महामारी के दौरान घरेलू हिंसा

Domestic violence during the pandemic
-चन्द्रकला 

साल 2019 के अन्त में चीन के वुहान शहर से निकला एक वाइरस कोरोना जितनी तेजी से पूरी दुनिया में फैलकर लोगों को अपनी चपेट में लेता गया और मौतों की संख्या बढ़ती चली गई, उतनी ही तेजी से इस वाइरस के संक्रमण को रोकने के लिए एक देश के बाद दूसरे देश में तालाबन्दी शुरू होने लगी और धीरे-धीरे दुनिया ठहरने सी लगी। तालाबन्दी से ठहरती दुनिया ने जहां युवाओं को विभिन्न तरह से मानसिक अवसाद में धकेल दिया, वहीं घरों के भीतर मौजूद महिलाएं घरेलू हिंसा झेलने को मजबूर हुईं। (Domestic violence during the pandemic)

संयुंक्त राष्ट्र माहासचिव एंतोनियो गुतारेस ने लॉकडाउन में महिलाओं व लड़कियों के प्रति घरेलू हिंसा के मामलों में भयावह बढ़ोत्तरी दर्ज किए जाने पर चिंता जताते हुए सभी देशों की सरकारों से ठोस कार्रवाई का आह्वान किया था। उसके बाद पूरे विश्व में महिलाओं पर होने वाली घरेलू हिंसा के विषय में एक बहस शुरू हो गई।

दुनिया के कुछ देशों की लापरवाही के साथ-साथ भारत में भी कोरोना के फैलाव को रोकने में शुरूआती लापरवाही बरती गई। लेकिन बिना तैयारी के जल्दबाजी में की गई तालाबन्दी ने पूरे देश में एक प्रकार की उथल-पुथल मचा दी। इसका सबसे ज्यादा असर जहां मजदूरों के व्यक्तिगत और आर्थिक जीवन पर पड़ा वहीं तालाबन्दी के कारण महिलाओं के जीवन में भी विभिन्न प्रकार के दबाव आ गये। नौकरी से निकाले गए या फिर घर पर रहकर ही दफ्तर के लिए काम करते पुरुष सदस्यों के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई व अन्य जरूरतों का ध्यान रखना, परिवार में रहने वाले बुजुर्ग सदस्यों की देखभाल, घर की साफ-सफाई आदि का भी अधिकांश दारोमदार महिलाओं पर आ गया।

ऐसा नहीं है कि आर्थिक तंगी और अन्य प्रकार के तनाव से पुरुष प्रभावित नहीं हुए हैं। लेकिन यह भी सच है कि हमारे समाज और परिवारों के भीतर आज भी पितृसत्तात्मक मूल्यों का प्रभाव है, जहां घरेलू जिम्मेदारियों को निभाने की उम्मीद महिलाओं से ही की जाती है। कामकाजी महिलाओं के ऊपर पहले से ज्यादा जिम्मेदारियां आईं हैं। महिला कितनी भी सक्षम हो, उसका दर्जा दोयम ही माना जाता है। इसके परिणामस्वरूप किसी न किसी रूप में महिलाओं को मानसिक व शारीरिक तौर पर पुरुषों की हिंसा का शिकार होना पड़ता है। 

भले ही सतह पर आज सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक क्षेत्र में महिलाएं कहीं पर पुरुषों के बराबर और कहीं उनसे आगे निकलती दिख रही हैं, लेकिन वास्तविकता में आज भी पूरी दुनिया में पितृसत्ता प्रभावी है और ढांचागत समायोजन में अन्तत: महिला उत्पीड़ित होती है। यह प्रक्रिया सतत है, भले ही इसके रूप परिवर्तित हुए हों, किन्तु आधार में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं दिखता। इसका परिणाम होता है कि संकट के समय में पितृसत्तात्मक हिंसा अपने विकृततम रूप में सामने आती है। कईं अवसरों पर तो परिवार व समाज में अपने साथ होने वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार को स्वयं महिलाएं ही स्वाभाविक मान लेती हैं। जबकि वह किसी न किसी रूप मेंं हिंसा होती है।

परिवार के भीतर महिलाओं के साथ किए जाने वाले ऐसे व्यवहार को जिससे कि उसको किसी भी प्रकार की क्षति होती है, घरेलू हिंसा के रूप में परिभाषित किया गया। पूरी दुनिया में इस दिशा में कानूनों का निर्माण करने के लिए महिला संगठनों व संस्थाओं ने मुहिम चलाई। भारत में घरेलू हिंसा अधिनियम का निर्माण 2005 में किया गया जो कि 26 अक्तूबर 2006 से देश में लागू माना गया। कानूनन यह महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए बनाया गया है लेकिन उसके बाद भी भारत में ही लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी रूप में घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं।

किसी भी महिला के साथ घर की चारदीवारी के अंदर होने वाली किसी भी तरह की हिंसा, मारपीट, उत्पीड़न आदि के मामले इसी कानून के तहत आते हैं। यौन उत्पीड़न के मामलों में अलग कानून है लेकिन उसे इसके साथ जोड़ा जा सकता है। महिला को ताने देना, गाली देना, उसका अपमान करना, उसकी मर्जी के बिना उससे शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करना, जबरन शादी के लिए बाध्य करना, आदि जैसे मामले भी घरेलू हिंसा के दायरे में आते हैं। पत्नी को नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर करना, या फिर नौकरी करने से रोकना, दहेज की मांग के लिए मारपीट करना आदि भी इसके तहत आ सकते हैं।

मई के शुरूआती हफ्ते में ऐसी खबरें विभिन्न माध्यमों से तेजी से आने लगीं थीं कि देश और दुनिया में लॉकडाउन के दौरान घरों में रह रही अस्सी फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हो रही हैं। इससे पहले भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग ने लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ने पर चिंता जताई थी। लेकिन इसी समय केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि यह गलत तथ्य हंै, प्रत्येक राज्य में पुलिस कार्यरत है। हर राज्य के प्रत्येक जिले में एक स्टॉप क्राइसिस सेंटर है। उनका कहना था कि यह डर फैलाया जा रहा है। विशेष रूप से एनजीओ से जुड़े कुछ लोगों ने डर फैलाया है कि देश और दुनिया में लॉकडाउन के दौरान घरों में रह रही 80 फीसदी महिलाओं को पीटा जा रहा है। जबकि ठीक इसके विपरीत राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा कह रही थीं कि आयोग को लॉकडाउन के दौरान ईमेल के जरिए शिकायतें मिल रही हैं। उनका कहना था कि मार्च के पहले सप्ताह में एनसीडब्ल्यू को देशभर में महिलाओं के खिलाफ अपराध की 116 शिकायतें मिली थीं। लॉकडाउन के दौरान महज 23 से 31 मार्च के दौरान ही घरेलू हिंसा की शिकायतें बढ़कर 257 हो गईं थीं और अप्रैल में घरेलू हिंसा की 315 शिकायतें मिली थीं। रेखा शर्मा यह मानती हैं कि कोरोना संकट की वजह से घरों में कैद लोगों का गुस्सा दिन ब दिन बढ़ रहा है। परिवारों में बढ़ते तनाव का आसान शिकार औरतें बन रही हैं ।

‘द वायर’ की संवाददाता आफशा अंजुम का मानना है कि ‘‘घरेलू हिंसा इस आपदा का अहम और दर्दनाक साइड-इफैक्ट है जिससे बचाव के लिए समाज और सिस्टम दोनों को साथ आना होगा क्योंकि ये वक्त हाथ थामने का है, हाथ उठाने का नहीं।’’

तालाबन्दी के दौरान घरेलू महिलाओं का अपना समय बिल्कुल खत्म-सा हो गया है। पति व बच्चों के घर से बाहर निकलने के बाद जो वक्त महिलाओं को मिलता था, उस समय में वह किसी भी तरह से अपने शारीरिक और मानसिक थकान से कुछ देर के लिए आराम पा जाती थीं। किन्तु लगातार घर में पुरुषों की मौजूदगी से उनके ऊपर एक प्रकार का दबाव बढ़ता चला गया। विशेषकर उन घरों की स्थिति और ज्यादा खराब हो गई जहां पर कि सीमित जगह और बन्द कमरे हैं। परिवार में बढ़ते आर्थिक संकट या अतिरिक्त तनाव का खामियाजा भी महिलाओं को ही भुगतना पड़ रहा है। पुरुष जिन पर कि स्वयं भी तनाव अथवा किसी प्रकार का दबाव लगातार बना हुआ है, अपने अवसाद व तनाव से उबरने के बजाय अपनी खीज व गुस्से को परिवार की महिलाओं और फिर बच्चों पर निकालते हैं। जिसके कारण कितने ही परिवारों में लड़ाई-झगड़ों में वृद्घि हुई है। आर्थिक संकट के कारण परिवार में होने वाली किसी प्रकार की बीमारी भी इस समय पर अवसाद का कारण बन रही है। कई जगह पर यह तथ्य भी सामने आये हैं कि गर्भवती महिलाओं की उचित देखभाल करना भी इस संकट के दौर में एक बोझ बन गया, जिसके कारण महिलाओं को शारीरिक व मानसिक हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है।

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष का यह भी कहना है कि लॉकडाउन की वजह से इस समय बहुत सी शिकायतें आ रही हैं। महिलाएं पुलिस तक नहीं पहुंच पा रही हैं या जाना नहीं चाहती। उन्हें डर है कि उनका पति पुलिस स्टेशन से एक दो दिन बाद बाहर आ जाएगा तो वह फिर टार्चर करेगा। इस समय वह अपने मायके भी नहीं जा सकती हैं।

कईं जानकारों का मानना है कि अचानक हुई तालाबन्दी से महिलाएं बेसहारा हो गईं हैं। पतियों की आमदनी तो रुकी हुई है। आर्थिक तंगी से महिलाओं के हालात और भी बुरे हो गए। विशेषकर गरीब महिलाएं जो कि घरों, कारखानों, खेतों  अथवा अन्य किसी असंगठित क्षेत्र में मजदूरी करके अपनी आमदनी करती थीं, वह पूरी तरह से रुक गई। अन्य कामाकाजी महिलाएं जिनकी स्वयं की आमदनी थी, तालाबन्दी ने छीन ली और अब उनको परिवार के पुरुषों पर ही निर्भर होना पड़ रहा है। कईं बार परिवार में आपसी टकराव का यह भी एक कारण बन रहा है। कोरोना से बचने के बहुत तरह के उपायों और घर को विषाणु से बचाती महिलाओं को दर्शाते उपदेश और विज्ञापनों की मीडिया में भरमार है। लेकिन कहीं पर भी परिवारों के भीतर कार्य विभाजन और पारिवारिक हिंसा पर जागरूकता वाले संदेश डालने का साहस शायद अभी हमारे समाज में उत्पन्न नहीं हुआ है जिसका प्रतिरूप मीडिया में दिखता हो। आर्थिक संकट के बीच प्राइवेट नौकरी कर रहे पुरुषों के भीतर नौकरी चले जाने के भय ने पारिवारिक समस्या को और ज्यादा बढ़ा दिया है। तालाबन्दी में लगातार घर के अन्दर ही रहने के कारण छोटे-छोटे मुददें पर मनमुटाव बढता चला जा रहा है जिसका ठीकरा अन्तत: महिलाओं पर ही फूटता है।

हालांकि इस दौरान महिलाओं की तरफ से आने वाली शिकायतें कम ही सुनी जा रही हैं क्योंकि महिलाएं प्रत्यक्ष रूप में अपनी शिकायत दर्ज नहीं कर सकतीं, इसलिए फोन काल्स और ईमेल के जरिए महिलाओं ने अपनी शिकायतें दर्ज की हैं। एकल महिलाओं की स्थिति और ज्यादा खराब है। कई परिवारों में एकल महिलाएं अपनी कमाई से अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही थीं। काम बन्द होने से ऐसे परिवारों के भूखों मरने की नौबत आ गई है। इन महिलाओं तक आसानी से सरकारी मदद भी नहीं पहुंच पाती है। ऐसी महिलाओं का भूख से बचने के लिए स्वयं का शरीर बेचना या अपने बच्चोंं को बेचने के लिए मजबूर होना, किसी भी रूप में हिंसा से कम नहीं माना जा सकता है।

पारिवारिक झगड़ों के दौरान होने वाली हिंसा में उत्तरप्रदेश, दिल्ली, बिहार मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र आगे हैं। ये वे मामले हैं जहां महिलाओं ने ईमेल या संदेश के जरिए आयोग तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की। उत्तरप्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष विमला बाथम कहती हैं ‘‘हमारे पास अभी इतने आंकडे़ तो नहीं कि हम कह सकें कि वाकई लॉकडाउन घरेलू हिंसा को बढ़ा रहा है। लेकिन कुछेक मामले तो आए हैं जिनका सीधा संबध घर में पुरुषों की लगातार मौजदूगी के कारण महिलाओं पर बढ़ते दबाव से है। फोन पर उनसे बात के दौरान यह साफ लग रहा था कि महामारी की वजह से उपजा तनाव महिलाओं के उपर निकल रहे गुस्से की वजह बन रहा है। घरेलू हिंसा से जूझ रही ये महिलाएं अब न तो आम दिनों की तरह अपने माता-पिता के पास जा सकती हैं और न ही किसी दोस्त को मदद के लिए बुला सकती हैं। पुरुष अपनी कुंठा और गुस्सा महिलाओं पर निकाल रहे हैं। आयोग के मुताबिक पहले चरण के लॉकडाउन के एक सफ्ताह के भीतर ही आयोग में घरेलू हिंसा की कुल 527 शिकायतें दर्ज की गई।’’

मनोचिकित्सकों का मानना है कि कोरोना जैसी महामारी के दौरान इंसानी व्यवहार में बदलाव आना और समाज में पहले से मौजूद हिंसा का बढ़ जाना सामान्य घटना है। उनका यह भी कहना है कि चूंकि आम लोगों को सिर्फ शारीरिक बंदिशों में ही  नहीं रहना पड़ रहा है बल्कि आर्थिक दिक्कतों का सामना भी करना पड़ रहा है इसलिए हर देश में सिस्टम का एक हिस्सा लोगों के मानसिक संतुलन और पीड़ितों की सुरक्षा के लिए तैयार करना होगा।

ऐसा नहीं है कि महिलाओं पर होने वाली हिंसा की घटनाएं भारत में ही हो रही हैं, बल्कि विश्व के तमाम देशों में महिलाओं पर होने वाली हिंसा इधर के दिनों में बढ़ी है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटिनियो गुतरेस को भी इस आशय की चेतावनी देनी पड़ी थी कि लॉकडाउन के दौरान भयावह तरीके से बढ़ रही घरेलू हिंसा के मामलों पर गम्भीरता से सोचने की जरूरत है। महामारी के समय महिलाओं को दोहरे संकट का सामना करना पड़ता है। महामारी के संकट के अतिरिक्त उन्हें सामाजिक व मानसिक तनाव और पितृसत्तात्मक खीज का सामना भी करना पडता है। काम का बोझ और तनाव जहां उन्हें भीतर से मानसिक तौर पर कमजोर बना देता है वहीं परिवार के असंवेदनशील व्यवहार से उनकी स्थिति और भी खराब होती चली जाती है। 

चीन में सरकार को इन दिनों एक कानून लाना पड़ा है कि दम्पति को तलाक लेने से पहले 30 दिन तक साथ रहना होगा। क्योंकि कोरोना के कारण लगे तालाबन्दी के बाद चीन में अचाानक शादीशुदा जोड़ों ने चीनी अदालतों में तलाक के लिए आवेदन किया है। चीन की पुलिस के मुताबिक कोरोना लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ घरेलू मारपीट के मामाले लगभग तिगुने हो गए हैं। ऐसे में उन्हें कहीं ज्यादा सतर्क रहना पड़ रहा है।

वाश्ािंगटन में 8 अपै्रल के आस-पास ही लॉकडाउन के दुष्प्रभाव सामने आने लगे। अमेरीका में रोजाना 951 शिकायतें सामने आती रहीं। अमेरिका में इस समय घरेलू हिंसा के मामालों में 35 फीसदी की वृद्वि हुई है। आयोग के सामने महिलाओं के साथ हिंसा के सौ से ज्यादा मामले सामने आए हैं। कोरोना वाइरस के संक्रमण से ब्रिटेन में सिर्फ छह हफ्तों में घरेलू हिंसा के आरोप में पुलिस ने 4093 लोगों को गिरफ्तार किया है। ब्रिटेन में शरणार्थियों के लिए काम करने वाले संगठन की निदेशक लीसा किंग ने कहा है कि राष्ट्रीय घरेलू दुव्र्यवहार हेल्पलाइन में औसतन 25 प्रतिशत कॉल वृद्धि देखी गई। पारिवारिक झगड़ों में 9मार्च से नौ फीसदी बढोत्तरी हुई है। पारिवारिक झगड़ों में, घरेलू हिंसा में रोजाना 100 लोग गिरफ्तार हो रहे हैंं और लंदन में केवल घरेलू हिंसा के 33 प्रतिशत मामले बढ़े हैं।

स्पेन मे भी तालाबन्दी के दौरान महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। इटली में भी एनजीओ महिला हिंसा में हस्तक्षेप कर रहे हैं।

फ्रांस में घरेलू हिसां के 36 प्रतिशत मामले मिले हैं। रूस में घरेलू हिंसा के आंकड़ों में वृद्वि हुई है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए और उनकी परेशानी दूर करने के लिए जरूरी और अहम कदम उठाए जा रहे हैं। जिसमें यहां पर महिला हिंसा के आधिकारिक आयोग ने एक नया रास्ता निकाला है कि यदि महिला पुलिस को स्वयं फोन नहीं कर पायेगी तो वह निकटस्थ दवा की दुकान पर जाकर एक कोड वर्ड बोल दे-मास्क 19 इसके बाद पुलिस खुद ब खुद मदद का इंतजाम कर लेगी। इससे मिलती-जुलती पहल स्पेन में हो चुकी है।

लेबनान और मलेशिया में हेल्पलाइन पर आने वाली फोन कॉल्स की संख्या तीन गुना हो गई है। आस्ट्रेलिया में गूगल जैसे सर्च इंजनों पर घरेलू हिंसा संबधी मदद के लिए पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा जानकारी इन दिनों खोली जा रही है। स्पेन के कारालाना क्षेत्र के स्थानीय प्रशासन ने कहा कि हेल्पलाइन नम्बर पर काल्स की संख्या 20 फीसदी बढ़ी है। आस्टे्रलिया में घरेलू हिंसा से बचने के लिए किए गए ऑन लाइन सर्च में 75 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।

यदि उत्तराखण्ड में घरेलू हिंसा के मामले देखें तो यहां पर भी आंकडे़ यही बताते हैं कि तालाबन्दी के दौरान महिला हिंसा में बढ़ोत्तरी हुई है। दैनिक सामाचार पत्र हिन्दुस्तान में अपै्रल माह के अन्त में प्रस्तुत महेश पाण्डे की रिपोर्ट घरेलू हिंसा के मामलों की वृद्घि को दर्शाती है।

रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के दौरान घरों में मनमुटाव बढ़ा है। पति-पत्नी के झगड़ों के साथ ही दहेज को लेकर ससुराल पक्ष द्वारा महिला के साथ मारपीट के मामले भी प्रकाश में आये हैं। सर्वाधिक 438 मामले उधमसिंह नगर में आये हैं। दूसरे नम्बर पर देहरादून में 312 शिकायतें दर्ज हुई हैं। पुलिस कंट्रोल रूम के अनुसार लॉकडाउन की अवधि के दौरान 24 मार्च से 24 अपै्रल तक 1323 शिकायतें पुलिस कंट्रोल रूम को मिली हैं। जबकि 21 फरवरी से 23 मार्च तक 1092 शिकायतें आई हैं।

22 मई 2020 के दैनिक हिन्दुस्तान की खबर के अनुसार डीजी कानून व्यवस्था अशोक कुमार ने कहा है कि लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले दोगुने हुए हैं। पहले पांच सौ से छ: सौ मामले एक महीने में आते थे। अब एक हजार से 12 सौ मामले आ रहे हैं। तत्काल कार्रवाई के निर्देश जनपदों को दे दिए गए हैं। अन्य अपराध घटे हैं। सबसे ज्यादा शिकायतें घर में काम के लिए पति-पत्नी के बीच मारपीट, नौकरी के लिए विवाद, सास-ससुर के साथ विवाद आदि सामने आये हैं।

11 मई को महिला उत्पीड़न से जुड़ी शिकायतों के लिए समिति बनाई गई है।

कोरोना महामारी के इस दौर में जब कि घरों के भीतर ही परिवार कैद हैं, ऐसे मेंं इन आंकड़ों से एक हद तक तो यह निष्कर्ष निकाला ही जा सकता है कि महिलाओं के लिए आज भी परिवार के भीतर की स्थितियां बहुत ज्यादा बदली नहीं हैं और यह भी कि घरेलू हिंसा सर्वव्यापी है। हालांकि यह भी सच है कि यह आंकडे़ तस्वीर का एक टुकड़ा भर है। क्योंकि पुलिस तक अपने साथ होने वाली हिंसा की सूचना देना कम से कम भारत में बहुत छोटी अबादी के लिए ही सम्भव है। अधिकांश हिंसा के मामले तो परिवार व समाज की परम्पराओं के भीतर दफ्न हो जाते हैं और जिन्दगियां बनती-बिगड़ती रहती हैं। चूंकि आज भी पूरी दुनिया के समाजों का बुनियादी स्वरूप पितृसत्तात्मक है, और व्यवहार में महिलाओं को दोयम ही समझा जाता है, इसलिए उनके साथ होने वाली हिंसा भी स्वाभाविक आकार ग्रहण कर लेती है। इस वास्तविकता को समझे बिना कि महज कानून बना देने से किसी समस्या का सामाधान हो ही नहीं सकता, जब तक कि उसको स्वीकार करने के लिए जमीनी परिस्थितियां तैयार न हो, घरेलू हिंसा खतम नहीं हो सकती। इसलिए आवश्यक है कि महिलाएं को न केवल चेतना के स्तर पर बल्कि आर्थिक, सामाजिक स्तर पर भी आत्मनिर्भर बनना होगा। और स्त्री-पुरुष के इन्सानी व स्वभाविक रिश्तों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। 

जिला                शिकायतें

1़ उधम सिंह नगर–    438
2़ देहरादून—-           312
3़ हरिद्वार—–           281
4़ नैनीताल—-           116
5़ पौड़ी—- –             31
6़ पिथौरागढ़—          23
7़ टिहरी—–             21
8़ चमोेली—–         19
9़ अल्मोड़ा—-           17
10़रुद्रप्रयाग—           14
11़ बागेश्वर—           13
12़ उत्तरकाशी–         13
13़ चंपावत —           11
डायल -112–            14 मामले

स्रोत-: 29 अप्रैल 2020, दैनिक हिन्दुस्तान, देहरादून संस्करण