घसियारी प्रतियोगिता : 2016

विनोद बडोनी

चेतना आन्दोलन  द्वारा आयोजित घसियारी  प्रतियोगिता (यानी बेस्ट इकोलॉजिस्ट अवार्ड 2016) 22 दिसंबर को टिहरी जिले के भिलंगना विकास खण्ड के अखोडी गांव में संपन्न हो गयी। प्रतियोगिता में केमर पट्टी के चिलियाल गांव की विमला देवी 171.14 अंक पाकर प्रथम स्थान पर रही, बासर पट्टी के धनसाणी गांव की ज्ञानसू  देवी 165.07 अंक पाकर द्वितीय स्थान पर रही और अखोडी गांव की इन्द्रा देवी 160.02 अंक पाकर तृतीय स्थान पर रही। 

प्रथम पुरस्कार स्वरूप एक लाख का चैक और सोलह तोले का चांदी का मुकुट, द्वितीय पुरस्कार स्वरूप इक्यावन हजार रुपये का चेक और तेरह तोले चांदी का मुकुट तथा तृतीय पुरस्कार स्वरूप  इक्कीस हजार रूपये का चेक व दस तोले का चांदी का मुकुट प्रदान किया गया।

ग्राम स्तर पर 26 नवम्बर से शुरू हुई इस प्रतियोगिता में कुल 128 ग्राम पंचायतों की 2366 घसियारियों ने भाग लिया। प्रत्येक गांव से तीन विजेता घसियारी ही न्यायपंचायत स्तर पर पहुंचती हैं। 8 दिसम्बर से न्याय पंचायत स्तर पर शुरू हुई प्रतियोगिता 18 दिसम्बर तक अन्तिम चरण पर पहुंची, जिसमें 11 न्याय पंचायतों से कुल 33 घसियारियों का चयन हुआ। इस दौरान हर गांव में त्यौहार का माहौल सा बना रहा। 22 दिसम्बर को आखिरी चरण की प्रतियोगिता में 33 घ्सियारियों ने भाग लिया जिसमें घास कटाई की प्रतियोगिता के अलावा निर्णायकों के द्वारा पर्यावरण से सम्बन्धित प्रश्न भी पूछे जाने थे।

कार्यक्रम की शुरूआत ढोल, दंमाऊ रणसिंग की धुन बजाते हुए प्रतिभागियों के स्वागत के साथ हुई। आयोजक कमेटी के अध्यक्ष ग्राम प्रधान अखोडी श्री सरोप सिंह मेहरा, क्षेत्र पंचायत सदस्य श्री विक्रम सिंह कुवंर ने प्रतिभागियों को पिठार्इं के साथ परांदे भेट कर स्वागत किया। उसके बाद संचालक विमला राणा ने प्रतिभागियों को प्रतियोगिता के नियम पढ़कर समझाये। प्रतिभागियों को घास काटने के लिये गाजे-बाजों के साथ प्रतियोगिता स्थल ताल तोक तक ले जाया गया। दो मिनट में घास काटने का कार्य संपन्न होने के बाद फिर घसियारियों द्वारा बाजूबंद गीत गाये गये, उसके बाद घसियारियों को सम्मान सहित मंच पर लाया गया। इसके बाद उनको साक्षात्कार के दौर से गुजरना था।

   जजों के तीन पैनल बनाये गये थे। घास की गुणवत्ता और वजन के लिए विशेश्वर प्रसाद जोशी और श्रीमती रमा ममगांई, साक्षात्कार के लिए दो पैनलों में एक में दिल्ली के प्रसिद्व समाज सेवी डॉ. ऐ0 के0 अरुण और पर्यावरणविद डॉ रमेश पंत थे। दूसरे पैनल में जन कवि बल्ली सिंह चीमा और मैती आन्दोलन के जनक श्री कल्याण सिंह रावत जी थे।
(Ghasiyari Competition)

इस बीच प्रतियोगिता के साथ-साथ सभा भी की गई। सभा की शुरूआत जन कवि बल्ली सिंह चीमा के संघर्ष के गीतों से हुई। सभा को संबोधित करते हुए इतिहासकार डॉ शेखर पाठक ने कहा कि घसियारी हमारे राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चेतना आन्दोलन ने एक अद्भुत कार्य की शुरूआत कर पहाड़ के समाज के सामने राज्य की सही तस्वीर रखने का काम किया है। उन्होंने सुझाव दिया कि इसका नाम घसियारी प्रतियोगिता न हो कर घसियारी उत्सव होना चाहिए।  नैनीताल समाचार के संपादक राजीव लोचन शाह ने कहा कि आज राज्य में सही मायने में इस तरह के कार्यक्रमों की जरूरत है। इस तरह के कार्यक्रमों को पूरे राज्य में ले जाने की जरूरत है। श्रीमती कमला पंत ने राज्य की बागडोर महिलाओं के हाथों सौंपने  की वकालत की। चेतना आन्दोलन के संयोजक श्री त्रेपन सिंह चौहान ने कहा कि घसियारी एक महिला और काम नहीं है बल्कि एक पूर्ण विचार है। राज्य सरकार ऑक्सीजन टैक्स की बात कर रही है, ग्रीन बोनस की बात कर रही है लेकिन किसके दम पर ये बातें हो रही हैं। हमारे राज्य की महिलाओं के दम पर ही न? इन्हीं महिलाओं ने चिपको आन्दोलन से लेकर पृथक् राज्य आन्दोलन तक सबसे ज्यादा कुर्बानी दी है। वही उपेक्षित हैं और अपमानित हैं। वह मेहनत से जंगल पालती है तभी गंगा और यमुना जैसी नदियां बहती हैं। लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। वह पर्यावरण की सबसे बड़ी जानकार है। सबसे बेहतर इकोलॉजिस्ट है और सबसे ज्यादा समस्याओं से वही जूझ रही है।

नौजवान पीढ़ी अपना पैतृक काम नहीं करना चाहती। आखिर जिस काम में सम्मान न हो, उस काम को कोई क्यों करेगा? इसलिए चेतना आन्दोलन का नारा है- श्रम का सम्मान, नये भारत के लिए नया उत्तराखण्ड। श्री चौहान ने चेतना आन्दोलन के साथ सहयोग देने की जनता से अपील भी की।

चेतना आन्दोलन के सह संयोजक शंकर गोपाल कृष्णन ने कहा कि अब जरूरत है कि पहाड़ के सारे विकास कार्य वनाधिकार कानून 2006 के अनुसार हों और आगे सरकार को गांव-गांव में प्रोड्यूसर कंपनी बना कर सारे विकास के कार्य गांव वालों की कंपनियों को देने के लिए कानून बनाना चाहिए। इसके लिए चेतना आन्दोलन इस दिसम्बर में राजधानी में एक विशाल रैली का आयोजन भी करेगा। कार्यक्रम में इस आशय का शपथ पत्र भी पढ़ा गया जिसका लोगों ने हाथ खड़े कर स्वागत किया।

घसियारियों से निर्णायकों द्वारा तैयार प्रश्नों के जबाव पूछे गये जिसके आधार पर घसियारियों को अंक प्रदान किये गये। अंक देने की प्रणाली में इस वर्ष आयोजकों द्वारा परिवर्तन किया गया था जिसमें प्रति पशु पांच अंक अधिकतम बीस अंक, घास प्रति किलोग्राम दस अंक, 14 प्रश्न 140 अंक के (10 अंक प्रति प्रश्न) थे। 10 अंक निर्णायकों के विवेक पर छोड़ दिये गये थे जो घसियारी के व्यक्तित्व व व्यवहार पर निर्भर थे।

इसके बाद तीन बजे परिणाम घोषित किये गये। सबसे ज्यादा घास दो मिनट में 7.200 किग्राम अखोडी की इन्द्रा देवी ने काटी। परन्तु वह निर्णायकों के प्रश्नों का संतोष पूर्ण जवाब न दे पाने व पशुओं के कम अंक होने के कारण पीछे रह गईं और बिमला देवी प्रथम स्थान पर रहीं। सम्मेलन में महीपाल नेगी द्वारा लिखी किताब घसियारियों के गीत ’’बाजूबंद’’ ओर हृदयेश जोशी की किताब लाल लकीर की भी खूब चर्चा रही। इस दौरान सभा को शिक्षाविद नंदनन्दन पाण्डे, देवेन्द्र कैन्तुला, आनन्द प्रसाद ब्यास, महीपाल नेगी, डॉ ए.के. अरुण, नरेश, डॉ रमेश पंत, कल्याण सिंह रावत, सूरत सिंह पवांर, आदि ने संबोधित किया। मंच का सफल संचालन गिरीश बडोनी व विमला राणा ने किया।

प्रतियोगिता के दौरान प्रधान ग्राम पंचायत करखेडी सोवत लाल, महावीर प्रसाद बडोनी, पुरुषोतम नैथानी ग्राम प्रधान खोला, राम लाल, हरीकृष्ण तिवाडी दिनेश नेगी, बरफ सिह पोखरियाल, देबेन्द्र दत सेमवाल, प्रीतम सिंह नेगी, राजेन्द्र सिंह मेहरा, हरीश बडोनी, जितेन्द्र दत्त सेमवाल, निर्मला, बिश्व प्रकाश आदि  मौजूद रहे।

इस दौरान बाहर से आये अनेक गणमान्य जन तथा भारी संख्या में स्थानीय प्रबुद्धजन उपस्थित रहे। घसियारियों को प्रोत्साहन तथा सम्मान देने की दृष्टि से यह बात महत्वपूर्ण रही।
(Ghasiyari Competition)

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