इला गाँधी : सत्याग्रही का सम्मान

उमा भट्ट

जनवरी 2014 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा विदेशों में बसे भारतीयों को दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘प्रवासी भारतीय सम्मान’से इला गाँधी को सम्मानित किया गया। इससे पूर्व 2007 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका था। इला गाँधी महात्मा गाँधी की सुपौत्री हैं। उनका जन्म 1 जुलाई 1940 को दक्षिण अफ्रीका में इनान्दा जिले की फीनिक्स बस्ती में हुआ था। 1914 में गाँधी जी के भारत लौटने के बाद फीनिक्स आश्रम की देखरेख और सत्याग्रह के कार्य को आगे बढ़ाने के लिये गाँधी जी के दूसरे पुत्र मणिपाल गाँधी वहीं रह गये थे। फीनिक्स बस्ती में आश्रम की स्थापना 1904 में हुई थी। यह गाँधी जी द्वारा बनाया गया पहला आश्रम था। मणिपाल गाँधी ‘इंडियन ओपीनियन’नामक अखबार भी निकालते थे, जो गाँधी जी द्वारा शुरू किया गया था।

15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हो रहा था, मणिलाल का परिवार भी भारत में था। उस समय इला अपने ननिहाल के गाँव में थी। महात्मा गाँधी की पोती होने के कारण उस गाँव में 7 वर्ष की नन्हीं इला के हाथों तिरंगा फहराया गया था। तब वे तीन महीने अपने दादा के पास सेवाग्राम आश्रम में रही थीं। उस समय की अमिट छाप इला गाँधी के मन में हमेशा बनी रही। बाद में वे अपने माता-पिता के साथ दक्षिण अफ्रीका चली गईं। इला गाँधी का बचपन आश्रम के कड़े अनुशासन में बीता। उन्हें प्रात:काल जल्दी उठना पड़ता था। वे हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, सब धर्मों की प्रार्थनाएँ गाते थे तथा सभी धर्मों के बारे में पढ़ते थे। आश्रम में किसी एक धर्म के प्रति आग्रह नहीं था। वहाँ भारतीय, अफ्रीकी, श्वेत, अश्वेत सभी जातियों तथा धर्मों के लोग साथ रहते थे। 9 वर्ष की उम्र में उन्हें स्कूल भेजा गया। वह लोहे और लकड़ी का बना मकान था जिसमें पानी, बिजली की सुविधा नहीं थी। कक्षा 6 तक वहाँ पढ़ने के बाद उन्होंने डरबन इंडियन गल्र्स हाईस्कूल में पढ़ाई की। नेटाल विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई शुरू करने के बाद उन्होंने छोड़ दी और सामाजिक विज्ञान में यू.एन.आई. एस.ए. से बी.ए. की डिग्री ली। पढ़ाई पूरी करने के बाद इला ने वेरुलम चाइल्ड एन्केमिली-वेलफेयर सोसायटी तथा डरबन इंडियन चाइल्ड एण्ड वेलफेयर सोसायटी के साथ काम किया।

स्कूल के दिनों में ही इला को रंगभेद की कटुताओं का अनुभव होने लगा था और रंगभेद के प्रति उनके मन में घृणा पैदा होने लगी थी। उनके पिता रंगभेद के खिलाफ चल रहे संघर्षों में सक्रिय थे तथा उन तमाम कार्रवाइयों में भाग लेते थे जो उन दिनों रंगभेद के खिलाफ की जाती थीं। इला जब कक्षा 9 में पढ़ती थी तब तीन दिन के लिए एक ऐसे ही कार्यक्रम में उन्होंने पहली बार भाग लिया था। विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान कई बार इला ने प्रदर्शनों में भाग लिया।

1970 में महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित नेटाल इंडियन कांग्रेस को पुनर्जीवित किया गया। 20 वर्ष की उम्र में इला इसकी सदस्य बनीं और उन्हें इसका उपाध्यक्ष बनाया गया। बाद में वे अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (ए.एन.सी.) की सदस्य बनीं। लेकिन तभी सभी राजनीतिक संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। वे नेटाल आर्गनाइजेशन ऑव वुमन की भी सदस्य रहीं जो एक गैर जातीय संगठन था तथा सभी धर्मों और जातियों की महिलाएँ इसमें शामिल थीं। इस समय इला गाँधी समाज के विभिन्न तबकों को संगठित कर उन्हें मजबूती प्रदान करने वाली विभिन्न समितियों के साथ भी काम कर रही थीं। वे छोटी-छोटी समस्याओं के लिए संघर्ष करते थे। 1989 में उनके नेतृत्व में नेटाल में एक बड़े प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इस पूरे संघर्ष के दौरान र्अंहसा और सत्याग्रह पर उनका विश्वास बना रहा। रंगभेद के खिलाफ प्रदर्शन, भेदभाव करने वाले विभिन्न कानूनों का विरोध करना, आन्दोलनकारी लोगों के परिवारों की मदद करना, समाज में जागरूकता लाने के लिये विभिन्न कार्यक्रम करना आदि के फलस्वरूप अन्य लोगों के साथ इला गाँधी को भी गिरफ्तार कर लिया गया तथा साढ़े आठ साल 1975 से 1983 तक वे अपने ही घर में नजरबंद रहीं। उनकी सब प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लेकिन  इस दौरान भी वे किसी न किसी रूप में लोगों की  मदद करती रहीं। रंगभेद के खिलाफ संघर्ष के कारण ही 1983 में उनके युवा पुत्र की हत्या कर दी गई। फरवरी 1990 में वे युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की सदस्य के रूप में जेल में नेल्सन मंडेला से मिलीं। 1990 में ए.एन.सी. पर से प्रतिबंध हटाया गया। 1994 में चुनाव से पहले वे ट्रांजिशनल एक्सक्यूटिव कमिटी की सदस्य रहीं। इस प्रकार दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी निरन्तर भागीदारी रही। उन्होंने एक स्थान पर कहा है कि मैंने भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों को स्वतंत्र होते देखा है। आजादी के बाद वे दक्षिण अफ्रीका की संसद के लिए चुनी गईं और 1994 से 2004 तक संसद की सदस्य रहीं। इस दौरान भी सामाजिक उत्थान की गतिविधियों में उनकी अधिक रुचि रही। युवा, शिशु कल्याण, शिक्षा, कला, संस्कृति, विज्ञान आदि विषयों में उनकी दिलचस्पी बनी रही, इनसे सम्बन्धित कई समितियों में उन्होंने कार्य किया। सेरोगेट माताओं के लिये भी उन्होंने काम किया तथा घरेलू हिंसा के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने गाँधी डेवलपमेंट ट्रस्ट की स्थापना की। वे डरबन यूनिर्विसटी ऑव टैक्नोलॉजी की कुलपति भी रहीं। संयुक्त राष्ट्रसंघ के विश्व धर्म एवं शान्ति सम्मेलन से भी वे जुड़ी रहीं। दक्षिण अफ्रीका में इस संगठन की वे अध्यक्ष थीं। वे मानती हैं कि शान्ति और न्याय के लिये संघर्ष करना एक महत्वपूर्ण कदम है और प्रत्येक धर्म को यह करना चाहिए। 2002 में उन्हें ‘कम्यूनिटी ऑव इन्टरनेशनल पीस’पुरस्कार दिया गया। इला गाँधी का मानना है कि दक्षिण अफ्रीका में अभी भी लोगों के सामने मकान, पानी, बिजली, रोजगार, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत समस्याएँ मुँह बाए खड़ी हैं। साथ ही वैश्वीकरण के कारण नई-नई समस्याओं से भी जूझना पड़ रहा है। देश में अमीरी और गरीबी के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है। स्वतंत्रता मिलने से समस्याएँ खत्म नहीं हुई हैं और लोगों के सामने काम करने के लिए बहुत सी चुनौतियाँ हैं। इला गाँधी मानती हैं कि दुनियाँ में अभी भी बहुत अधिक भेदभाव और अन्याय हो रहा है पर सत्य और र्अंहसा के माध्यम से ही उसे खत्म किया जा सकता है।
Ila Gandhi: Honoring the Satyagrahi
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