विश्व कविता से

1. यमन की युवा कवि रबिया अल ओसैमी की कविता

फैमिली फोटो

वह जो खड़े हैं फोटो के बिल्कुल बीचोंबीच
वे मेरे पिता हैं
वे एक परिवार खड़ा करना चाहते थे
ताकि आगे ले जा सकें अपना नाम
और उसका चित्र टांग सकें दीवार पर।
मेरी बड़ी बहन
खड़ी है एकदम दाहिने छोर पर
क्योंकि वह बहुत दूर तक नहीं ले जा सकती थी उनका नाम।
और क्योंकि यही सब मेरे साथ था
इसलिए मैं खड़ी हूँ फोटो के एकदम बायें छोर पर    
पाँच भाई हैं मेरे
जो चिपक कर खड़े हैं मेरे पिता के आजू – बाजू
वे  आगे ले जा सकते हैं उनका नाम
लेकिन बहुत दूर तक नहीं
हालांकि बहुत वजनी नहीं है पिता का नाम
कि उसे ढोने के लिए
पैदा की जाय लड़कों की एक टोली।
और अब उसके बारे में एक उल्लेख
जो खड़ी है मेरी बहन के बगल में
वह मेरी माँ है
बेचारी औरत़…. वह ब्याही गई मेरे मेरे पिता के संग
क्योंकि वह एक परिवार खड़ा करना चाहते थे
ताकि आगे ले जा सकें अपना नाम
और उसका चित्र टांग सकें दीवार पर।
(from world poetry)

2. अमरीकी कवि अल यंग की कविता

कवियों के लिए एक कविता 

बने रहो सौन्दर्य से भरपूर
किन्तु भूमिगत मत रहो लम्बी अवधि तक
बदल  मत जाओ बास मारती छछूंदर में
न ही बनो-
        कोई कीड़ा
                कोई जड़
               अथवा शिलाखंड।
धूप में थोड़ा बाहर निकलो
पेड़ो के भीतर साँस बन कर बहो
पर्वतों पर ठोकरें मारो
साँपों से गपशप करो प्यार से
और पक्षियों के बीच हासिल करो नायकत्व।
भूल मत जाओ अपने मस्तिष्क में छिद्र बनाना
न ही पलकें झपकाना
सोचो, सोचते रहो
घूमते रहो चहुँ ओर
तैराकी करो धारा के विपरीत।
औऱ… और
कतई मत भूलो अपनी उड़ान।

3 अमेरिकी कवि  माया एंजीलो की कविता

एक स्त्री की कर्मकथा

मुझे करनी है बच्चों की देखभाल
अभी कपड़ों को तहैय्या करना है करीने से
फर्श पर झाड़ू- पोंछा लगाना है
और बाजार से खरीद कर ले आना है खाने पीने का सामान।
अभी तलने को रखा पड़ा है चिकन
छुटके को नहलाना धुलाना पोंछना भी है
खाने के वक्त
देना ही होगा सबको संग- साथ।
अभी बाकी है
बगीचे की निराई – गुड़ाई
कमीजों पर करनी है इस्त्री
और बच्चों को पहनाना है स्कूली ड्रेस।
काटना भी तो है इस मुए कैन को
और एक बार फिर से
बुहारना ही होगा यह झोंपड़ा
अरे! बीमार की तीमारदारी तो रह ही गई
अभी बीनना – बटोरना है इधर उधर बिखरे रूई के टुकड़ों को।
धूप! तुम मुझमें चमक भर जाओ
बारिश! बरस जाओ मुझ पर
ओस की बूँदों! मुझ पर हौले – हौले गिरो
और भौंहों में भर दो थोड़ी ठंडक।
आँधियों! मुझे यहाँ से दूर उड़ा ले जाओ
तेज हवाओं के जोर से धकेल दो दूर
करने दो अनंत आकाश में तैराकी तब तक
जब तक कि आ न जाए मेरे जी को आराम।
बर्फ के फाहो! मुझ पर आहिस्ता – आहिस्ता गिरो
अपनी उजली धवल चादरें उढ़ाकर
मुझे बर्फीले चुंबन दे जाओ
और सुला दो आज रात चौन से भरी नींद।
सूरज, बारिश, झुके हुए आसमान
पर्वतो, समुद्रो, पत्तियो, पत्थरो
चमकते सितारो और दिप – दिप करते चाँद
तुम्हीं सब तो हो मेरे अपने
तुम्हीं सब तो हो मेरे हमराज।
(from world poetry)

पोलैंड की कवि ग्राज्याना क्रोस्तोवस्का की कविता
पत्थर


अच्छा लगता है मुझे पत्थरों को निहारना
वे होते हैं नग्न और सच की तरह साधारण
वे होते हैं रूखे चुप्पा अस्तित्व।
उनके पास आँसू नहीं होते
न ही प्यार
और कोई शिकायत भी नहीं
इस वृहदाकार और चौरस पृथ्वी पर
वे होते हैं यूँ ही धरी हुई कोई चीज।
वे होते हैं चाहनाओं से परे
आशाओं से आजाद
निश्चेष्ट
रिश्तों से विलग
– हालांकि उनमें भी दु:ख शेष होता है अभी
कठोर वास्तविकता से भरे होने का-
वे होते हैं भ्रम से विमुक्त
और अपनी निरर्थकता में अकेले।
और मैं किसी चीज के मारे
दु:ख से भरी हुई हूँ मूर्खता की हद तक
जो मूक पत्थरों के मध्य किए जा रही हूँ विलाप
और सोच रही हूँ कि हवायें उन्हें चूर – चूर कर देंगीं।
तूफान गुजर जाते हैं चुपचाप
और कुछ नहीं बिगड़ता पत्थरों का
वे वैसे ही बने रहते हैं
और उन पर नहीं चलता किसी का जोर
क्योंकि उनमें जीवंत हो गया है जीवन
और वे परिवर्तित होकर बन गए हैं मनुष्यों का हृदय।
(from world poetry)
अनुवाद एवं प्रस्तुति: सिद्धेश्वर सिंह

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