सरोगेट मदर-किराये की कोख का बढ़ता बाजार

खेमकरन सोमन

आधुनिक समय उठा पटक का है और समस्याओं पर निरन्तर बहस करने का भी। अब एक विषय के सैकड़ों निष्कर्ष हैं। यह निष्कर्ष भी पूर्णत: पूँजी केन्द्रित है। यदि किसी भी नैतिकअनैतिक कार्यों से पूँजी रही है तो निष्कर्ष सही है अन्यथा गलत। इसका उदाहरण भी हम अपने आसपास, पड़ौसी राज्यों में देख सकते हैं। देखने के लिए बस बारीक नजर चाहिए वरना सब कुछ ठीकठाक लगेगा। वर्तमान में पूँजी और सत्ता का जबरदस्त और अटूट गठबंधन है, ऐसे में पूँजी और सत्ता को जो करना है, करती है। रिश्ते भी कोई मायने नहीं रखते।

माँ का बदलता स्वरूप
बात आधुनिक समय में माँ के बदलते रूप, स्वरूप और उनकी बदलती भूमिका को लेकर कर रहे है जब माँ सरोगेट मदर अर्थात् किराये की कोख (सरोगेसी) में तब्दील होती जा रही हैं। अब माँ अपनी कोख का उपयोग देश-विदेश से आ रहे संतानरहित व्यक्तियों के लिए कर रही है। इसके बदले उन्हें एक निश्चित धनराशि मिलती है। चिंतनीय पहलू है कि भारतीय समाज में इस तरह के कार्य व सोच, सोच से परे रहे हैं लेकिन इस समय तक इस कार्य की मजबूत बुनियाद अपने मजबूत भारत में बहुत ही मजबूती के साथ पड़ चुकी है। अब इस बुनियाद को हिलाना असंभव तो नहीं है लेकिन मुश्किल जरूर है।

माँ के इस बदलते रूप, स्वरूप और सोच के पीछे गरीबी, मजबूरी और केन्द्र में पूँजी हैं। अत: बहुमत यही है कि सरोगेसी यानी ये नई आधुनिक परम्परा आधुनिक समय की मांग है। अगर इस मांग को जायज ठहराते हैं तो आगे आने वाले समय में बहुमत और अल्पमत को ये बात भूलने की कोशिश करनी होगी कि बीमार सोती हुई माँ के लिए एक पुत्र रातभर पानी का गिलास लिए खड़ा रहा या माँ से संबंधित इसी तरह के अन्य उदाहरण।

विज्ञान और तकनीकी के विकास के फलस्वरूप मानव समाज आज इतना आगे बढ़ गया है कि अब उसे पीछे देखने की जरूरत महसूस नहीं होती जबकि मानव समाज द्वारा रौंदी हुई समस्याएं फिर विकराल रूप में खड़ी हैं तथा मानव समाज के एक भाग को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। जैसे इस विज्ञान एवं तकनीकी के विकास के कारण ही देश में प्रजनन का कारोबार भी बहुत तीव्र गति के साथ बढ़ रहा है। इस कारोबार में किराये पर कोख देने का धन्धा भी बहुत बड़े स्तर पर सम्मिलित है। भारत किराये की कोख (सरोगेसी) के रूप में विश्व पटल पर अपनी पहचान बना चुका है।

सरोगेट मदर
सरोगेसी लैटिन भाषा के शब्द सरोगेसी लैटिन भाषा के शब्द सबरोगेट से बना है, जिसका अर्थ है किसी दूसरे को अपने कार्य के लिए रखना। इस प्रकार सरोगेट मदर वह स्त्री है जो किसी दूसरी स्त्री के लिए बच्चे को जन्म देती है। भारत में इस कार्य हेतु गुजरात राज्य सर्वोच्च स्थान पर है। सरोगेट मदर बनने के लिए किसी महिला को एक खास तरह की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। नि:संतान दम्पति अपने अण्डे और वीर्य के समायोजन को आई़वी.एफ़ (इन विट्रो फर्टीलाइजेशन) तकनीक के माध्यम से किसी महिला की कोख में प्रत्यारोपित या गर्भ में प्रवेश करवाते हैं। इसी तकनीक के माध्यम से एकल माता-पिता भी प्रयोगशाला से अंडाणु अथवा स्पर्म लेकर या सरोगेट मदर के ही अंडाणु का इस्तेमाल करके संतान सुख ले सकते है। सरोगेट मदर बनने के लिए गर्भाधान का एकमात्र यही तरीका है, अर्थात् आई़वी.एफ़। इस तरीके से जन्म लेने वाले बच्चे पर सरोगेट मदर का कोई भी कानूनी अधिकार नहीं होता है।

प्रसूति पर्यटन का गढ़ बनता भारत
भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य का एवं नई आर्थिक सुधार नीति (1985) एवं नई आर्थिक सुधार नीति (1991) की दूसरी लहर के तीनों प्रमुख आयाम-निजीकरण, उदारीकरण और विश्वव्यापीकरण के उपरांत भारत एक बड़े बाजार के रूप में उभरा है। यह बाजार हर एक क्षेत्र में दिनों दिन विस्तारित ही हुआ। मल्टीनेशनल कम्पनियों (एम़एऩसी़) के आने के बाद पर्यटन का कारोबार भी बहुत बढ़ा है और पर्यटक भी। धार्मिक व चिकित्सा पर्यटन के साथ-साथ हजारों देशी-विदेशी पर्यटक अब यहाँ के विभिन्न भागों में प्रसूति पर्यटन के लिए भी आने लगे है। इन पर्यटकों के यहाँ आने का बड़ा कारण सरोगेसी को लेकर अमीर देशों की तुलना में कानूनी रूप से बहुत ही सरल प्रक्रिया है। इसके अतिरिक्त यहां पर सरोगेट मदर एवं जन्म लेने वाले बच्चे पर रख-रखाव संबंधी खर्चे भी दूसरे अमीर देशों की तुलना में तीन गुणा सस्ते है। यही कारण है कि देशी-विदेशी बड़ी-बड़ी मेडिकल कम्पनियां आई़वी.एफ़ नामक इस आधुनिक तकनीकी का जोरदार प्रचार कर रही है।

विज्ञापन और प्रचार-प्रसार के इस युग में उत्तर आधुनिक उपभोक्ता वस्तु की वस्तुनिष्ठता की परख किये बिना वस्तु के पीछे किस तरह भागते हैं, ये हम सब अच्छी तरह जानते हैं तो जाहिर है कि आई़वी.एफ़ नामक आधुनिक तकनीकी के इतना प्रचार-प्रसार के बाद देश-विदेष की नि:संतान दम्पति संतान सुख पाने हेतु पहला चुनाव भारत का ही करेंगे। इन्हीं कारणों से भारत प्रसूति पर्यटन के मामले में विश्व की राजधानी एवं गढ़ बनता जा रहा है। वर्तमान में भारत कोख का कारोबार करने में विश्व में पहले स्थान पर है। भारत के बाद थाइलैण्ड का स्थान है।

भारती उद्योग महासंघ का अध्ययन
भारती उद्योग महासंघ ने अपने अध्ययन में बताया है कि भारत में किराये की कोख का कारोबार 2-3 अरब डॉलर का हो गया है। चूँकि देशी-विदेशी (और अप्रवासी) भारतीयों में सरोगेसी की मांग निरंतर बढ़ रही है। अत: भविष्य में यह करोबार लगातार फलता-फूलता ही जायेगा।
Growing market of surrogate mother and surrogate mother

क्या कहना है स्वयं सेवी संगठनों का
किराये की कोख से संबंधित यह कारोबार पूर्णत: महिला की कोख पर टिका हुआ है और पूर्णत: प्रकृति विरोधी भी है। ऐसे में देश की सरकार चाहती तो कब का इस कारोबार पर नियंत्रण लगा सकती थी। यह नियंत्रण इस प्रकार लगता कि कानून रिश्ते-नाते की महिलाओं को ही सरोगेट मदर बनने की इजाजत देता लेकिन कानून निर्माताओं एवं देश के कर्ता-धर्ताओं ने ऐसा न करके किसी भी महिला को सरोगेट मदर बनने की खुली छूट दे दी है। इस खुली छूट के पीछे विदेशी मुद्रा का लालच भी है। अत: यदि सरकार इस कारोबार को संतान सुख चाहने वालों के नाते-रिश्तेदारों तक ही सीमित कर देती तो यह कारोबार थाईलैण्ड की ओर अपना मुँह कर लेता। इस प्रकार इस कारोबार में पहले स्थान पर थाइलैण्ड ही होता।

बहरहाल, तेजी से बढ़ते इस सरोगेसी के धन्धे को लेकर एक स्वयं सेवी संगठन के अध्ययन बहुत ही चौंकाने वाले एवं सोचनीय है। इस अध्ययन में कहा गया है कि देशी-विदेशी नि:संतान दम्पति एक साथ कई महिलाओं को गर्भधारण करवा देते हैं। इनमें से पहले जिस महिला पर प्रयोग सफल हो जाता है, उसे छोड़कर बाकी सभी महिलाओं का गर्भपात करवा दिया जाता है। इस अन्याय और शोषण के विरुद्घ कहीं कोई विरोध के स्वर नहीं है।

इसी अध्ययन में आगे यह भी कहा गया हैं कि किराये की कोख की कीमत दस हजार से लेकर तीस हजार डॉलर के बीच है। कभी-कभी इससे भी अधिक धनराशि दी जाती है लेकिन सरोगेट मदर तक पहुँचने वाली धनराशि मात्र एक-दो फीसद ही होती है। फिर बड़ा सवाल यहाँ उठता है कि बाकी धनराशि कहाँ चली जाती है ? इसका उत्तर भी बहुत सरल है कि बाकी धनराशि अस्पताल के चिकित्सकों और बिचौलियों की जेबों में जाती है।

प्रजनन सहायक तकनीक विधेयक
कुछ समय पहले एक सरोगेट मदर के संबंध में कोई कानून नहीं था लेकिन भारत में किराये की कोख (सरोगेसी) की मांग तेजी से बढ़ने के कारण केन्द्र सरकार प्रजनन सहायक तकनीक विधेयक लाकर इस कारोबार व इस गोरखधंधे पर कुछ हद तक अंकुश लगाने की एक सार्थक पहल कर रही है। इस नए विधेयक मसविदा में प्रावधान है- यह तकनीक सिर्फ नि:संतान विवाहित दम्पतियों या ऐसे दम्पतियों के लिए उपलब्ध रहेगी, जिनमें या तो दोनों भारतीय हों या दोनों में से एक। इस प्रावधान के अनुसार किसी महिला को सिर्फ एक बार सरोगेट मदर बनने का अधिकार प्राप्त होगा। समलैंगिक या अविवाहित रहते हुए या सहजीवन (लिव इन रिलेशनशिप) के रूप में रह रहे युगलों को इस सुविधा का लाभ नहीं मिलेगा साथ ही किराये की कोख देने वाली महिला पर बच्चे के जन्म तक पूरी निगरानी रखी जायेगी। किराये की कोख देने वाली 21 वर्ष से 35 वर्ष तक की होगी।

सरोगेट मदर से संबंधित इस कानून में कई खामियाँ हैं। जैसे गर्भधारण के समय सरोगेट मदर पर विपरीत असर पड़ने के कारण गर्भपात की अस्सी प्रतिशत प्रसूति शल्य क्रिया के जरिये होती है। (यहाँ ध्यान दिया जाए कि सरोगेट मदर के गर्भपात की अस्सी प्रतिशत आशंका होने के कारण ही देशी-विदेशी नि:संतान दम्पति यहाँ एक साथ कई महिलाओं को गर्भधारण करवा देते हैं।) इस कारण सरोगेट मद्रर की जान संकट में होती है। इस संकट से उबरने के लिए इस विधेयक में अभी तक कोई प्रावधान नहीं हैं न ही सरोगेट मदर का कोई बीमा होता है। फिर जैविक अभिभावक (बच्चे की चाह रखने वाले माता-पिता) यदि नवजात बच्चे को छोड़कर विदेश भाग जाए तब क्या होगा ? या पति पत्नी में तलाक होने की स्थिति में बच्चा दोनों में से किसके पास रहेगा ? फिलहाल ऐसे कुछ प्रश्नों के उत्तर उपलब्ध नहीं है।

किराये की कोख के लिए उपलब्ध महिलाएँ
सरोगेसी अर्थात किराये की कोख के लिए उपलब्ध महिलाएं गरीब घरों की होती हैं। इन महिलाओं के सामने अपनी रोजी-रोटी कमाने या अपने बच्चों के पालन-पोषण का कोई स्पष्ट आधार या साधन नहीं होता। ऐसी महिलाओं से बिचौलिए संपर्क करते हैं। फिर सरोगेसी के नाम पर इन महिलाओं का शारीरिक, मानसिक और सामाजिक शोषण शुरू होता है। शोषण आर्थिक रूप से भी होता है। इस प्रकार अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित पूँजीवादी देशों से शुरू हुई आई़वी.एफ़ तकनीकी द्वारा सरोगेसी के इस्तेमाल के लिए अब गरीब विकासशील देशों की महिलाओं को निशाना बनाकर एक नये महिला मजदूर वर्ग को खड़ा किया जा रहा है।

डरावने होंगे वे सब सपने/जिनमें माँ की चीख सुनाई देगी
चीन की सरकार ने देश में बढ़ती जनसंख्या के कारण सन् 1979 में अपने नागरिकों के लिए ‘एक बच्चा नीति‘की नीति लागू की थी। इस नीति के अनुसार प्रत्येक परिवार को सिर्फ एक बच्चा जन्म करने का अधिकार प्राप्त था। अत: इस नीति का चीनी सरकार ने बहुत ही सख्ती से पालन किया। इस नीति के कारण चीन के विभिन्न प्रांतों के विभिन्न अस्पतालों में प्रत्येक वर्ष हजारों महिलाओं के गर्भपात कराये जाने लगे। ये वे महिलाएं थीं जिनका एक बच्चा हो चुका था। अस्पतालों में काम कर रही नर्सें गर्भपात का कार्य करती हुई बुरी तरह डिस्टर्ब हो गयी। युवावस्था अधेड़ावस्था में उन्होंने अपने आपको संभाल लिया। (कुछ नर्सें स्वयं को संभाल भी न पायी) परंतु बुजुर्गावस्था में वे चीखने लगतीं। ऐसी स्थिति सोते-जागते किसी भी समय हो जाती। मानसिक रूप से आहत इन चीनी नर्सों को लगता कि गर्भ में मारे गये शिशुओं की हत्यारी हैं। सन् 2012 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता चीन के मोयान ने चीनी सरकार की इन नीतियों की अपने साहित्य में खुलकर धज्जियां उड़ायी हैं। चीनी सरकार अपनी उस नीति के कारण जैनरेशन गैप की समस्या से भी पीड़ित है। इन्हीं वजहों से चीनी सरकार ने हाल ही में एक बच्चा नीति में ढील देकर अपना ध्यान अब ‘दो बच्चा नीति‘लागू करने पर लगाया है। चीनी सरकार को अपने नागरिकों द्वारा दूसरा बच्चा पैदा करने की इजाजत देने के संबंध में निरंतर आवेदन पत्र मिल रहे हैं।
Growing market of surrogate mother and surrogate mother

यहाँ पर चीन का उल्लेख चीन की नर्सों द्वारा भ्रूणहत्या, पश्चाताप और भावनात्मक लगाव के कारण उत्पन्न हुई मानसिक समस्याओं के कारण किया गया है। भारत में भी इस तरह के मामले सामने आने लगे है। सरोगेट मदर बनने वाली महिलाओं का बहुत बार अपने बच्चे से भावनात्मक लगाव हो जाता है। इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे है। महिला को बच्चे से भावनात्मक लगाव न हो, इसके लिए उसे पूरे नौ माह तक अपने पति, घर से दूर डॉक्टरी परीक्षण में रखा जाता है। सरोगेट मदर के साथ पूरे नौ माह तक एक परामर्शदाता रहता है जो उसे हर समय, बार-बार यह एहसास दिलाता है कि तुम्हारे गर्भ में जो बच्चा पल रहा है, उससे तुम्हारा कोई संबंध नहीं है। यह सब तुम केवल पैसे और अपनी आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए कर रही हो।

बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही बच्चे को जन्मदात्री भी माँ अर्थात् सरोगेट मदर से दूर करके पैसों के लेन-देन की प्रक्रिया पूरी की जाती है। कभी-कभी यह प्रक्रिया बच्चे के जन्म से पहले ही कर दी जाती है।

भारतीय समाज में यह एहसास कितना भयानक और पीड़ादायक है। यह एक माँ ही समझ सकती है। शमशेर सम्मान 2013 से सम्मानित कवि रितुराज की कविता चीख की एक पंक्ति है- ‘डरावने होंगे वे सब सपने/जिनमें माँ की चीख सुनायी देगी। चीन की नर्सें, नर्स भी थीं और माँ भी। वे भावनात्मक लगाव के कारण चीख उठती थीं। भारत में किराये की कोख (सरोगेसी) का कारोबार पूरी तरह पैसों पर जरूर टिका हुआ है लेकिन पैसों के कारण बच्चे को जन्म देने वाली माँ भी अन्तत: एक माँ है। ऐसी माँ की चीखें अब गूँजने लगी है। सामाजिक परिवर्तन तेजी से हो रहा है। नहीं कहा जा सकता है कि आने वाले समय में बच्च्चा बड़ा होकर अपनी सरोगेट मदर की चीखों को सुनने या तहकीकात करने आये।

निष्कर्ष
सरोगेसी के धन्धे में आयी ये मजबूर महिलाएं जानती है कि सरोगेट मदर बनने की कौन-कौन सी समस्याएं भविष्य में उन्हें परेशान करेंगी लेकिन रोजी-रोटी के लिए संकट में फंसी विवश महिलाएं अंतत: खुद से ही समझौता करके तैयार हो जाती है। इसके लिए पूरी तरह सामाजिक संरचना और सामाजिक व्यवस्था दोषी है जो व्यक्ति से अधिक महत्व पूँजी को दे रही है। ऐसी लचर व्यवस्था के कारण ही आशंका बनी हुई है कि किराये की कोख में बच्चा पैदा करने का कारोबार कालांतर में कहीं बच्चों के अंगों की तस्करी, बाल मजदूरी या यौन दुष्कर्म की ओर न मुड़ जाये। एक सवाल यह भी उठता है कि सरोगेट मदर को इस समाज में कितना सम्मान मिलेगा ? या वे जीने लायक स्थिति में भी होंगी ?

फिलहाल, विकसित देशों की यह नई आधुनिक परम्परा भारतीय गरीब महिलाओं की कोख के शोषण में लगी है क्योंकि सरोगेसी का बाजार भारत में तेजी से फैल रहा है। पत्र-पत्रिकाएं, टी़वी़, इण्टरनेट, मीडिया और सोशल मीडिया सरोगेसी और सरोगेट मदर का प्रचार-प्रसार खुलकर कर रहे हैं। आधुनिक समय में आधुनिक तौर-तरीकों, तकनीकी के साथ समाज स्त्रियों के शोषण की नई इबारत लिखने में मशगूल है।
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