हमारी दुनियां

योजनाओं में लौंगिक दृष्टिकोण

अप्रैल 2013 में मुम्बई के सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा स्वैच्छिक संगठनों ने मुम्बई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन को प्रतिवेदन देकर माँग की थी कि मुम्बई के लिए प्रस्तावित विकास योजना 2014-2034 में लैंगिक दृष्टिकोण पर भी ध्यान दिया जाए। इनके प्रयास के फलस्वरूप में लैंगिक विषयों पर परामर्शदात्री समिति का गठन किया गया है जिसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त टउॅट अधिकारी करेंगे और जिसके आठ सदस्यों में लैंगिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, वास्तुकला विशेषज्ञ, शहरी योजनाकार, संचार विशेषज्ञ, वकील और डब्ळड प्रतिनिधि शामिल होंगे। यह समिति मुम्बई के 24 वार्डों में कार्यकारी महिलाओं, छात्राओं और बेघर महिलाओं के लिए आवास, आधार कौशल प्रशिक्षण तथा विपणन केंद्र, महिला फेरी वालों के लिए स्थान आरक्षण, सार्वजनिक शौचालय जैसी सुविधाओं से संबंधित सुझाव देगी। आशा है कि यह प्रगतिशील कदम उन महानगरों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करेगा जहाँ विकास योजनाएं प्रस्तावित हैं।
पहल का स्वागत

सुदूर क्षेत्र धारचूला के उमाचिया ग्रामसभा की पहल के बाद वहाँ की 6 ग्राम पंचायतों में पूर्ण शराबबन्दी हो गई है। इन ग्राम पंचायतों में महिलाओं ने आगे आकर इस कार्य को अंजाम दिया। उमाचिया ग्रामसभा के महिला मंगलदल ने 1 मार्च 2019 को महिला मंगलदल की अध्यक्षा हेमा बिष्ट की अध्यक्षता में यह निर्णय लिया है कि यदि इन गाँवों में कोई भी व्यक्ति शराब का सेवन करते हुए या बेचते हुए पाया गया तो उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। शराब पीने व पिलाने व सिगरेट पीने वालों पर 500 रुपये अर्थदण्ड लगाया जाएगा। उमाचिया ग्रामसभा की यह पहल धीरे-धीरे आस-पास अन्य ग्राम सभाओं खेला, स्याँकुरी, रांथी, जम्मा व गलाती में भी पहुँच गयी। हालांकि यह मुहिम शराब माफियाओं को अच्छी नहीं लग रही है परन्तु महिलाओं व युवाओं का संकल्प दृढ़ है। पांगला गाँव में भी ग्राम प्रधान देवकी बिष्ट की अध्यक्षता में आयोजित महिला एवं युवक मंगल दल की बैठक में शराब के दुष्परिणामों पर बातचीत हुई। शराब के बढ़ते प्रचलन व युवा पीढ़ी के नशे की गिरफ्त में आने के कारण गाँव में शराबबन्दी करने तथा शराब पीने या पिलाने वाले पर छ: हजार रुपये का जुर्माना लगाने का निर्णय लिया गया।
हिम्मत व जुनून
(Hamari Duniya Uttara Mahila Patrika)

उषाकिरण हिम्मत व जुनून का नाम है। वे छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके बस्तर में सीआरपीएफ की पहली महिला अफसर हैं। उन्होंने स्वयं ही अपने सीनियर ऑफीसर से कहकर यहाँ अपनी तैनाती करवाई। उषा हरियाणा के गुरुग्राम की रहने वाली हैं और उन्होंने अपने पिता व दादा से प्रेरणा लेकर सीआरपीएफ की 232 महिला बटालियन में ट्रेनिंग ली है। 25 साल की उषा कहती हैं- ‘‘आप औरतों को फोर्स का हिस्सा बनने के लिए हौंसला दें, बाकी काम वे खुद कर लेंगी।’’ बस्तर के आदिवासी इलाके में महिला ऑफीसर होने के कारण आदिवासी महिलाएँ उनसे अपनी परेशानी व बातें आसानी से साझा कर पाती हैं। ड्यूटी खत्म होने के बाद उषा वहाँ की लड़कियों को पढ़ाती भी हैं। उषा को प्रतिष्ठित वोग इंडिया मैगजीन ने 2018 का ‘‘यंग अचीवर ऑफ द ईयर, चुना है। वे सीआरपीएफ की पहली लेडी कोबरा कमांडो हैं और गुरिल्ला पै्रक्टिस और जंगल वार में माहिर मानी जाती हैं।
मैरीन पायलट रेशमा

नारी शक्ति पुरस्कार 2018 से सम्मानित 30 वर्षीय रेशमा नीलोफर नाहा भारत की पहली मरीन पायलट (समुद्री पायलट) है। वह उन सभी लड़कियों की प्रेरणा बन गई है, जो अपने इरादों के बल पर आसमान छू लेना चाहती हैं। रेशमा ने वर्ष 2006 में इस क्षेत्र में कदम रखा, जहाँ दूर-दूर तक महिलाकर्मी नजर नहीं आती थीं।  2011 में उन्होंने कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट में बतौर मरीन पायलट काम करना शुरू किया। आज भी उनके अलावा कोई दूसरी महिला मैरीन पायलट भारत में नहीं है। चेन्नई की रहने वाली रेशमा डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन सरकारी मेडिकल कॉलेज में 98 प्रतिशत की अर्हता पूरी न होने के कारण उन्होंने अपना इरादा बदल दिया। वह कहती हैं कि सबको सुविधाएँ नहीं मिलती। बेहतर परिवार या प्रशिक्षण भी सबको कहाँ मिलता है। शिकायतें होंगी, आपको मन मुताबिक न मिलने का तंज होगा लेकिन इससे मिलेगा कुछ नहीं। उनका कहना है कि आपको हर हाल में खुद को मजबूत करना होगा और हवा के रुख के विरुद्ध भी चलना सीखना होगा और यह तभी होगा जब उनके पास होगा आत्मविश्वास नामक हथियार।
गर्भाशय निकालने को मजबूर
(Hamari Duniya Uttara Mahila Patrika)

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के बीटड जिले में जहाँ कि गन्ने की फसल होती है, वहाँ 50 प्रतिशत महिलाएँ गर्भाशय रहित हैं क्योंकि ये गन्ना कटान के समय मजदूरी का काम करती हैं। मजदूरी के दौरान वह एक दिन भी घर पर रहती हैं तो उन्हें 500 रुपये दण्ड के रूप में गन्ना ठेकेदार को देना पड़ता है और माहवारी के समय महिलाएँ एक या दो दिन की छुट्टी लेना चाहती हैं। इसलिए दो या तीन बच्चे होने पर वे ऑपरेशन करके गर्भाशय निकाल देती हैं जिससे कि उन्हें छुट्टी न लेनी पड़े। इस ऑपरेशन को 25 वर्ष से कम उम्र की महिलाएँ भी करातीं हैं। अनुमान है कि 16000 महिलाएँ यह आपरेशन करवा चुकी हैं। गन्ना पट्टी समुदाय में माहवारी को एक समस्या माना जाता है और ऑपरेशन से गर्भाशय निकालना इसका एकमात्र हल माना जाता है। इस ऑपरेशन से महिलाओं के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। गन्ना ठेकेदार व उनके लोगों द्वारा भी उनका शारीरिक शोषण किया जाता है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस बात को  संज्ञान में लेकर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेजा है। खबर है कि सरकार इस मामले की जाँच करवाने वाली है।
ताकि और कोई न सहे

‘‘स्वयं पर जो बीती वह दूसरों के साथ न हो, इसलिए अब दूसरी पीड़िताओं की लड़ाई लड़ती हूँ।’’ यह कहना है मुम्बई में महिला मामलों की वकील व ‘‘360 डिग्रीज बैक टू लाइफ’’ समूह की संस्थापक वंदना शाह का। वन्दना के माता-पिता की मृत्यु के बाद उनके रिश्तेदारों ने उनकी शादी जल्दी कर दी परन्तु ससुराल वालों का व्यवहार उनके प्रति अच्छा नहीं रहा और एक दिन उन्हें आधी रात को घर से निकाल दिया गया। वापस मायके आने पर रिश्तेदारों ने कोई मदद नहीं की। उन्होंने ससुराल पक्ष पर मुकदमा किया परन्तु किसी की भी सहायता नहीं मिली। अदालत के चक्कर लगाने के दौरान ही उनके पति ने तलाक की याचिका डाल दी। तब किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत जो उन्हें सुन व समझ सके, ने उन्हें उन महिलाओं से मिलवाया जो उनकी ही तरह पीड़ित व परेशान थीं। अधिकतर महिलाएँ युवा थीं ससुराल में उत्पीड़ित थीं व मायके में कोई उनकी आवाज बनने वाला नहीं था। तब वन्दना ने वकालत करने का फैसला लिया व वकील बनकर पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने लगीं।

उनका समूह अदालत में आने वाली महिलाओं की सबसे पहले काउन्सलिंग करता है। ससुराल से सम्पर्क कर पहले समझौता कराने की कोशिश करता है। साथ ही समाज में उत्पीड़ित तथा ससुराल से निकाली गयी महिलाओं के प्रति धारणाओं को बदलने का कार्य भी करता है।
बिललिकिस को मिला न्याय
(Hamari Duniya Uttara Mahila Patrika)

साल 2002 में गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार और अपने परिवार के 14 लोगों की हत्या देखने वाली बिलकिस बानो को 17 साल बाद सुप्रीम कोर्ट से इंसाल मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों की शिकार बिलकिस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा, सरकारी नौकरी और घर देने का आदेश दिया है। बिलकिस के साथ गैंगरेप किया गया। वह उस वक्त गर्भवती थीं। उनके परिवार के कई सदस्यों को मार दिया था। बिलकिस ने कहा है कि वे मुआवजे का एक हिस्सा यौन हिंसा की शिकार महिलाओं और उनके बच्चों के लिए दान करना चाहती हैं। उन्होंने ने कहा कि इस फैसले से न्यायपालिका में उनका विश्वास और भी मजबूत हुआ है। यह बलात्कार एवं सांप्रदायिक हिंसा की अन्य पीड़िताओं के लिए भी उम्मीद की एक किरण जगाता है।
रेस में क्यों रोका

बेल्जियम में होने वाली महिलाओं की एक खास रेस को कुछ वक्त के लिए सिर्फ इसलिए रोक दिया क्योंकि इसमें शिरकत करने वाली निकोल हेनस्लमन पुरुष प्रतिस्पर्धियों के काफी नजदीक पहुँच गई थी। इस रेस का आयोजन ओमलूप हेट न्यूजब्लाद नाम की संस्था ने किया था। संस्था के रेस मार्शल ने निकोल को 35 किमी. के बाद उस वक्त रोक लिया जब वह तेजी से बढ़त लेते हुए पुरुष प्रतिस्पर्धियों के पास पहुँचने वाली थी। हेनस्लमन की स्पीड को काफी तेज माना गया। इस रेश में शामिल होने वाले पुरुषों को महिलाओं से दस मिनट पहले ही आगे जाने दिया। इसके बावजूद 123 किमी. की इस रेस में निकोल उनके काफी करीब आ गई। जब निकोल को रोका गया तब वह महिला प्रतिभागियों से 2 मिनट आगे निकल गईं थीं, उन्हें कहा गया कि वह कुछ देर इंतजार करें ताकि पुरुषों के लिए हो रही रेस में होने वाले आगे निकल सकें।
(Hamari Duniya Uttara Mahila Patrika)

प्रस्तुति : पुष्पा गैड़ा
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