पूरब आने वाली पश्चिम की यात्रा लेखिकाएं – पुस्तक चर्चा

भास्कर उप्रेती

लंदन स्थित आर्केडियन लाइब्रेरी ने ऐसी यूरोपीय महिला यात्रियों के यात्रा-साहित्य का अनूठा संग्रह तैयार किया है, जो पूरब को जानने पहुँची थीं। संग्रह को नाम दिया है- ‘वेस्टर्न वीमेन ट्रेवलिंग ईस्ट’ (1716 से 1916) यानी इन 200 सालों में पूरब आने और उस पर लिखने वाली महिलाएँ। संग्रह में 18वीं सदी में लिखी मैरी वोर्टले मोंटग्यु की ‘टर्किश लेटर्स’ से लेकर चार शताब्दी आगे की यात्रा लेखिकाओं की रचनाएँ और उनका विश्लेषण प्रस्तुत है। इन महिलाओं में राजनयिकों के साथ गई अधिकारियों की पत्नियाँ, बहनें और बेटियाँ हैं तो खोजी पत्रकार और जोखिम मिजाज यायावर महिलाएँ भी हैं। जैसे हैरियट मर्तिनेयु, लेडी फ्लोरेंटीया सेल, फ्लोरेंस नाईटिंगल, अमीलिया एडवर्ड्स, गर्त्र्तुड बेल और लेडी ब्लंट जैसी र्चिचत लेखिकाएं तो दूसरी तरफ प्रारंभिक विक्टोरियन काल की जूलिया कार्डो और कार्ला सेरेना जैसी कम ख्यात रचनाकार।

यह पुस्तक पुरुष यायावर लेखकों से इस मायने में अलग है कि उनका उद्देश्य व्यापार और उपनिवेश स्थापित करने की आकांक्षाओं से उतना बंधा नहीं है, कहीं-कहीं तो पूरी तरह मुक्त ही है। महिलाओं की नजर से पूरब की दुनिया को देखने और परखने का जुदा आख्यान यहाँ हमें मिल पाता है। जहाँ पुरुष लेखकों ने बड़े रेखाचित्र खींचे हैं, वहीं महिला लेखिकाएं सूक्ष्म-मर्मस्पर्शी सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ भी सामने लेकर आ सकी हैं। वे यहाँ पूरब और पश्चिम की परम्पराओं की भी तुलना करती दिखती हैं।  इन लेखिकाओं के यहाँ हमें सुन्दर पेंटिंग्स, वाटर कलर स्केचेज और फोटोग्राफ्स बहुतायत में मिलते हैं। समकालीन पुरुष लेखकों से भी यहाँ महिला लेखिकाओं की रचनाओं की तुलना की गयी है। यह बताया गया है कि चाहे जोखिम उठाने का मामला हो या बौद्घिक समझ का वे कहीं कमतर नहीं।

पुस्तक की लेखिका पेनेलोप टसन एक पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकार हैं, जो मध्य पूर्व (भारतीय खंड) के मामलों पर काम करती थीं, जो तब ब्रिटिश भारत के अधीन था। बाद में वह ब्रिटिश लाइब्रेरी कंसल्टेंसीज से जुड़ गयीं। और फिर अमरीकी कंपनी ‘इंटरनेशनल डिस्प्यूट रिजोल्यूशन’ से। इसके साथ-साथ वह महिला इतिहास पर निरंतर काम करती रहती हैं।

आठ अध्यायों में संकलित महिला-यायावरों के अनुभवों पर पेनेलोप टसन क्या कहती हैं, उसका संक्षेपण यहाँ करने का प्रयास किया जा रहा है। खासकर शुरूआती यात्रा लेखिकाओं के योगदान का जिक्र यहाँ है-

अध्याय 1-‘दि मोस्ट एक्सीलेंट टैलेंटस’: 18वीं सदी में सेरागोलिओ की यात्राएँ

मैरी वोर्टले मोंटग्यु 1716 में अपने राजनयिक पति के साथ इस्ताम्बुल प्रवास में गयीं। वह अपने पति की सहयात्री थीं लेकिन प्रवास के दौरान उन्होंने अपने कई निजी भ्रमण दर्ज किये हैं। ये उनकी स्वतंत्र दृष्टि, मनोभावों और विश्व-दृष्टि के निकष हैं। उनकी रचना ‘टर्किश लेटर्स’ 1763 में प्रकाशित होकर सामने आई। इस रचना ने यूरोप में महिला यात्रा लेखन की विधा की नींव डालने का काम किया। उन्होंने अपनी रचना में पूरब को देखने की भिन्न और नूतन दृष्टि यूरोपीय पाठकों के सम्मुख रखी। 1689 में जन्मी मैरी के सृजन का स्रोत उनके जीवन के शुरूआती अनुभवों में खोजा जा सकता है। उनकी माँ मैरी फील्डिंग उपन्यासकार हेनरी फील्डिंग की बहन थीं, लेकिन माँ की असामयिक मृत्यु के कारण उन्हें दादी के घर भेज दिया गया। जहाँ वे बताती हैं कि उनका दिमाग अन्धविश्वास और कुतर्क से भर दिया गया था। वे कहती हैं, उनकी शुरूआती शिक्षा विश्व में सबसे खराब किस्म की शिक्षा रही। नौ साल की होने पर वे अपने पिता की विशाल लाइब्रेरी में घुस गयीं, जहाँ उन्होंने अपनी शिक्षा खुद हासिल करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने स्वाध्याय से लैटिन, ग्रीक और फ्रेंच भाषाएँ सीखीं। ओविड, ड्रायडन और मौलेरी को पढ़ा। उन्होंने अपनी कवितायें और गद्य भी लिखना प्रारंभ किया। उनके पिता का याराना बौद्घिक तबकों में था सो वह धीरे-धीरे डिनर टेबल पर होने वाली बहसों में शामिल होने लगीं और इन बहसों मेंं तब के चर्चित लेखक जोसेफ एडिसन, रिचर्ड स्टील और विलियम कंग्रीव जैसी हस्तियाँ भी होतीं।
(East Coming West Travel Writers)

अध्याय 2-‘बियन्ड  इस्ताम्बुल’: मरुस्थल की यात्रायें और भारत का पदमार्ग

19वीं शताब्दी की शुरूआत तक मैरी वोर्टले मोंटग्यु, एलिजाबेथ क्रेवन और मैरी एल्गिन जैसी लेखिकाओं ने यात्राओं के स्वतंत्र अनुभव दर्ज कर यह साबित करने का प्रयास किया कि पुरुष लेखकों की लेखन दृष्टि के सापेक्ष वे दूसरे समाज के बारीक और मर्मस्पर्शी बिंब प्रस्तुत कर पाती हैं। खासकर मैरी वोर्टले मोंटग्यु के लेखन ने यह साबित किया कि अपने समकक्ष समकालीन पुरुष लेखकों और अन्वेषकों की तरह वे यूरोप के बाहर की दुनिया के समाजों और संस्कृतियों का खोजपूर्ण, विश्वसनीय, सटीक और बहुआयामी अन्वेषण करने में सक्षम हैं। इस्ताम्बुल की गलियों का जीवंत वर्णन, मिस्र की प्राचीन सभ्यता का लेखा-जोखा सामने लाने वाली यात्रा लेखिकाओं से आगे की राह स्वेज नहर बनने के बाद और लाल सागर के मार्ग से और चौड़ी हो गयी जब अपने भाइयों, पिताओं और पतियों के प्रशासनिक और व्यापारिक अभियानों पर निर्भर मुट्ठी भर धनी महिलाओं से मुक्त हो गयीं। इस्ताम्बुल पर ही लेडी हस्टर स्टेनहोप और जूलिया परोड के विवरण चौंकाते हुए से हैं। स्टेनहोप ने 1810 में इस नगर को देखा। उन्होंने कुलीन लेखिकाओं के बरक्श सामान्य महिलाओं के लिए यात्राओं का जोरदार आकर्षण प्रस्तुत किया। दो दशक बाद परोड ने इस नगर का भ्रमण कर महिलाओं के लिए व्यावहारिक यायावरी का नक्शा खींचा। उन्होंने महिलाओं में स्वतंत्र रूप से घूमने, विचरने, बताने और प्रकाशित होने की ख्वाहिशों का अंकुरण किया। 1830 तक भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश साम्राज्य के आधिकारिक वर्चस्व ने यूरोप की कई स्वतंत्र यात्रा लेखिकाओं के लिए मौका प्रदान किया। अब कुलीन महिलाओं के साथ स्वतंत्र लेखिकाओं का यूरोप के लिए अजूबा रहे भारत में आना-जाना शुरू हो गया।

अध्याय 3-‘फ्रॉम काबुल टू क्रीमिया’ : स्त्रियाँ, युद्ध औरग्रेट गेम

लेडी फ्लोरेंटिया सेल 1787 में भारत में पैदा हुईं। उनका परिवार परंपरागत रूप से ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में था। 1808 में उनका विवाह सेना अधिकारी रोबर्ट सेल से हुआ और वह उनके साथ आयरलैंड और मारिशस की यात्रा पर गयीं। 1823 में सेल परिवार अभियान से लौटकर कोलकाता लौट आया, जहाँ से रोबर्ट इंडो-वर्मा युद्ध में शामिल होने चले गए जबकि फ्लोरेंटिया कोलकाता में बनी रहीं। इसके बाद सेल भारत के कई छोटे-बड़े नगरों में रहे जिनमें आगरा भी शामिल था। 1839 में रोबर्ट को बंगाल ब्रिगेड का नेतृत्व देते हुए शाह शुजा को वापस हासिल करने के लिए काबुल भेजा गया और बाद में उन्हें नाइट की उपाधि दी गयी और मेजर जनरल पद दिया गया। फ्लोरेंटिया के वर्णन उस समय के सैन्य अभियानों, प्रवासी जीवन और आस-पास के समाजों का मौलिक और चित्रात्मक वर्णन हैं।

अध्याय 4-‘शेप्ड बाय दि ईस्ट’ : 19वीं शदी के मध्य में स्त्रीवादी और क्रांतिकारी महिलाएं 

1854 में जब फ्लोरेंस नाईटेंगल स्कुतारी पहुँची तो 34 साल की थीं और रानी विक्टोरिया के साथ उन्हें यूरोप में अपनी पीढ़ी की सबसे मशहूर महिला बनना शेष था। अपनी रचना ‘लेडी विद दि लैंप’ में वे क्रीमिया में चल रहे युद्ध का जीवंत वर्णन पेश करती हैं। उन्होंने युद्ध के समय महिला नर्सों की भूमिका को ही रेखांकित नहीं किया, युद्ध को देखने की एक नयी दृष्टि भी पेश की। नाईटेंगल 18वीं सदी के मध्य की उन महिलाओं में शुमार हुईं जिन्होंने यायावरी और राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की पहल की और उसकी वकालत की। समकालीन आलोचनाओं से इतर उन्होंने महिलाओं के लिए न्याय के उस स्पेस का दावा किया जो आधुनिक महिला आंदोलनों का ईंधन बना। नील नदी के किनारे साल भर तक चले अभियानों के बाद यह महिला इंगलैंड लौटीं, जहाँ उन्होंने अपने अनुभव दर्ज किये और प्रकाशित किये। खुद को जानने, चुनौतियों को झेलने और नया करने की उत्कंठा में वे जल्द ही ग्रीस के रास्ते मिस्र पहुँचीं, जहाँ से उन्होंने अपने परिवार को कई लंबे पत्र लिखे। उन्होंने यात्रा के दौरान आई दुश्वारियों का तो वर्णन किया ही, उनसे अर्जित अनुभूतियों को भी दर्ज किया। उनकी बहन पार्थेनोप ने इन पत्रों को बहुत सीमित पाठक वर्ग के लिए 1854 में प्रकाशित कराया। इसी साल वह फिर क्रीमिया पहुँची। फिर उन्होंने मिस्र और यूरोप के धर्म और दर्शन पर अध्ययन और भ्रमण किये। बाद में इतिहासकारों ने उन्हें ओरिएंटलिस्ट लेखकों की श्रेणी में रखा, जो यूरोप और पूरब के बीच संवाद स्थापित कर रहे थे। वे अलेग्जान्द्रिया की मस्जिदों में जाती थीं और उन्होंने बताया है कि उन्हें वहाँ यह देखकर अच्छा लगता था कि कैसे गरीब और अमीर दोनों शांति के लिए एक ही जगह बैठकर प्रार्थना करते थे। वे अपने खुद के पहनावे को लेकर वहाँ के लोगों में मौजूद कौतूहल को लेकर परेशान भी रहीं। तब तक उन्हें यह पता नहीं था कि इस्लाम में महिलाओं को कैसे देखा जाता है।
(East Coming West Travel Writers)

अध्याय 5-‘दि क्वींस डॉटर्स’ : साम्राज्यवाद के दौर में महिला, एक स्त्री की आवाज

19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यूरोप की महिला यात्रियों और लेखिकाओं की संख्या ड्रामाई रूप में बढ़ गयी, जो कुलीन वर्ग से अलग थीं। यातायात के साधन बढ़ने और रहने-खाने की सुविधाओं में इजाफा होने से उन महिलाओं का यात्रा करना सुगम हो गया। वे अब उन इलाकों तक जा सकती थीं जहाँ पुरुष यात्री, लेखक, सैनिक या व्यापारी ही जा पाते थे। मध्य वर्ग के लिए घूमना जीवन को समृद्ध करने की गतिविधि के रूप में देखा जाने लगा। बहुत सारे संस्मरण नितांत व्यक्तिगत अनुभव होते लेकिन बहुत सारे ऐसे भी थे जो समाजों, रीति-रिवाजों, राजनीति और संस्कृतियों के बीच संवाद के वाहक बन सके। 1878 में लेडी एनी ब्रेस द्वारा प्रकाशित ‘अ वोयेज इन दि सनबीम’ में कैरो के जीवन और पिरामिडों का अद्भुत संस्मरण दर्ज है। ब्रेस उन मूलभूत मानवीय उत्कंठाओं को उभारकर लाती हैं, जो इन पिरामिडों की संकल्पना के वक्त कल्पित की गयी होंगी। इस पुस्तक को कुछ ही समय बाद पुनर्प्रकाशित करना पड़ा और यह शीघ्र ही पाँच भाषाओं में अनूदित हो गयी। इसी दौर की एक दूसरी साहसिक यात्री रहीं लेडी कैथरीन टोबिन जिन्होंने 1860 में पुत्र के अचानक निधन पर लखनऊ और पूरब के दूसरे नगरों की यात्रायें कीं। यह यात्रा दु:ख से पलायन की यात्रा थी लेकिन कैथरीन के अनुभव 1863 में ‘दि लैंड अफ इनहेरिटेंस’ नाम से सामने आये,जो इतिहास-अनुसंधान का गंभीर काम था।

इस काम में महिला यात्रियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ। यात्राओं को महिलाओं के साहस और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के रूप में देखा जाने लगा। महिला यात्रियों के अनुभव किस तरह के रहे, यह जानने के लिए यूरोप काफी उत्सुक रहता था। विक्टोरिया काल की महिला यात्रियों ने साबित किया कि अब वे उन सभी जगहों तक पहुँच सकती हैं, जहाँ पुरुष पहुँच रहे हैं बल्कि वे उन जगहों में भी उनके साथ थीं, जो जगहें अब तक समूचे यूरोप के लिए र्विजत मानी गयी थीं। हालांकि सभी महिला यात्री किसी न किसी रूप में यूरोपीय वर्चस्व या उपनिवेशवादी विचार का ही हिस्सा रहीं, फिर भी इनके लेखन में इन जगहों के सामाजिक और सांस्कृतिक पक्ष मुखरता के साथ दर्ज हुए। जैसे चीन का ग्रामीण जीवन। जो महिला यात्री चित्रकार भी थीं, उनके चाक्षुष अनुभव तो यूरोप के पाठकों के लिए हकीकत का फसाना ही बन गए।

अध्याय 6-‘शिफ्टिंग आइडेंटिटीज’: साम्राज्य की सीमाओं पर राजनीति और एडवेंचर

जनसेवा और धार्मिक कार्यों ने यूरोपीय महिलाओं को साम्राज्यवादी अभियान में भागीदारी का मौका दिया लेकिन ऐसी भी महिलाएँ थीं जिन्होंने इस अभियान से हटकर स्वतंत्र रूप से खुद को जानने, खुद की संभावनाओं को पहचानने और आत्मनिर्णय करने में दिलचस्पी दिखाई। हैरीएट मार्टिनेयू ऐसी ही महिला थीं, जिन्होंने साबित किया कि महिलाएँ बतौर पत्रकार दुनिया का वस्तुनिष्ठ नजरिया सामने ला सकती हैं। उन्होंने येरुशलम और बेरूत पर सिलसिलेवार रूप से विश्वसनीय समाचार लिखे। वह यात्राओं में अकेले रहतीं थीं और उन्होंने राज्याश्रय पर भरोसा नहीं किया।
(East Coming West Travel Writers)

मध्य पूर्व के पार पूर्वी एशिया में भी ऐसी कुछ महिला यायावर पहुँचीं जिन्होंने पुरुषों के लिए आरक्षित क्षेत्र माने जाने वाले इलाकों में पहुँचकर खुद की काबिलियत का लोहा मनवाया। कार्ला सेरेना, क्रिस्टीना डी बेल्जिओजोसो ने हैरीएट की तरह ही पूरब के प्रामाणिक दस्तावेज तैयार किये। राजनीतिक निर्वासन के दौरान कैरोलीन ने 50 की उम्र में अपना नाम कार्ला रख लिया और बेल्जियम के अखबारों के लिए स्टॉकहोम, सैंट पीटर्सबर्ग, मास्को, कीव और कालासागर होते हुए इस्ताम्बुल तक छह साल घूम-घूमकर लिखती रहीं। बेरूत, सिरना और एथेंस होते हुए वे फिर इस्ताम्बुल, बातुम, तिफ्लिस और सेबेस्टोपोल पहुँचीं। फिरयेरेबान, बाकू और इसफाहान। कैस्पियन से अत्राखान, मास्को, वारसा, वियना और फिर रोम। वह ऐसे समय में जॉर्जिया और काकेशस से गुजर और लिख रही थीं जब यह इलाका राजनीतिक अस्थिरता झेल रहा था। इस तरह वह इस क्षेत्र में अकेले जाने वाली और वहाँ रुक कर काम करने वाली पहली यूरोपीय महिला भी बन गयीं। र्पिशया आने से पहले वह तीन साल काकेशस में रहीं, जहाँ रूसियों ने उन पर अंग्रेज हकूमत का जासूस होने का आरोप भी लगाया।

अध्याय 7-‘डांसिंग टू दि डिग’: प्रथम विश्व युद्ध से पहले महिलाएं और पुरातत्व

1890 में पुरातत्व शास्त्र और इजिप्तोलॉजी (मिस्र की कला, संस्कृति, इतिहास आदि का अध्ययन) विषयों की शुरूआत ने यूरोप में महिलाओं को इस विधा में खुद का भविष्य देखने का मौका प्रदान किया। इसमें घूमने के भी मौके थे। 1894 में यूनिर्विसटी कालेज आफ लंदन में इजिप्तोलॉजी विभाग में मार्गरेट मुरे ने प्रवेश लिया, जहाँ उनसे कहीं अधिक उम्र के पुरुष छात्र भी यह विषय पढ़ने पहुँचे थे। इस समय पुरातत्व शास्त्र विषय में 20 महिलाएँ अध्ययन करने पहुँची थीं। इससे ठीक 16 साल पहले ही इंग्लैंड में महिलाओं को डिग्री प्रदान करने की अनुमति हुई थी। मार्गरेट बाद में इसी विश्वविद्यालय में इस विभाग की प्रवक्ता, फिर प्रोफेसर और अंतत: विभागाध्यक्ष बनीं। अपने लंबे करियर के दौरान वे लगातार महिलाओं को जटिल विषयों में प्रवेश और महिलाओं को फील्ड में भेजने के लिए संघर्ष करती रहीं।

महिलाओं ने पूरब की सभ्यता को जानने के शुरूआती अभियानों में भागीदारी भी की लेकिन उनके योगदान को कम करके आँका जाता था। 19वीं सदी के पूर्वार्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी के रेसिडेंट के रूप में क्लौडियस जेम्स रिच जब बगदाद पहुँचे और उन्होंने बेबीलोन और मेसापोटामिया की सभ्यताओं का पता लगाया तो उनकी पत्नी लगातार उनके काम में भागीदार रहीं। उसी तरह सारा बेल्जोनी अपने पति गियोवानी के साथ न सिर्फ फील्ड में रहीं बल्कि उन्होंने मिस्र के खुदाई अभियान में भागीदारी भी की। वह अकेले ही सिनाई द्वीप और फिलीस्तीन की यात्राओं में भी गयीं। उन्होंने ‘डिस्कवरी विदिन पिरामिड’ पुस्तक का एक अध्याय   भी लिखा जो ‘ट्रीफ्लिंग’ शीर्षक से दर्ज है, इसमें मिस्र, नुबिया और सीरिया की महिलाओं का भी वर्णन है। एक और महिला हैं एमिलिया एडवर्ड जो यात्रा लेखिका, पत्रकार और उपन्यासकार के रूप में चर्चित होने के बाद पुरातत्व शास्त्र पढ़ने विश्वविद्यालय पहुँचीं। उन्होंने मिस्र की सभ्यता पर काफी लेखन किया है।

अध्याय 8-‘अरबिया डिजरटा’: लेडी ब्लंट और गर्त्रुद बेल की यात्राएं

लेडी ब्लंट और गर्त्रुद बेल की यात्राएं अरबी संस्कृति को रोमांटिक वर्णनों और पुरा-कथाओं में परोसकर लाती हैं। अरब के विशाल रेगिस्तानों में उस समय शायद ही कोई जोखिम मिजाज और झक्की यात्री जाना पसंद करता हो। रियाद में केन्द्रित वहाबी और रशीदी समुदाय के लंबे संघर्षों और इस्लाम पूर्व के कबीलों के जीवन को इन दो लेखिकाओं ने जिस तन्मयता और धैर्य से समझा और उस पर लिखा, वह वर्णन शायद ही समकालीन पुरुष लेखक कर सके थे। दोनों स्वतंत्र महिला लेखिकाएँ बाद में अपनी इसी काबिलियत से वहां की राजनयिक भी बनीं।
(East Coming West Travel Writers)

उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika