कानूनों को समझने अपने चारों तरफ फैलती-बनती संस्थाओं को जाने। किस माध्यम से वे संस्थाओं-संरचनाओं-कानूनों को समझ पा रही हैं इसका अध्ययन करना ही राजनीतिक समाजीकरण है।

यही जानने के लिए हमने महाविद्यालय स्तर पर छात्राओं के राजनीतिक समीकरण का अध्ययन किया। पाँच महाविद्यालय-राजकी स्नातकोत्तर महाविद्यालय रानीखेत, एस.एस.जीना परिसर, अल्मोड़ा, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय द्वाराहाट, राजकीय महाविद्यालय भिकियासैण, राजकीय महाविद्यालय स्याल्दे में से प्रत्येक से 50-50 छात्राओं को लिया। एक प्रश्नावली इन छात्राओं से भरवाई गई। प्रस्तुत लेख में हम कुछ ही प्रश्नों को ले पाये हैं जिनका सम्बन्ध मतदान के अधिकार, पंचायत व्यवस्था और राजनीति में महिलाओं की भूमिका से होगा।

राजनीति में पुरुषों का हक परम्परागत रहा है। सदियों से हम राजा महाराजा देखते आए हैं। अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देश में अभी तक एक भी महिला राष्ट्रपति नहीं बनी है। भारत की संसद में अब तक महिलाओं का दस प्रतिशत से ज्यादा महिलाएँ नहीं हैं। महिला आरक्षण बिल संसद के पटल पर अब तक लम्बित है। प्रश्नावली में एक प्रश्न था- आपकी राय में राजनीति में महिलाओं की संख्या कम है क्योंकि-

1.  महिलाएँ राजनीति में आना नहीं चाहती

2.  राजनीतिक दल उन्हें प्रत्याशी के रूप में खड़ा नहीं करते

3.  महिलाएँ राजनीति में आने योग्य नहीं हैं

4.  राजनीति सिर्फ पुरुषों के लिए है

5.  अन्य

इसका उत्तर निम्न प्रकार से (प्रतिशत में) है-

विषय   अल्मोड़ा रानीखेत द्वाराहाट भिकियासैण     स्याल्दे

1. आना नहीं चाहती     64%   50%   44%   36%   64%

2. राजनैतिक दल प्रत्यशी 30%   36%   48%   56%   36%

 के रूप में खड़ा नहीं करते

3. वह आने योग्य नहीं है 00%   4%    6%    6%    00%  

4. राजनीति सिर्फ पुरुषों के लिए है 6%    10%   6%    2%    00%  

उपरोक्त तालिका से दो बातें स्पष्ट है कि छात्राएँ इस बात पर विश्वास नहीं करती कि महिलाएँ राजनीति में आने योग्य नहीं हैं। इसका अर्थ यह है कि उनका महिलाओं की क्षमता पर विश्वास है। दूसरा वे इस बात पर भी विश्वास नहीं करती कि राजनीति सिर्फ पुरुषों के लिए है। राजनीति में महिलाओं की संख्या कम है, जो दो कारण उभरकर आए हैं- 1. महिलाएँ राजनीति में आना नहीं चाहती। 2. राजनीतिक दल उन्हें प्रत्याशी के रूप में खड़ा नहीं करते। इन दोनों कारणों में महत्वपूर्ण कारण यह है कि महिलाएँ राजनीति में आना नहीं चाहती। अब यह हमारे लिए पुन: शोध का विषय प्रशस्त करता है कि महिलाएँ राजनीति में क्यों नहीं आना चाहती। इसका उत्तर छात्राओं की अपेक्षा महिलाएँ ही दे पायेंगी।

इससे पूर्व पंचायत पर किए गए शोध का एक परिणाम था कि कार्य की व्यस्तता, राजनीति में माफिया का प्रवेश, चुनाव में धनबल का प्रयोग ये कारण थे जो महिलाओं को राजनीति में प्रवेश से रोकते हैं। यह पंचायत ही है जिसके माध्यम से महिलाएँ को राजनीति में प्रवेश से रोकते हैं। उत्तराखण्ड जैसे राज्य में उन्हें 50 % आरक्षण का लाभ हुआ है। चूँकि इन महाविद्यालयों में 70 % ग्रामीण छात्राएँ हैं जिन्होंने पंचायती संस्थाओं को जाना और समझा जाता है। पंचायत चुनाव ने लोगों को अपने जुड़ों से जोड़ने का काम किया है। पंचायती चुनाव, पंचायत, राजनीति व संस्थाओं का प्रभाव छात्राओं के दृष्टिकोण में भी देखने को मिलता है। पंचायत स्तर पर 50 % आरक्षण जो महिलाओं को दिया गया है इस आरक्षण के बदले हम कितना लाभ उठा पा रहे हैं यह जानना जरूरी था। छात्राओं की सोच को हमने दो माध्यमों से देखा सकारात्मक तथा नकारात्मक। प्रश्न था पंचायत स्तर पर आपके राज्य में 50 % आरक्षण है, इसको आप किस दृष्टि से देखेंगे। इस प्रश्न के उत्तर के रूप में जो परिणाम आए वे इस प्रकार हैं-

दृष्टिकोण       अल्मोड़ा रानीखेत द्वाराहाट भिकियासैण     स्याल्दे

सकारात्मक     64%   74%   52%   82%   76%  

नकारात्मक      32%   26%   48%   18%   24%

उपरोक्त तालिका स्पष्ट करती है कि 50% आरक्षण के सकारात्मक प्रभाव पर विश्वास रखने वाली छात्राओं की संख्या अधिक है। पंचायतों के माध्यम से वे लोकतंत्र को समझ पाई हैं इसका पता हमें एक अन्य प्रश्न के उत्तर से भी चलता है। एक प्रश्न था कि यदि आप राजनीति में आना चाहेंगी तो आप किस स्तर की राजनीति में आना चाहेंगी- 1. पंचायत स्तर पर 2. विधान सभा स्तर 3. लोकसभा स्तर। इसके परिणाम निम्न थे-

स्तर    अल्मोड़ा रानीखेत द्वाराहाट भिकिसासैण     स्याल्दे

1. पंचायत स्तर 48%   50%   44%   56%   40%

2. विधान सभा स्तर     30%   24%   36%   28%   40%

3. लोकसभा स्तर       22%   26%   20%   16%   20%

उपरोक्त तालिका को देखने से स्पष्ट होता है कि छात्राओं का रुझान लोकसभा राजनीति की ओर सबसे कम, विधानसभा राजनीति में उससे अधिक और सबसे अधिक रुझान पंचायती राजनीति की ओर है। यह परिणाम लोकतंत्र को विकेन्द्रीकरण से जोड़ता है स्पष्ट करता है संस्थाएँ जितनी अधिक विकेन्द्रीकृत होने छात्राओं/महिलाओं की सहभागिता उतनी अधिक होगी। वस्तुत: पंचायतों ने छात्राओं का राजनीतिक समाजीकरण किया है।

राजनीतिक समाजीकरण सीख की एक प्रक्रिया है जो जीवन पर्यन्त चलती है। यह एक पीढ़ी द्वारा राजनीतिक संस्कृति के मूल्यों को दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित करने की प्रक्रिया है। पंचायत से भी करीब से जुड़ी संस्था है छात्र संघ। यहाँ छात्राओं की उम्र राजनीति से तालमेल बैठाता है। यही तो वह संस्था है जिसके माध्यम से उम्र की नाजुकता का सम्बन्ध परिपक्त लोकतंत्र से होता है। छात्रसंघ की आम सभा व मतदान के दिन की भीड़ को देख  इसके मनोवैज्ञानिक कारणों की खोज करने को मन करता है। लगता है कि लोकतंत्र हमारे अन्दर के क्रोध वैमनस्य को बिना रक्तपात के भाषणबाजी द्वारा बाहर निकालने का माध्यम है। यह अन्दर के युद्ध को बाहर निकालता है। छात्रसंघ चुनाव के माध्यम से ही छात्राएँ राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ती हैं। उनसे प्रश्न पूछा गया- छात्रसंघ चुनाव में लोग प्रचार के समय के अनेक कार्यों में जुड़े रहते है, आपने किस-किस में भाग लिया। परिणाम इस प्रकार हैं-

       अल्मोड़ा रानीखेत द्वाराहाट भिकियासैण     स्याल्दे

चुनाव सभाओं में भाग लिया      50%   56%   50%   56%   46%

रैलियों में भाग लिया     40%   28%   34%   30%   36%

पोस्टर लगाया   64%   04%   00%   2%    00%

घर-घर गई     06%   12%   16%   12%   18%

छात्र संघ के माध्यम से ही छात्राएँ राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग कर पा रहे हैं यह स्पष्ट है, क्योंकि पहली दो गतिविधियाँ 1. चुनाव में भाग लेना 2. रैली में भाग लेना, इसमें उनकी भागीदारी इसलिए अधिक है क्योंकि यह कॉलेज के अन्दर या कॉलेज से आते-जाते सम्भव है। पोस्टर लगाने में वे भाग नहीं लेती क्योंकि इस गतिविधि के लिए अलग से समय देना है और अपने को विशिष्ट साहस के साथ आगे लाना है। छात्राओं में हिचक है इसलिए ऐसी गतिविधि में कम भाग ले पाती हैं। घर-घर जाकर प्रचार करने का कार्य भी कुल 10% छात्राएँ ही करती हैं। छात्राएँ छात्रसंघ के माध्यम से सीमित दायरे के भीतर राजनीतिक गतिविधियाँ सीख रही हैं। छात्राएँ भावी नागरिक हैं और यही गतिविधियाँ उन्हें भविष्य में लोकतांत्रिक व्यक्तियों से जोड़ती है। इस उम्र में उन्हें मताधिकार प्राप्त हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव मताधिकार का प्रयोग करने वाली छात्राओं का प्रतिशत इस प्रकार है-

अल्मोड़ा रानीखेत द्वाराहाट भिकियासैण     स्याल्दे

वोट दिया       74%   56%   70%   36%   58%

शहर में रहने वाली छात्राओं ने ग्रामीण छात्राओं की अपेक्षा अपने मताधिकार का अधिक प्रयोग किया। यहाँ फिर छात्रसंघ का महत्व समझ में आता है। छात्रसंघ में भागीदारी अल्मोड़ा से लेकर स्याल्दे तक एक सी है लेकिन जब विधानसभा चुनाव की बात आती है तो अल्मोड़ा की छात्राओं का प्रतिशत अधिक है। स्पष्ट है कि छात्रसंघ के माध्यम से छात्राएँ अधिक मात्रा में राजनीतिक गतिविधियाँ सीख रही हैं। छात्रसंघ का गलत इस्तेमाल छात्रों द्वारा किया गया है। छात्राओं के परिप्रेक्ष्य में छात्रसंघ का प्रभाव सकारात्मक कहा जा सकता है क्योंकि इसके माध्यम से ही छात्राओं को राजनीतिक स्वतंत्रता का अहसास हुआ है। इस प्रकार पंचायत और छात्रसंघ ये दो संस्थाएँ हैं जिससे छात्राएँ लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ सीखरही हैं। पंचायतों को अधिक सशक्त बनाने से अधिक जिम्मेदार व अपनी राजनीतिक व्यवस्था से जुड़ाव रखने वाले नागरिक बनेंगे, जो लोकसभा व विधानसभा के माध्यम से सम्भव नहीं होगा। छात्रसंघ के माध्यम से ग्रामीण छात्राओं को राजनीतिक व्यवस्था समझने में सरलता होती है इसलिए इस संस्था को बनाये रखने का भी औचित्य है।