अरुणिमा : एवरेस्ट से ऊँचे हौसले

Everest Climber Arunima
गिरीश रंजन तिवारी

पैर कटने के बाद नकली पैर से फतह की एवरेस्ट सहित विश्व के सात प्रायद्वीपों की सबसे ऊँची चोटियाँ।

प्रसिद्ध कवि दुष्यन्त कुमारी की गजलों की कुछ पंक्तियाँ हैं-
मैं जिसे ओढ़ता बिछता हूँ
वो गजल आपको सुनाता हूँ
एक बाजू उखड़ गया जबसे
मैं और ज्यादा बोझ उठाता हूँ

जब दुष्यन्त ने यह पंक्तियाँ लिखी थीं तब अरुणिमा सिन्हा इस दुनिया में आई भी नहीं थी। लेकिन लगता है जैसे ये पंक्तियाँ उनके लिए ही लिखी गयी हों। दुनिया में ऐसे तमाम किस्से हैं जो प्रेरणा देते हैं, हिम्मत देते हैं और विपरीत हालातों में लक्ष्य प्राप्ति का हौसला देते हैं लेकिन इस सबके साथ जिसे पढ़ने मात्र से रोंगटे खड़े हो जाएं ऐसा ही एक अद्भुत, अविश्वसनीय किस्सा है अरुणिमा (सोनू) सिन्हा का, जिसे पढ़कर अंग्रेजी की कहावत ‘ट्रुथ इज स्ट्रैन्जर दैन फिक्शन’ सच्चे अर्थों में साकार हो जाती है। अगर किसी के जबर्दस्त हौसले और अत्यन्त विपरीत व कठिन हालातों में असंभव से लगने वाले लक्ष्य को प्राप्त करने की जिजिविषा का उदाहरण तलाशना हो तो शायद ही अरुणिमा सिन्हा से बेहतर कोई मिसाल मिल सके।

दुर्घटना में एक पैर कट जाने, दूसरे पैर में रॉड पड़ने, रीढ़ की हड्डियों में भारी चोट, शरीर में घाव ही घाव और मन में सब कुछ अचानक छिन जाने की कसक के बीच जब इस दुर्घटना के हफ्ते भर के भीतर अरुणिमा ने आसपास के लोगों से कहा कि वह एवरेस्ट पर चढ़ना चाहती है तो किसी ने इसे मजाक समझा और किसी ने दुर्घटना से मिले मानसिक सदमे का असर। खास बात यह थी कि इससे पहले अरुणिमा को पर्वतारोहण का कोई अनुभव या जानकारी तक नहीं थी। तब अरुणिमा को न तो किसी ने गंभीरता से लिया न ही कोई दिलासा ही दी। दुर्घटना में बायां पैर घुटने से नीचे कट जाने के बाद अरुणिमा की इस इच्छा पर सबने मन ही मन यही सोचा होगा कि एवरेस्ट तो छोड़ो तुम अपने पैरों पर खड़ी भी हो सको तो गनीमत समझना।
(Everest Climber Arunima)

लेकिन अरुणिमा के भीतर जो हौसले का एवरेस्ट जन्म ले चुका था, वह वास्तविक एवरेस्ट से कहीं ज्यादा ऊँचा था। इसका एहसास लोगों को तब हुआ, जब इस हादसे के मात्र 769 दिन बाद अरुणिमा के कदम सच में एवरेस्ट पर्वत पर थे। इस वक्त अरुणिमा की आयु केवल 25 वर्ष दस माह की थी।

अरुणिमा का जन्म उत्तर प्रदेश में लखनऊ के निकट अंबेडकर नगर के अकबरपुर में 20 जुलाई 1998 को हुआ था। उनके पिता सेना में इंजीनियर थे और माता स्वास्थ्य विभाग में कार्य करती थीं। उनकी एक बड़ी बहन व छोटा भाई था। जब वह 3 वर्ष की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। अरुणिमा स्कूल के दिनों से ही खेल गतिविधियों की शौकीन थीं। वे फुटबाल और साइकिलिंग के साथ वालीबल खेलती थीं। वालीबल में तो वे राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी रहीं। उन्होंने अम्बेडकर नगर से ही एम.ए. और एल.एल.बी. की डिग्री हासिल की। उन्हें शुरू से ही पैरामिलिट्री सर्विसेज में जाने का शौक था। उनके प्रयासों के बाद आखिरकार उन्हें सी.आई.एस.एफ. में सेवा का आमंत्रण मिला। इसके लिए कुछ प्रमाण पत्र तुरंत दिल्ली पहुंचाने आवश्यक थे। तब वे रिजर्वेशन न मिल पाने के कारण लखनऊ  से जनरल बोगी में ही दिल्ली के लिए पद्मावती एक्सप्रेस ट्रेन से रवाना हुईं।
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रास्ते में बरेली के निकट कुछ लुटेरों ने बोगी में आकर लूटपाट शुरू कर दी। वे अरुणिमा से उनकी चेन व बैग छीनना चाहते थे। अरुणिमा ने इसका प्रतिरोध किया जिस पर उन्होंने अरुणिमा को चलती ट्रेन से धक्का देकर नीचे गिरा दिया। जब तक अरुणिमा कुछ संभल पातीं उससे पहले दूसरे ट्रैक पर आ रही एक ट्रेन ने उनका बायां पैर कुचल दिया। अरुणिमा सारी रात इसी हाल में पटरियों के किनारे पड़ी रहीं। इस दौरान रात भर में 49 ट्रेनें वहां से गुजरीं पर अरुणिमा को कोई सहायता नहीं मिल सकी। अगली सुबह कुछ लोगों ने उन्हें एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया जहाँ डॉक्टरों ने कहा कि उनकी जान बचाने के लिए उनका पैर घुटने से नीचे काटना पड़ेगा। उस अस्पताल में एनेस्थीसिया की सुविधा नहीं थी, ऐसे में बगैर एनेस्थीसिया के ही पूरे होश में उनका पैर काटा गया, जिसकी भीषण वेदना उन्हें सहन करनी पड़ी। अस्पताल की हालत यह थी कि थोड़ी देर में ही अरुणिमा का कटा पैर उन्हीं की आंखों के सामने चूहे कुतरने लगे और एक कुत्ता उसे झपट ले गया। यह मामला जब समाचार की सुर्खियाँ बना तो इसकी जांच में पुलिस ने लीपापोती करनी चाही। किसी ने कहा कि वह बगैर टिकट यात्रा कर रही थीं, पकड़े जाने के डर से ट्रेन से कूद गईं, तो किसी ने इसे आत्महत्या का प्रयास बताया। इस सबसे अरुणिमा को इतना सदमा लगा जितना उस दुर्घटना से नहीं लगा था। बात के फैलने पर अरुणिमा को दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया। पुलिस की जांच में मनगढंत आरोप और तमाम लोगों की नजरों में अपने लिए दया का भाव देखकर अरुणिमा ने इन हालातों से उबरने की ठानी। अरुणिमा बताती हैं कि बगैर टिकट का आरोप झुठलाने को उन्होंने आज तक अपना टिकट संभाल कर रखा है लेकिन आत्महत्या के प्रयास के आरोप से उबरने के लिए वे कुछ बड़ा लक्ष्य हासिल करना चाहती थीं। हालांकि पुलिस की कहानी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें पाँच लाख रुपये का मुआवजा दिलवाया। अरुणिमा के एम्स में इलाज के दौरान भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह ने केंसर से पीड़ित होने के बाद बड़े हौसले से केंसर को मात देकर क्रिकेट की दुनिया में वापसी की थी। इस घटना ने अरुणिमा को बहुत प्रेरित किया। उनके भीतर कोई ऐसा काम करने की इच्छा जागी जिससे दुनिया यह जान सके कि वे आत्महत्या करने वालों में नहीं हैं बल्कि हौसले से कोई भी लक्ष्य प्राप्त कर सकने की हिम्मत रखती हैं। ऐसे में उन्होंने एवरेस्ट फतह करने का सपना देखा और जल्द से जल्द इसे पूरा करने का संकल्प लिया। लगभग चार माह तक उनका इलाज एम्स में हुआ। वडोदरा के रामकृष्ण मिशन के एक स्वामी के सहयोग से एकत्रित राशि से उनके प्रोस्थेटिक (नकली पैर) लगाया गया। उनके भाई ओमप्रकाश ने इस दौरान उन्हें सपना पूरा करने का हौसला दिया। अरुणिमा  एवरेस्ट पर चढ़ने के संकल्प पर इतनी दृढ़ थीं कि अस्पताल से अपने घर न जाकर सीधे भारत की प्रथम एवरेस्ट विजेता महिला बछेन्द्री पाल से मिलने जा पहुंचीं। इस हालत में उनकी एवरेस्ट चढ़ने की प्रबल इच्छा देखकर बछेन्द्री पाल ने उनकी हौसला अफजाई करते हुए कहा कि जब तुम इस हालत में एवरेस्ट चढ़ने का सपना देख सकती हो तो समझो आधा एवरेस्ट तो तुम चढ़ ही चुकी हो और मानसिक रूप से तो तुम पूरा एवरेस्ट ही चढ़ चुकी हो।  लेकिन एवरेस्ट चढ़ पाना इतना आसान भी न था। इसके लिए गहन प्रशिक्षण के साथ ही 30- 40 लाख रुपए तक का खर्चा भी होना था और एक पैर से विकलांग ऐसी महिला को जिसे पर्वतारोहण को कोई भी अनुभव न हो भला कौन प्रायोजित कर यह धनराशि उपलब्ध कराता।
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लेकिन अरुणिमा ने इन हालातों से हार नहीं मानी। उन्होंने सबसे पहले उत्तरकाशी स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट अफ माउंटेनियरिंग से प्रशिक्षण लेना शुरू किया। 18 माह लंबे प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने कभी कोई छुट्टी नहीं ली, न ही कोई त्यौहार मनाया। केवल अपने संकल्प को लेकर वह चलती रहीं। उन्होंने एवरेस्ट की चढ़ाई से पहले प्रशिक्षण के तौर पर 6150 मीटर ऊँची आईलैंड पीक पर सफल चढ़ाई की। इसके बाद वर्ष 2012 में 6622 मीटर ऊँचे माउंट चेजर सांगरिया का आरोहण किया। अरुणिमा की लगन को देख कर टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन ने उन्हें प्रायोजित करने का फैसला किया। वर्ष 2013 में अप्रैल माह में उन्होंने एवरेस्ट आरोहण शुरू किया। वर्ष 2013 में 21 मई वह स्र्विणम दिन था, जब सारी बाधाओं को पार करते हुए अरुणिमा आखिरकार एवरेस्ट पर चढ़ने में सफल रहीं। चढ़ाई के अंतिम दिन भी हालात उनके लिए बहुत विपरीत थे। जब चोटी के बिल्कुल नजदीक पहुँचने पर उनके गाइड शेरपा ने बताया कि उन दोनों की ही ऑक्सीजन समाप्त होने वाली है और अब उन्हें दूसरे दिन फिर से चढ़ाई प्रारंभ करनी पड़ेगी। लेकिन अरुणिमा ने यह सोच लिया था कि या तो एवरेस्ट फतह करना है या यहीं जान दे देनी है। उन्होंने शेरपा से कहा कि तुम आओ या न आओ मैं तो चोटी तक जाऊँगी ही। हालांकि शेरपा ने उनका जज्बा देखकर उनका ही साथ दिया। आगे के दो घंटे के रास्ते में एक अन्य विदेशी दल के पर्वतारोही ऑक्सीजन खत्म हो जाने के कारण एवरेस्ट को जाने वाले रास्ते में सहारे के लिए बंधी रस्सी से लगे हुए ही मर चुके थे। अरुणिमा को उनके शवों को पार करते हुए अपनी आखिरी चढ़ाई पूरी करनी पड़ी। इतने कठिन संघर्षों के बाद हिम्मत न हारकर अरुणिमा की इस उपलब्धि पर उन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया जिनमें पद्मश्री, उत्तर प्रदेश का यश भारती सम्मान, फस्र्ट वूमन अवार्ड, अर्जुन अवार्ड, लिम्का बुक आफ द ईयर 2016 का पीपल आफ द ईयर अवार्ड, इंडिया टीवी का सलाम इंडिया गैलेंट्री अवार्ड, तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवार्ड  शामिल थे। लेकिन अरुणिमा इतने पर ही नहीं रुकीं। उन्होंने अपना अगला लक्ष्य बनाया विश्व के अलग-अलग प्रायद्वीपों की 7 सबसे ऊंची चोटियों पर चढ़ने का। अपनी लगन और हौसले से सबसे पहले उन्होंने 1 मई 2014 को 5895 मीटर ऊंची अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो का आरोहण किया। इसके बाद 25 जुलाई 2014 को यूरोप की सबसे ऊँची 5642 मीटर ऊंची चोटी अलब्रस, 20 अप्रैल 2015 को आस्ट्रेलिया की सबसे ऊंची चोटी कोशियूस्जको, 25 दिसंबर 2015 को अर्जेंटीना की सबसे ऊंची चोटी एकोनकागुआ, 8 जुलाई 2016 को इंडोनेशिया के कार्सटेन्सज पिरामिड, और 2019 जनवरी में अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी माउंट विंसन को फतह किया। अरुणिमा के हौसले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बहुत प्रभावित रहे और उन्होंने इस चोटी को विजित करने जाने से पहले भारत का झंडा सौंपकर उन्हें आशीर्वाद दिया। अरुणिमा अपने जीवन में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद, स्वामी विवेकानंद, अटल बिहारी वाजपेयी, एपीजे अब्दुल कलाम, युवराज सिंह और बॉक्सर मैरी कॉम से प्रभावित रहीं। अपनी एवरेस्ट विजय पर उन्होंने एक पुस्तक लिखी ‘बर्न अगेन अन माउंटेनरू स्टोरी अफ लूजिंग एवरीथिंग एंड फाइंडिंग इट बैक’।  इस पुस्तक का विमोचन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया। अरुणिमा की उपलब्धियों पर इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी आफ स्ट्रेथक्लाईड ने 2018 में उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की। वर्ष 2018 में उनका विवाह पैरालम्पिक शूटर गौरव सिंह के साथ हुआ। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक के अधिकार विवेक रंगाचारी ने खरीद लिए थे। उनके जीवन पर बायोपिक फिल्म बनाने की तैयारी चल रही है जिसमें उनका किरदार कंगना रनौत द्वारा निभाने की संभावना है। अत्यन्त विकट और विपरीत परिस्थितियों में अपना लक्ष्य हासिल करने के बाद अरुणिमा ने अपना अगला लक्ष्य साधनहीन गरीब और दिव्यांग लोगों को उनके सपने पूरे करने में सहायता देने को अपना जीवन समर्पित करना निर्धारित किया है। इसके लिए उन्होंने तमाम पुरस्कारों में प्राप्त राशि से शहीद चंद्रशेखर आजाद अकादमी की स्थापना की है, जहाँ इन वर्गों के लोगों को ट्रेनिंग देकर अब एक दूसरी अरुणिमा सिन्हा तैयार करने के लक्ष्य को लेकर वे रात-दिन समर्पित भाव से कार्यरत हैं।
(Everest Climber Arunima)

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