जेण्डर और पाठ्यचर्या : शिक्षा

हेमलता तिवारी

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986-1992 व राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2000 व 2005 ने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने एवं स्त्रियों से सम्बन्धित सामाजिक बुराइयों को दूर करने पर बल दिया है। साथ ही पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा के माध्यम से जेण्डर विभेद को दूर करने व समस्त शैक्षिक कर्मियों में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए जेण्डर संवेदना को पाठ्यचर्या का अभिन्न अंग बनाने पर जोर दिया है। ताकि शिक्षक बच्चों में लैंगिक पूर्वाग्रह को दूर कर सकें तथा विद्यालय में स्त्री-पुरुष समानतामूलक वातावरण बना सकें।

आमतौर पर कक्षाओं में जाने अनजाने लैंगिक भेदभाव पैदा करने वाली परिस्थितियाँ दिखाई देती हैं। जैसे- शिक्षक उपस्थिति ले रहे हैं। पिछले कई दिनों से सुमित, मनोहर और सिया लगातार अनुपस्थित हैं। सिया को तो स्कूल न आते हुए दस दिन हो गये हैं। शिक्षक न आने वाले बच्चों के बारे में पूछताछ करते हैं। वे सुमित के पड़ोस में रहने वाले मनोज से और मनोहर के पड़ोस में रहने वाली रीता से पूछते हैं कि सुमित और मनोहर स्कूल क्यों नहीं आये। बच्चे बताते हैं कि दोनों अपने रिश्तेदार के यहाँ शादी में गए हैं इसलिए नहीं आये। रीता शिक्षक के पूछे बिना ही सिया के बारे में भी बताना चाहती है कि गुरु जी, सिया को वायरल….. पर वह वाक्य पूरा नहीं कर पाती कि शिक्षक पढ़ाना शुरू कर देते हैं।
(Gender and Lesson Plan )

स्कूल में वार्षिकोत्सव की तैयारियाँ चल रही हैं। सभी बच्चे पूरे जोश के साथ काम कर रहे हैं। कुछ बालिकाएँ रंगोली बना रही हैं, कुछ माला गूँथ रही हैं। कुछ लड़कियाँ स्वागत गान की तैयारी कर रही हैं। लड़के बाजार से सामान लगाने, टेंट खड़ा करने, कुर्सियाँ लगाने का काम कर रहे हैं। मीना उदास है। उसका मन स्वागत गान में शामिल होने का नहीं है। वह दूसरे लड़कों के साथ कुर्सियाँ  लगाना चाहती है।

सुलेखा और शबनम में अक्सर खूब झगड़ा होता है। उस रोज भी दोनों झगड़ते हुए शिक्षक के सामने आईं। शिक्षक अपने काम में व्यस्त रहते हुए उन दोनों को डाँटते हैं, तुम दोनों क्या लड़कों की तरह हमेशा उद्दंडता करती रहती हो। लड़की हो तो लड़कियों की तरह शांति से रहना सीखो।

संगीता की कक्षा में ज्यादातर लड़कियाँ हैं। विवेक भी संगीत की कक्षा में जाकर नृत्य सीखना चाहता है। शिक्षक उसकी यह इच्छा जानकर धीरे से हँसते हुए कहते हैं, जाओ जाकर फुटबॉल खेलो। इस प्रकार की घटनाएँ लड़के और लड़कियों में भेद का वातावरण बनाती हैं, जिनसे अध्यापकों को बचना चाहिए। कक्षा-कक्ष में विभिन्न विषय जैसे- भाषा, गणित, परिवेशीय अध्ययन, स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा, कला, कार्यानुभव आदि की चर्चा करते समय सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षक इस बात पर ध्यान दें कि शिक्षण जेण्डर विभेदीकरण को प्रर्दिशत करने वाला न हो बल्कि बालक-बालिका दोनों को परस्पर भूमिका में दर्शाने वाला हो।

सम्प्रेषण का प्रभावी माध्यम भाषा है जिसके द्वारा हम अपने आचार-विचार भावनाएँ, संवेदनाएँ अभिव्यक्त कर सकते हैं। भाषा शिक्षण के दौरान शिक्षक को कई बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जैसे-
शिक्षक द्वारा बच्चों के लिंग के आधार पर चोट न पहुँचाने वाली भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
बच्चों में परस्पर सम्मान, सहयोग एवं विचार विनिमय के साधन के रूप में भाषा विकसित करनी चाहिए।
बालक-बालिकाओं में आपसी विश्वास, आत्मविश्वास एवं स्वतंत्र अभिव्यक्ति के विकास को प्रोत्साहित करने वाली गतिविधियों का आयोजन करना चाहिए।
कहानी, कविता, रोल प्ले, संवाद-लेखन आदि के माध्यम से बालक-बालिकाओं में समान रूप से भाषा का प्रयोग होना चाहिए।
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वाद-विवाद, सांस्कृतिक एवं और अन्य गतिविधियों के माध्यम से बालक बालिकाओं की विविध भूमिकाओं की सराहना एवं सम्मान के अवसर देना भी जरूरी है। इसी प्रकार गणित की शिक्षण प्रक्रिया में उदाहरण देते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि स्त्री-पुरुष दोनों के कार्यों को समान रूप से महत्व मिले। गणित शिक्षण के द्वारा बालक-बालिका दोनों में निर्णय लेने की समता का विकास किया जाना चाहिए। महिला एवं पुरुष गतिणतज्ञों के कार्यों को समान रूप से प्रर्दिशत किया जाना भी आवश्यक है।

गणितीय उदाहरण देते समय भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनमें स्त्री-पुरुष या बालक-बालिका दोनों की समान रूप से भागीदारी दिखाई जाय। जैसे सीमा और दीपक के माता-पिता 1.45 मिनट तक मिल-जुल कर घर का काम करते हैं और सीमा उनसे 25 मिनट गणित के सवालों को हल करना सीखती है और दीपक उनसे 1 घंटा अंग्रेजी पढ़ना सीखता है, उनके माता-पिता ने सम्मिलित रूप से घर में कुल कितने घंटे काम किया?

प्रतिभा एक पुलिस अधिकारी है, अच्छा काम करने के कारण सरकार ने उन्हें 5,000 रुपये ईनाम दिया। उन्होंने अपने बच्चों को 1500 रुपये दिये और 1275 रुपये से अपने पति के लिए कमीज खरीदी, बताइये प्रतिभा के पास कितने रुपये बाकी बचे।
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एक ऐसी सारिणी बनाइये जो यह दर्शाती हो कि आपके घर के सदस्यों ने एक दिन में कौन-कौन सा काम कितने-कितने समय में किया और पता लगाइये कि किसने सबसे ज्यादा काम किया और कितने घंटे तक किया।
परिवेशीय अध्ययन

परिवेशीय अध्ययन में हम मुख्यत: मनुष्य के भौतिक, सामाजिक एवं प्राकृतिक परिवेश का अध्ययन करते हैं, इसका उद्देश्य छात्रों में स्थानीय एवं वैश्विक स्तर पर भौतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक आदि परिवेश को समझने की क्षमता विकसित करना है।

उदाहरण के लिए शिक्षक को किसी भी सम्बन्ध को समझाते वक्त ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिये जिनसे यह झलकता हो कि घर सम्भालने की जिम्मेदारी घर के प्रत्येक सदस्य की बराबर है। किसी भी व्यक्ति द्वारा किये गये छोटे-बड़े कार्य सम्माननीय हैं। उत्पादक कार्यों में स्त्री-पुरुष को समान अवसर दिया जाना चाहिये। निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्त्री-पुरुष की समान भागीदारी है। विभिन्न उत्सवों के आयोजन में स्त्री-पुरुष की समान-क्षमता का प्रदर्शन होता हो। आर्थिक विकास में स्त्रियों का अधिकार एवं सहभागिता समान है। ऐतिहासिक घटनाक्रमों में पुरुषों एवं स्त्रियों के योगदान को यथासंभव समान महत्व देते हुए व्याख्या की जाए। भारतीय संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकारों एवं कर्तव्यों की संकल्पना के उद्देश्य की प्राप्ति में स्त्री व पुरुषों की समान भागीदारी दिखाई जाय।
स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

बच्चों का स्वास्थ्य व शारीरिक विकास सभी प्रकार के विकास की पहली शर्त है। इसके लिए आवश्यकताएँ है पौष्टिक आहार, समुचित व्यायाम, शारीरिक स्वच्छता, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक जरूरतों की ओर ध्यान दिया जाना। अत: विद्यालयों में बालक एवं बालिका दोनों को स्वतंत्र खेलों, औपचारिक एवं अनौपचारिक खेलों, योग एवं खेल गतिविधियों में समान रूप से प्रतिभाग कराया जाना चाहिए। शिक्षक को चाहिए कि बालक-बालिका सभी बच्चों को वैयक्तिक स्वच्छता के विषय में संवेदित कर प्रतिदिन स्वच्छता की जाँच की जाय और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के निराकरण में वैयक्तिक परामर्श दिया जाए। बालक-बालिका दोनों को हर प्रकार के खेलों में (फुटबॉल, हॉकी, खो-खो, पिट्ठू) समान रूप से प्रतिभाग करने के लिए प्रेरित करें। उनमें खेलों के माध्यम से परिश्रम, आत्मविश्वास, सकारात्मक आत्मप्रत्यय आदि गुणों का विकास करें।
कला शिक्षा

विद्यालय में कला शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों को वातावरण में व्याप्त सौन्दर्य का बोध कराकर संगीत, चित्रकला, नृत्य, नाटक आदि के रूप में अपनी सृजनात्मकता के द्वारा इसे प्रस्तुत करने हेतु प्रोत्साहित करना है। अत: इन प्रस्तुतियों में छात्र-छात्राओं की समान भूमिका सुनिश्चित करके आत्माभिव्यक्ति, निर्णय क्षमता, आत्म विकास का समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। कला शिक्षण बालक-बालिका दोनों में सृजनात्मकता एवं समरसता का विकास करने का महत्वपूर्ण साधन है।
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कार्यानुभव शिक्षा

कार्यानुभव शिक्षा का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों में किसी भी कार्य के प्रति सम्मान का भाव जगाना है। इसके माध्यम से बच्चों में सहयोग, सहायता, सकरात्मक सोच एवं जीवन मूल्यों का विकास करना है। कार्यानुभव से सम्बन्धित गतिविधियों की योजना इस प्रकार बनाएँ कि बालक व बालिका समान रूप से प्रतिभाग करने हेतु प्रोत्साहित हों तथा बालक व बालिका में यह भाव विकसित करना चाहिये कि कोई भी कार्य उनकी पारस्परिक जिम्मेदारी है। विद्यालय में आयोजित होने वाले समस्त कार्यक्रमों की कार्ययोजना बनाते समय बालक व बालिका को समान उत्तरदायित्व दिए जाने व दोनों को ही एक साथ प्रतिभाग करने के लिए समान रूप से प्रोत्साहित करें। जेंडर की दृष्टि से पठन सामग्री का चयन करते समय यह ध्यान देना चाहिये कि पाठ्य पुस्तकों में दिखाए गए चित्रों में क्या जेण्डर समानता है? नहीं होने की स्थिति में जेण्डर समतामूलक उदाहरण दें। विभिन्न कार्य क्षेत्रों में जैसे- खेत, दफ्तरों, कारखानों में या घर-परिवार में, स्त्री-पुरुष को आपसी सहयोग से कार्य करते हुए चित्रित किया जाए, या उदाहरण प्रस्तुत किए जाय। विभिन्न अवसरों में विद्यालयों में आयोजित उत्सवों में बुलाये जाने वाले अतिथियों में समान कार्य करने वाली महिलाओं एवं पुरुषों का समान प्रतिनिधित्व हो। कक्षा कक्ष में बच्चों की बैठक व्यवस्था जेंडर समानता को प्रोत्साहित करने वाली हो। कक्षा मॉनिटर का दायित्व बालक व बालिका दोनों को दिया जाए। सामूहिक खेल अथवा गतिविधियों हेतु मिश्रित समूह का निर्माण हो। बालक-बालिका दोनों को अभिव्यक्ति के समान अवसर दिये जाएँ। कक्षा में कार्य का विभाजन बच्चों की रुचि के अनुसार किया जाए। कक्षा में बालिकाओं को भी प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित किया जाए, कक्षा में कराये जाने वाली गतिविधियों में बच्चों की भूमिका का निर्धारण लैंगिक आधार पर नहीं बल्कि समानता के आधार पर किया जाए। बालिकाओं के प्रति ऐसे अतिसुरक्षात्मक, भेदभावपूर्ण व्यवहार व अपमानजनक शब्दों व वाक्यों का प्रयोग न करें, जिससे उनकी आत्मनिर्भरता व आत्मगौरव प्रभावित हो। बालक-बालिका दोनों में आत्मनिर्णय व नेतृत्व क्षमता के विकास का समान अवसर दिया जाए।

जीवन एक अनुपम उपहार है। अत: जीवन को विविध कौशलों से युक्त कर जीवन में सुख, शान्ति व समृद्धि का सृजन होता है। जीवन कौशल की शिक्षा, शिक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। ये कौशल शिक्षार्थी को समाजोपयोगी, राष्ट्रोपयोगी व सम्पूर्ण मानवता के लिए उपयोगी बना सकने में समर्थ हैं ताकि वे अर्जित ज्ञान को व्यावहारिक रूप प्रदान कर सकें। जीवन के संघर्षों को समझने और उनसे जूझने की क्षमता प्रदान कर सकें। जीवन की आपत्तियों से घबराकर कायरों की तरह पलायन करने की अपेक्षा विवेकसम्मत सामना कर सकें। वस्तुत: जीवन-कौशल-शिक्षा रचनात्मकता, आत्मावलोकन, चिन्तन एवं अर्जित ज्ञान के माध्यम से जीवन से जुड़े तनावों, भावनाओं व संवेदनाओं के साथ समन्वय एवं सन्तुलन पैदा करने की क्षमता प्रदान करती हैं। जीवन का एकाकीपन सन्तुष्टि प्रदान करने वाले रचनात्मक कार्यों से परिपूर्ण होता है न कि भौतिकता की चकाचौंध से। स्वयं के विषय में चिन्तन, परिवार व समाज के बारे में चिन्तन तथा चिन्तन के पश्चात् सही निर्णय लेने की क्षमता तथा दूसरे के दु:ख दर्द को समझने की अनुभूति (तदनुभूति) आदि जीवन-कौशल-शिक्षा प्रदान करती है। मूल्यों व संस्कृति की सुरक्षा के साथ वांछित ज्ञान प्रदान करने की दक्षता जीवन कौशल शिक्षा में अंर्तनिहित है।
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जीवन में असंख्य कौशल होते हैं, जिनकी प्रकृति व परिभाषा वातावरण, संस्कृति और परिवेश के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकती है। फिर भी जीवन-कौशल-शिक्षा अनेक प्रकार के कौशलों का एक समूह है, जिसके अन्तर्गत स्वजागरूकता, विवेचनात्मक चिन्तन, समस्या समाधान, तनाव प्रबन्धन, अंतर्वैयक्तिक सम्बन्धन, सृजनात्मक चिन्तन, निर्णय लेना, भावनाओं को पहचानना तथा समय प्रबन्धन आदि कई कौशल समाहित हैं।

आज के युग में स्वयं की सुरक्षा कर पाना एक महत्वपूर्ण कौशल है। यह चाहे बालक हो या बालिका, दोनों में ही समान रूप से विकसित किए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए विद्यालय में बच्चों को आत्म सुरक्षात्मक कौशल जैसे- जूडो, योग आदि में प्रशिक्षित किए जाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही अपने साथ हो रहे असहज व्यवहार के प्रति विरोध करने का साहस भी बालक-बालिकाओं में समान रूप से विकसित करना आवश्यक है।
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