हमारी दुनिया

दहेज विरोधी कानून में तुरन्त गिरफ्तारी नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने असंतुष्ट पत्नियों द्वारा पति एवं ससुराल वालों के खिलाफ दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग करने पर चिन्ता जताई है। उसने व्यवस्था दी है कि ऐसे मामलों में पुलिस अभियुक्त को तुरन्त गिरफ्तार नहीं कर सकती। गिरफ्तारी के लिए उसे हर हाल में कारण बताने होंगे जिनकी अदालत से जांच होगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि पुलिस का पहले गिरफ्तार करो उसके बाद आगे बढ़ो का रवैया निन्दनीय है। कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि दहेज उत्पीड़न  सम्बन्धी सभी अपराधों जिनमें सात साल की कैद की सजा देने का प्रावधान है, में पहले गिरफ्तारी का सहारा नहीं लें। न्यायर्मूित सी.के. प्रसाद की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हम सभी राज्य सरकारों को निर्देश देते हैं कि अपने पुलिस अधिकारियों को यह सिखाये कि जब भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) की धारा 498 अ (दहेज उत्पीड़न) के तहत मामला दर्ज हो तो तत्काल गिरफ्तारी न करें। उसकी जगह आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की धारा 41 के तहत गिरफ्तारी के मानदण्डों के अनुरूप काम करे।

नहीं मिलेगा महिला आयोग को गिरफ्तारी का हक
कानून मंत्रालय राष्ट्रीय महिला आयोग को महिला प्रताड़ना के दोषियों और उसके सम्मन की अवहेलना करने वालों को दण्डित करने एवं गिरफ्तार करने का अधिकार देने के पक्ष में नहीं है। मंत्रालय ने आयोग की अध्यक्ष तथा सदस्यों के चयन के लिए अलग-अलग समिति होने पर भी सवाल उठाया है। कानून मंत्रालय का मानना है कि आयोग को गिरफ्तारी व दण्डित करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता क्योंकि यह काम पुलिस एवं न्यायपालिका का है। मंत्रालय का मानना है कि आयोग की अध्यक्ष एवं सदस्यों के चयन के लिए एक ही समिति पर्याप्त है। महिलाओं की प्रताड़ना एवं उनके खिलाफ होने वाली हिंसा की घटनाओं से प्रभावकारी तरीके से निपटने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय महिला आयोग को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तर्ज पर उसे और अधिकार देने की योजना बनाई है। प्रस्ताव के अनुसार राष्ट्रीय महिला आयोग के समन की अवहेलना करने वालों को आयोग जेल भेज सकता है।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय चाहता है कि राष्ट्रीय महिला आयोग एक ऐसा प्रभावकारी निकाय बने जो जेल की सिफारिश कर सके तथा केसों को अदालत में रेफर कर सके। राष्ट्रीय महिला आयोग कानून 1990 के अनुसार आयोग महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े सभी पहलुओं की संविधान तथा विधि सम्मत जांच करेगा। वह सुरक्षा निर्देशों के प्रभावी पालन के लिए सिफारिश भी कर सकता है। महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित रखने की रिपोर्टों पर उसे स्वत: संज्ञान लेने का भी अधिकार है। आयोग देश में महिलाओं के संरक्षण तथा उनके हितों को प्रोत्साहन देने वाला शीर्ष निकाय है।

13 साल की मालावथ पूर्णा ने किया एवरेस्ट फतह
आन्ध्र प्रदेश की 13 वर्षीय मालावथ पूर्णा दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउण्ट एवरेस्ट फतह करने वाली सबसे कम उम्र की महिला पर्वतारोही बन गई है। पूर्णा आन्ध्र प्रदेश के खम्मम जिले की नौंवी कक्षा की छात्रा है। इस अभियान पर वह अपनी सहयोगी नवीं कक्षा की 16 वर्षीय साधना पल्ली आनन्द कुमार के संग थी। पूर्णा एवं आनन्द दोनों ही आन्ध्र प्रदेश के समाज कल्याण शैक्षिक संस्था की छात्राएं हैं। उन्होंने 52 दिन के लम्बे अभियान के बाद एवरेस्ट फतह किया। सबसे कम उम्र की महिला पर्वतारोही के रूप में एवरेस्ट में पहुँचने के साथ ही पूर्णा ने नया रिकॉर्ड भी बना दिया। दोनों का चयन सोसाइटी के उन 150 बच्चों में से किया गया था जिन्हें साहसिक खेलों के लिए चुना गया था। इनमें से बीस बच्चों को र्दािर्जंलग के प्रतिष्ठित पर्वतारोहण संस्थान में प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था।

ताशी नुंग्शी का नाम गिनीज बुक में दर्ज
दुनिया की सबसे ऊँची माउन्ट एवरेस्ट फतह कर विश्व की पहली जुड़वा बहनें होने का गौरव हासिल करने वाली ताशी-नुंग्शी को गिनीज बुक ऑफ रिकार्डस में जगह मिली है। पर्वतारोहण के क्षेत्र में नित नये कीर्तिमान स्थापित कर रही देहरादून की जुड़वा बहनें ताशी-नंग्शी को गिनीज बुक की 60वीं सालगिरह पर जारी नये एडिशन में स्थान मिला है। इस तरह ताशी-नुंग्शी ने अपनी उपलब्धियों में एक पन्ना और जोड़ लिया। बचपन में अखबार और किताबों में बड़ी हस्तियों का नाम गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज होने की खबरें पढ़ने वाली बहनों ने बचपन में ही सोच लिया था कि कुछ ऐसा काम किया जाय जो उनके नाम भी गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड्स में शामिल कर दें। उन्होंने अपने साहसिक प्रयासों से यह यह कर दिखाया।

पहली एडमिरल महिला
अमेरिकी नौसेना के 236 वर्षों के इतिहास में पहली बार एक महिला को फोर स्टार एडमिरल के पद पर नियुक्ति दी गई है। व्हाइट हाउस के सचिव जोश अर्नेस्ट ने कहा कि नौसेना के 236 साल पुराने इतिहास में पहली बार किसी महिला की वर्दी में चार स्टार लगे होंगे। वाइस एडमिरल मिशेल होवार्ड को एक समारोह में शीर्ष रैक में पदोन्नति देकर सम्मानित किया गया।

सहजीवन में पैदा हुआ बच्चा जायज
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि लम्बे समय तक पति पत्नी के रूप में लिव इन रिलेशन शिप (सहजीवन) से पैदा हुआ बच्चा जायज होगा। जस्टिस बी. एस. चौहान और जे. चेलमेश्वर की पीठ ने लिव इन सम्बन्धों को लेकर मद्रास हाईकोर्ट के एक फैसले के विरुद्ध दायर याचिका का निस्तारण करते हुये यह फैसला दिया। वकील उदय गुप्ता ने हाईकोर्ट की उस टिप्पणी को चुनौती दी थी जिसमें कहा गया था कि एक वैध शादी के लिए यह जरूरी नहीं कि शादीशुदा जोड़ों से सम्बन्धित सभी पारम्परिक कत्र्तव्यों का पालन किया जाय। न्यायाधीश  चौहान और चेलमेश्वर ने कहा, वास्तव में हाईकोर्ट कहना चाहती थी कि अगर एक पुरुष और महिला लम्बे समय से बिना शादी के पति-पत्नी के रूप में रह रहे हों तो इस शादी की तरह माना जायेगा और उनके बच्चों को नाजायत नहीं कहा जा सकता।

पुरुषों, महिलाओं के वेतन में बढ़ जाता है अंतर
भारतीय आई.टी. उद्योग में पुरुषों और महिलाओं के वेतन के बीच समय के साथ अंतर बढ़ता जाता है। बावजूद इसके कि दोनों एक साथ समान पद और वेतन से नौकरी शुरू करते हैं। एक अध्ययन से यह बात निकली है। यह निष्कर्ष ऐसे समय पर आया है जब हाल ही में महिलाओं की वेतन वृद्धि पर माइक्रोसॉफ्ट के भारतीय मूल के सी.ई.ओ. सत्य नडेला ने भूलवश दिये अपने बयान पर माफी माँगी थी। उन्होंने कहा था कि महिलाओं को वेतन वृद्धि के लिए नहीं कहना चाहिए। अलबत्ता उन्हें इसके लिए अच्छी कर्मों पर भरोसा रखना चाहिए।

अमेरिका के केटलिस्ट समूह की फर्म केटलिस्ट इण्डिया डब्ल्यू.आर.सी. के अध्ययन के अनुसार भारतीय आई.टी. कम्पनियों में वेतनवृद्धि के मामले में वक्त बीतने के साथ पुरुषों की तुलना में महिलाएं बहुत पीछे छूट जाती हैं। दोनों की 12 साल की नौकरी में यह अंतर करीब 3.8 लाख रुपये तक पहुँच जाता है। अध्ययन में कहा गया है कि फर्मों को इस अंतर को दूर करने के लिए अपनी ओर से आवश्यक कदम उठाने चाहिए। केटलिस्ट इण्डिया डब्ल्यू. आर. सी. के एक्जीक्यूटिव डाइरेक्टर शचि इडे मानती हैं कि जो कुछ महिलाओं के लिए अच्छा है वह पुरुषों, व्यवसाय, अर्थव्यवस्था और समाज के लिए भी अच्छा है। दुनिया भर में कई बड़ी कम्पनियों को परामर्श देने वाली निलोफर मर्चेन्ट कहती हैं कि वेतन में समानता महत्वपूर्ण है। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण ऐसे नियमों को तैयार करना है जहाँ महिलाओं को पुराने, घिसे-पिटे पुरुष प्रधान नियमों को तहत काम न करना पड़े।
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शरई अदालतें कानूनन अमान्य
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इस्लामी कानून के तहत कुरान और हदीस की रोशनी में फैसले सुनाने वाली शरई अदालतें और उनके आदेशों और फतवों की कोई कानूनी हैसियत या मान्यता नहीं है। भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में इन अदालतों एवं फतवों का कोई स्थान नहीं है। इनके आदेश एवं फतवे किसी पर बाध्यकारी नहीं हैं। इन्हें जबरदस्ती लागू करना गैरकानूनी है। न्यायमूर्ति चन्द्रमौलि कुमार प्रसाद एवं न्यायमूर्ति पिनाकी चन्द्र घोष की पीठ में वकील विश्व लोचन मदान की याचिका का निपटारा करते हुये यह एतिहासिक फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि शरई अदालतें कानून के जरिये गठित नहीं है। अत: स्वतंत्र भारत की संवैधानिक व्यवस्था में इनकी कोई जगह नहीं है।

साधुवाद
साम्प्रदायिकता के कथित खतरे को लेकर भले ही घमासान मचाया जाय पर हिन्दू और मुसलमान सम्प्रदाय की दो महिलाओं ने एक दूसरे के पति को किडनी दान कर न केवल सद्भाव बल्कि इन्सानियत की एक नई मिसाल पेश की है। गोरखपुर की विमला द्विवेदी और कानपुर की नाजिका हबीब के पति मुहम्मद शमीम किडनी खराब होने की वजह से जिन्दगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे थे। खून मैच न होने के कारण वे दोनों ही अपने पतियों को अपनी किडनी नहीं दे सकती थीं। विमला द्विवेदी के पति रमेश द्विवेदी और नाजिमा हबीब के पति विगत कई वर्षों से डायलिसिस पर चल रहे थे। दोनों का इलाज मैक्स अस्पताल में चल रहा था। अस्पताल के डॉक्टर दिनेश खुल्लर की सलाह पर शमीम ने रमेश को फोन किया और बात बन गई।

जिन्दा दफनाई लड़की की पूजा अर्चना
भरतपुर के कुम्हेर में ढाई साल की बच्ची को उसके माता-पिता र्ने ंजदा दफना दिया। उसे वहाँ के लोगों ने देवी का रूप मान लिया और भीड़ उमड़ पड़ी। पुलिस ने उस बच्ची को कब्र से बाहर निकाला और उसका पोस्टमार्टम कराया। उसे अस्वाभाविक मृत्यु माना। इस बच्ची के माता-पिता ने कहा कि उसने समाधि ली। यह समाचार सारे गाँव में फैल गया। धीरे-धीरे वहाँ पूजा-अर्चना, भजन शुरू हो गए। बच्ची की माँ ने कहना शुरू किया क बच्ची ने कहा है कि वह देवी है और समाधि लेना चाहती है। पिता ने पुलिस पूछताछ में बताया कि हमारी बच्ची को लाइलाज बीमारी थी। खूब इलाज कराया पर कोई फायदा नहीं हुआ। इस घटना से फिर एक बार साबित हुआ कि अभी समाज बहुत पीछे है। शिक्षा व समझ की कमी अभी भी बरकरार है। फिलहाल मामले की जांच की जा रही है।

भारत पूरी दुनिया में दूसरे स्थान पर
बाल विवाह के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नम्बर पर है, जबकि बांग्लादेश पहले नम्बर पर है। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की बाल एजेंसी यूनिसेफ की एक रिपोर्ट से पता चला है। देश में सबसे कम 9.2 प्रतिशत बाल विवाह केरल में होते हैं। 2013 में देश में  35 हजार केस बाल विवाह निषेध कानून के तहत दर्ज हुए। दिल्ली की एक अदालत ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि बाल विवाह कराना दुष्कर्म की बुराई से भी बदतर है। इस मामले में एक लड़की के माता-पिता ने उसके पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न की शिकायत दाखिल की। अदालत ने ससुराल वालों के खिलाफ मामला दर्ज करने को कहा, वहीं लड़की की 14 वर्ष की उम्र में शादी करा देने पर उसके माता-पिता के खिलाफ भी मामला दर्ज करने को कहा।

महिला कर्मचारियों को मनचाही नियुक्ति
बैंकों  में महिला कर्मचारियों को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्रालय ने सरकारी बैंकों को महिला कर्मचारी की मनचाही जगह पर नियुक्ति देने को कहा है। इसके तहत महिलाओं को ऐसी जगह नियुक्ति दी जायेगी जहाँ उनके पति काम कर हैं या उनके अभिभावक रह रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को भेजे गये पत्र में कहा गया है कि विवाहित महिला कर्मचारी के आवेदन पर उनका स्थानान्तरण या नियुक्ति जहाँ तक सम्भव हो ऐसी जगह की जाय जहाँ उनके पति रह रहे हैं और अविवाहित महिला कर्मचारी को ऐसी जगह पर नियुक्त किया जाए जहाँ पर उनके अभिभावक रह रहे हों। इस संदर्भ में मंत्रालय ने कहा कि इस तरह निवेदन पर महिलाओं की नियुक्ति करने से उनको मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा और असुरक्षा की भावना भी नहीं रहेगी। बैंकों को इस बारे में नीति बनाकर अपने बोर्ड से मंजूरी लेने व स्थानान्तरण के लिए लम्बित निवेदन को नए दिशा-निर्देशों के तहत विचार करने को कहा गया है। वर्तमान समय में भारतीय बैंक सहित 27 सार्वजनिक बैंक हैं जिनमें 3 लाख कर्मचारियों में से 2.5 लाख महिला कर्मचारी हैं।

प्रमोशन का लालच देकर यौन उत्पीड़न करना भी अपराध
महिलाओं को नौकरी या प्रमोशन का लालच देकर यौन उत्पीड़न किया अब अपराध की श्रेणी में शमिल होगा। ऐसे ही कई और प्रावधान भी यौन उत्पीड़न से संरक्षण बिल- 2010 में शामिल होंगे। नए कानून में यौन उत्पीड़न और कार्यस्थल इन दोनों शब्दों की परिभाषा व्यापक की गई है। नया कानून संगठित-असंगठित क्षेत्र के साथ ही घरेलू कामगारों और खेती से जुड़े मजदूरों को भी लाभ पहुंचाएगा।

कैलाश सत्यार्थी और मलाला को नोबेल पुरस्कार
भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है। 11 जनवरी 1954 को मध्यप्रदेश के विदिशा में जन्मे कैलाश सत्यार्थी ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद बच्चों के लिए काम करना शुरू किया। 1983 में बचपन बचाओ आंदोलन एन.ज़ी़ ओ़ शुरू किया। ये अब तक 80 हजार बच्चों को बाल श्रम से मुक्ति दिला चुके हैं।

12 जुलाई 1997 को पाकिस्तान की स्वात घाटी में जन्मी मलाला सबसे कम उम्र की नोबेल विजेता हैं। मलाला ने बच्चियों की पढ़ाई के लिये तालिबान की गोली खाई। 2007 में जब पाकिस्तान की स्वात घाटी पर तालिबानियों का कब्जा हो गया तब पूरे इलाके में लड़कियों की पढ़ाई पर रोक लगा दी गई थी। लेकिन मलाला छिपकर स्कूल जाती रही और दूसरी लड़कियों से भी पढ़ने के लिए कहती रही।बालिका शिक्षा पर दुनिया का ध्यान खींचने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने मलाला दिवस भी मनाया। यूरोपीय संघ ने उन्हें सखारोव मानवाधिकार पुरस्कार दिया।

लडकियों की शादी की उम्र 21 वर्ष हो
मद्रास हाईकोर्ट ने लडकियों की शादी की उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने की जरूरत बताई। जस्टिस एस मणिकुमार व वी.एस. रवि की बैंच ने एक अर्जी की सुनवाई के दौरान कहा-  लड़कों के लिए शादी की उम्र 21 और लड़कियों के लिए 18 वर्ष है। दोनों स्कूली माहौल में 17 साल तक साथ बड़े होते हैं। ऐसे में लड़कियों को 18 की उम्र में ही लड़कों से परिपक्व कैसे माना जा सकता है।

आत्मरक्षा का इनाम
तमाम अन्तरराष्ट्रीय कोशिषों के बावजूद 25 अक्तूबर को 26 साल की रेहाना को फाँसी दे दी गई। ईरान की रेहाना जब्बारी ने 2007 में खुफिया मंत्रालय के पूर्व अधिकारी मोर्तजा अब्दोलाली सरबंदी की टुरा मारकर हत्या कर दी थी। मोर्तजा ने रेहाना के साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की थी। आत्मरक्षा के लिये रेहाना ने मुर्तजा पर टुरे का वार किया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई थी। रेहाना को सात वर्ष पहले मौत की सजा सुनाई गई थी। वह तबसे जेल में थी। दुनियाभर के मानवाधिकार संगठनों और ईरान की कई बड़ी हस्तियों ने फाँसी पर रोक की अपील की थी। इंटरनेट पर भी अभियान चलाया गया था पर रेहाना को फाँसी दे दी गई। रेहाना ने अपनी माँ को लिखे पत्र में लिखा है कि वह कब्र में सड़ना नहीं चाहती, उसके काम में आने वाले अंगों को दान कर दिया जाए। दुष्कर्म से बचने के लिए आत्मरक्षा में उठाये गये इस कदम पर सहानुभूतिपूर्वक विचार नहीं किया गया। अफसोस

लड़ना है बहना़….
1998 में विश्व सुन्दरी का ताज पहनने वाली इजराइल की लेनोर एबरगिल की साथ उसी प्रतियोगिता के दौरान विश्व सुन्दरी का खिताब जीतने से महज सात हफ्ते पहले दुष्कर्म हुआ था। अपनी जिजीविषा के बल पर न केवल उसने प्रतियोगिता जीती वरन् अपने अपराधी को भी सलाखों के पीछे पहुँचाया, वरन् वरन् दुष्कर्म के खिलाफ पूरी दुनिया की एक मजबूत आवाज बन गयी है। उनके संघर्ष पर ब्रेव मिस वर्ल्ड नाम से डाक्यूमेन्ट्री फिल्म इस दुष्कर्म के खिलाफ महिलाओं को आगे बढ़कर आवाज उठाने और अपराधी को सजा दिलाने के लिये प्रेरित करने वाली मानती हैं। माडलिंब और फिल्मों में काम करने के बाद वकालत में भी कामयाबी हासिल करने के बाद अ बह दुष्कर्म पीड़ितों के मुकदमे लड़ती हैं। वे 2008 से दुनिया भर में महिलाओं को दुष्कर्म के खिलाफ आवाज उठाने और अपराधियों को सजा दिलाने के लिए प्रेरित करने की मुहिम में लगी हैं।
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