नशा नहीं रोजगार चाहिए

कमल नेगी

उत्तराखण्ड में मातृ शक्ति के साथ आमजन शराब की दुकानें खुलने के विरोध में फिर सड़कों पर हैं। सुदूर गाँवों में शराब की दुकानें खोले जाने की सरकार की मंशा पर प्रश्न उठ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश के तहत शराब की दुकानें हाईवे (राज्य एवं राष्ट्रीय राजमार्ग) के 500 मीटर के दायरे में नहीं खोली जा सकती हैं। इस निर्देश के जारी होते ही शराब व्यवसायियों का रुख गाँवों एवं कस्बों की ओर हुआ है। जिसका क्षेत्र की जनता विशेष रूप से महिलाओं द्वारा भारी विरोध किया जा रहा है सरकार भी शराब की दुकानों को शीघ्र खोलने के लिये नये-नये नियम-कानून बना रही है। राज मार्गों को जिला मार्ग में तब्दील किया जा रहा है। क्षेत्रों की जनता विशेष रूप से महिलायें शराब की दुकानों को उनके गाँवों, बाजारों में स्थानान्तरित किये जाने का पुरजोर विरोध कर रही हैं। महिलाओं में भारी रोष है। वे अपने दैनिक कार्य, खेती आदि को छोड़कर हाथों में डंडा, लाठी, दरांती लेकर सड़कों पर उतरी हैं। सबसे आशाप्रद बात यह हुई है कि युवा वर्ग उनके समर्थन में खड़ा है। ग्रामीण महिलाओं का गुस्सा आसमान पर है। पहले ही अपने पुरुषों की शराब पीने की आदतों से परेशान महिलाएँ सरकार को कोस रही हैं, जो गाँव-गाँव में शराब की दुकानें खोलकर उन्हें आसानी से शराब परोस रही है।

अविभाजित उत्तर प्रदेश में गाँव-गाँव में शराब की दुकानें खोलने की पहल मुलायर्म सिंह सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई। उत्तराखण्ड में गाँव-गाँव तक शराब पहुँची, जिसका भारी विरोध महिलाओं द्वारा किया गया। मौना गाँव की महिलाओं ने वहाँ खुली शराब की दुकान के विरोध में रैली निकालकर सभा की। कई क्षेत्रों से आई सैकड़ों महिलाओं ने शराब विरोधी नारों के साथ रैली निकाली परन्तु एक बार में खुल गई इन दुकानों को भ्रष्ट नेताओं ने संरक्षण देकर शराब विरोधी आन्दोलन को खत्म कर दिया। आज भी वही स्थिति है और यह स्थिति और भयावह हो गई है क्योंकि स्कूली बच्चे, बेरोजगार नवयुवक, गाँव का आम युवक सरलता से शराब प्राप्त कर रहा है और स्थिति दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है। गाँवों में ग्रामीणों की एकता खत्म हो रही है और शराब माफिया दिन ब दिन ताकतवर होते जा रहे हैं पर महिलाएँ अपनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद शराब के विरोध में एक हो रही हैं। भटेलिया (मुक्तेश्वर) में शराब की दुकानें बन्द करने के लिये महिलाएँ धरने में बैठी हैं। धारी व ओखलकाण्डा ब्लॉक में लोग शराब की दुकान के विरोध में एकजुट हो रहे हैं। सुन्दरखाल से धानाचूली तक वहाँ के ग्रामीणों ने रैली निकालकर सरकार को शराब की दुकानें न खोलने के लिये आगाह किया है। गाँव-गाँव से शराबबन्दी की आवाजें उठ रही हैं। पंचायत मज्यूली के दीनी तल्ली, दीनी मल्ली, मनाघेर, महतोलिया गाँव, सेलालेख, अनर्पा व जलना एवं नील पहाड़ी के लोगों ने सरकार को आगाह किया है कि शराब की दुकानों को यदि उनके गाँवों में स्थानान्तरित किया जायेगा तो वे इसका पुरजोर विरोध करेंगे। यह भी एक विडम्बना है कि उत्तराखण्ड के सुदूर गाँवों में जरूरत की चीजें नहीं मिल पातीं पर शराब वहाँ आसानी से सुलभ है। यह हमारी सरकारों पर एक प्रश्न चिह्न है कि चुनाव जीतने के बाद गाँवों की दशा सुधारने के स्थान पर शराब की दुकान खोलना उनकी प्राथमिकता में क्यों है। गाँवों में राशन की दुकानों में राशन नहीं है पर शराब बदस्तूर बिक रही है। गाँवों में आवागमन के साधनों का अभाव है पर शराब हर जगह उपलब्ध है। स्कूलों में अध्यापकों की कमी है पर शराब मौजूद है। छोटे-छोटे स्कूली बच्चे भी इसका शिकार बन रहे हैं पर सरकार को इसकी चिन्ता नहीं है क्योंकि उन्हें तो राजस्व चाहिये, भले ही प्रदेश का नौजवान शराब पी-पीकर अपने को खत्म कर ले। आखिर कहाँ है नेता, और कहाँ है अफसरशाही? जनता के संसाधनों से चलने वाले ये लोग कब तक गाँवों को संसाधनहीन बनाकर उन्हें शराब उपलब्ध कराते रहेंगे?
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पुरुषों की शराब की लत से ग्रामीण महिलाओं के जीवन पर दुष्प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। घर, खेत, जंगल के कामों से लदी हुई ग्रामीण महिलाओं में गाँवों में खुली सरकारी शराब की दुकानों के प्रति गुस्सा दिखाई देता है। उनका कहना है कि शराब की दुकानें एक बार बन्द हो जांय तो क्षेत्र में शान्ति एवं सुख समृद्धि स्वयं आ जायेगी। पर राजस्व के नाम पर सरकारें ग्रामीण महिलाओं की आवाजों को लगातार अनसुनी कर ग्रामीण जनता को नशे के जाल में डाल रही हैं।

शराब के विरोध में महिलाएँ चुप नहीं हैं वरन् उत्तराखण्ड के कई जिलों में शराब की दुकानें खुलने पर उन्होंने अपना आक्रोश एवं गुस्सा दर्शाया है। हल्द्वानी में महिलाओं ने शराब की दुकान के कर्मचारियों को बन्द कर दिया और सड़क जाम कर दी। महिलाओं का गुस्सा शराब की दुकानों को लेकर इतना अधिक था कि परिवहन मंत्री यशपाल आर्य का घेराव कर गैस गोदाम रोड बन्द कर दी। हल्द्वानी में ही रामपुर रोड में खुली शराब की दुकान के विरोध में एस.डी.एम. कोर्ट में प्रदर्शन किया। अपने पारिवारिक लोगों, विशेष रूप से अपने बच्चों की शराब की लत से दुखी महिलायें अपनी ही सरकार से जूझ रही हैं। गरुड़-बागेश्वर में महिलाओं ने शराब की दुकानों को खोले जाने से व्यथित होकर तल्ली लोहारी में एक मकान का ताला तोड़कर वहाँ रखी शराब की पेटियों को आग के हवाले कर दिया और इसके बाद गरुड़ बैजनाथ हाईवे जाम कर दिया। उन्होंने प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि उनके गाँव में शराब की दुकानें खोली जायेंगी तो वे सामूहिक आत्मदाह कर लेंगी। महिलाओं के इतने व्यापक विरोध के बाद भी सरकारें शराबबन्दी की बात नहीं करतीं क्योंकि वह इसे अपने राजस्व का सबसे मजबूत साधन मानती हैं पर जनता का यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है कि लोगों के स्वास्थ्य या मौत की कीमत पर शराब से राजस्व प्राप्त करना क्या सरकार की बेइंसाफी नहीं? मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार से उत्तराखण्ड की महिलाओं का प्रश्न है कि राजस्व के नाम पर क्यों उत्तराखण्ड के नौनिहालों को शराब परोसकर खत्म किया जा रहा है? उत्तराखण्ड की महिलाओं का त्रिवेन्द्र सरकार से कहना है कि उत्तराखण्ड में शराब की दुकानों को क्रमश: कम किया जाय और ग्रामीण क्षेत्रों से शराब की सभी दुकानें हटाई जांय। उत्तराखण्ड की आम महिलाओं का यह भी कहना है कि शराब को ही राजस्व का जरिया न मानकर राजस्व प्राप्ति के अन्य स्रोत खोजे जांय। उत्तराखण्ड की मनोरम वादियाँ राजस्व का एक बहुमूल्य भण्डार बन सकती हैं। यहाँ का धार्मिक पर्यटन भी राजस्व का एक मजबूत स्रोत बन सकता है। देवभूमि उत्तराखण्ड को शराब की दुकानों से पाटकर न तो राज्य का भला होगा और न यहाँ के नौनिहालों का।
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