एक शिक्षिका की डायरी-2

रेखा चमोली

4 अगस्त 2011

शब्दों से कहानी बनाना

हमारे पास कोई इतना बड़ा कमरा नहीं है कि कक्षा 1 से 5 तक के 53 बच्चे उसमें एक साथ बैठ पाएं और उनके साथ अलग-अलग स्तरानुसार शिक्षण कार्य हो पाए। आज मैं घर से आते हुए पुराने अखबार और अपने बच्चों की आधी भरी हुयी पुरानी कापियां साथ ले आयी थी ताकि प्रथम वादन में कक्षा 1 व 2 को व्यस्त रख पाऊँ और इतने में 3, 4, 5 को उनका काम समझा सकूँ। कक्षा 1, 2 को आंगन में एक गोला बनाकर कविताएं गाने को कहा और स्वयं कक्षा 3,4,5 के पास गयी। आज हमें शब्दों से कहानी बनाने की गतिविधि करनी थी।

कहानी लिखने के विषय में बच्चों से पिछले दिनों कक्षा में विस्तृत बात हुई, जिसकी शुरूआत कहानियाँ सुनाने से हुई थी। पिछली कक्षाओं में हमने मिलजुल कर कहानियाँ सुनने, पढ़ने, कहने की कुछ गतिविधियाँ की थीं। इससे हमने कहानी क्या होती है, यह जानने का प्रयास किया था। आज मैंने पुन: बच्चों का ध्यान कहानी के घटकों की ओर दिलाने की कोशिश की। जैसे- कोई पुरानी बात, किसी बात, घटना या अनुभव को बताना, कुछ लोगों की बात या किसी व्यक्ति की या जीव-जन्तु की बात, बाकी दिनों से अलग बात, किसी परेशानी में पड़ना और उससे बाहर निकलना, समय गुजरना, संवाद होना आदि। इस आरम्भिक बातचीत के बाद मैंने श्यामपट पर कुछ शब्द लिखे, जैसे- बस, भीड, सड़क, ड्राइवर, तेज शोर, रास्ता, पेड़, लोग आदि और बच्चों को शब्दों से कहानी लिखने को कहा।

मैं कक्षा 1-2 के साथ काम करने लगी। इन कक्षाओं में कुल मिलाकर 23 बच्चे हैं। मैंने श्यामपट पर कुछ शब्द लिखे, जैसे- नमक, कान, नाक, जाना, जानवर आदि। उनमें ‘न’ पर गोला बनाने की गतिविधि कुछ बच्चों को बुलाकर की। फिर सभी बच्चों को अखबार का 1-1 पेज देकर कहा कि वे इसमें ‘न’ और ‘क’ पर गोला लगाएं व उन्हें गिनें कि वे अक्षर कितनी बार आए हैं। दरअसल बच्चे हमारी अनुपस्थिति में अपनी कापियों को बहुत खराब कर देते हैं। कक्षा 1 के बच्चे पेज बहुत फाड़ते हैं इसलिए मैंने उन्हें यह काम अखबार में करने को दिया जिससें वे कमरे और बरामदे में दूर-दूर भी बैठें और उन्हें कुछ नया भी करने को मिले। अखबार के अक्षर बहुत बारीक लिखे होते हैं। पर फिर भी मैंने देखा, बच्चे अक्षर पर गोला बना रहे थे और ऐसे करना है जी, बोलने लगे थे। जो नहीं कर पा रहे थे वे दूसरों से पूछ रहे थे और अखबार में बने चित्र देख रहे थे। इसी बीच कक्षा चार व पांच के बच्चे अपना काम कर चुके थे। मैंने बच्चों को उनकी कहानियों के शीर्षक लिखने के लिए कहा।

करीब सवा नौ बजे बच्चे एक बड़ा सा गोला बनाकर अपनी-अपनी कहानियाँ सुनाने को तैयार थे। तीनों कक्षाओं को मिलाकर आज कुल 27 बच्चे उपस्थित थे।

सबसे पहले शुभम (कक्षा-3) ने अपनी कहानी सुनायी।

1. एक बस थी। जिसे चला रहा था ड्राइवर। अचानक एक आदमी बोला, बस रोको। आगे सड़क टूटी हुई है। ड्राइवर ने बस रोकी। सड़क पर पत्थर और पेड़ गिरे थे। लोगों ने मिलकर बस के लिए रास्ता बनाया और बस आगे चली। सब लोग अपने गाँव पहुँचे ।

2. दीक्षा (कक्षा-3)- ने अपनी कहानी में लिखा कि एक पेड़ के गिरने से सड़क बन्द हो गई। जब ड्राइवर पेड़ हटाने लगा तो जंगल से पेड़ काटने वालों की आवाज आयी ये हमारा पेड़ है। अपनी बस वापस ले जाओ। जंगल से पेड़ काटने वाले आए, सबने मिलकर पेड़ को हटाया। फिर लोग वापस अपने गाँव गए। दीक्षा ने अपनी बस का नाम रखा ‘मुनमुन’ और ड्राइवर का ‘राहुल’।

3. दीपक (कक्षा-5)- एक गाँव से बाजार जाने का एक ही रास्ता था। बाजार जाने वालों की बहुत भीड़ हो गयी थी। बस बहुत भर गई। ड्राइवर ने बहुत तेज बस चलायी। बस दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। सड़क भी टूट गयी। और लोगों को चोट लग गयी। लोगों का शोर सुनकर आसपास से लोग बचाव करने आए और घायलों को अस्पताल ले गए। लोगों ने ड्राइवर से कहा, इतनी तेज गाड़ी नहीं चलानी चाहिए। दीपक ने अपने ड्राइवर का नाम रखा ‘राज’।
4. दिव्या (कक्षा-4)- प्रदीप की बस थी जिसे वह बहुत तेज चला रहा था । रास्ते में पेड़ गिरा था जिसमें बस टकरा गई और लोगों को चोट लगी आदि।
(Diary by Rekha Chamoli)

5. अनिल (कक्षा-5)- अनिल ने अपनी कहानी में रेलगाड़ी को भी जोड़ा जो बस से तेज चल रही थी। रास्ते में गिरे पेड़ को लोग जंगल में वापस रख रहे थे।

6. अंजली (कक्षा-4)- अंजली ने अपनी कहानी मे बहुत से संवाद भी लिखे। अंजली बहुत अच्छी रचनाकार हैं। अंजली की बस में बहुत भीड़ थी। ड्राइवर ने लोगों से कहा, जरा आराम से बैठना। लोग उसकी बात को सुनकर हँसे। लोगों ने कहा, क्या तुम्हारी बस कच्ची है जो टूट जाएगी। ड्राइवर ने कहा तुम मेरी बात पर हँसोगे तो मैं बस तेज चलाऊंगा।

लोग- नहीं-नहीं, बस गिर जाएगी।

ड्राइवर- तुम मुझ पर भले ही हँस लो पर मेरी बस पर नहीं हँसना।

लोग- हमें उतार दो। हम वापस चले जाएंगे। ड्राइवर बस को धीरे चलाने लगा। अंजली ने यह भी लिखा कि ड्राइवर बारहवीं पास था। उसे अपनी गाड़ी से बहुत प्यार था।

7. जयेन्द्री (कक्षा-5)- जयेन्द्री ने बहुत लम्बी कहानी लिखी थी।

एक बुढिया थी। उसका नाम रानी था। उसकी बेटी का नाम निक्कू था। वह अपनी ससुराल में जाती है। एक दिन रानी बस में बैठकर अपनी बेटी से मिलने जाती है। रास्ते में सड़क टूटी होती है। लोग लकड़ी का पुल बनाकर सड़क पार करते है। आगे जाकर बस पेड़ से टकरा जाती है। वहां भीड हो जाती है। ड्राइवर तेजी से बस चलाने लगता है। रात हो जाती है। रानी को निक्कू की याद आती है। वह उसके घर जाती है। रात में बाहर शोर सुनकर निक्कू बाहर आती है। वह कहती है ये मेरी अम्मा है। माँ-बेटी मिलती हैं आदि।

8. साधना (कक्षा-5) की कहानी में रमेश नौकरी की तलाश में शहर जाता है। वहाँ उसे ड्राइवर की नौकरी मिलती है। वह पहली बार बस चलाता है। रास्ते में बहुत सारे पेड़ थे। बस रुक जाती है। बस खराब हो जाती है, लोग डर जाते हैं कि हम कहाँ फंस गए। बाद में बस ठीक हो जाती है। रमेश सोचता है मैं बस ठीक से चलाना सीखूंगा। बाद में वह ठीक से बस चलाना सीखता है। पैसे कमाता है। शादी करता हैं। घर बनाता है। उसके बच्चे होते हैं।

9. प्रीति (कक्षा-3) सुमन ड्राइवर अपने घर जा रहा था। रास्ते में उसे एक साँप व चिड़ियां भी मिलीं। ड्राइवर लड़की को अपनी गाड़ी में बिठाकर घर छोड़ने गया।

10. भवानी (कक्षा-3) भवानी ने भी अपनी कहानी में संवाद लिखने का प्रयास किया।
(Diary by Rekha Chamoli)

एक बस जा रही थी अचानक बहुत जोर की आवाज हुयी। एक बहुत बड़ा पेड़ गिरा। ड्राइवर बोला-अरे ये क्या हुआ?  इतनी जोर की आवाज कहाँ से आयी?

उसने बस रोक दी।

लोग बोले- बस क्यों रुक गयी।

ड्राईवर – पेड़ गिरा है। सच में पेड़ गिरा है। फिर सब मिलकर पेड़ हटाते है। बस आगे बढती है।

11. आरजू (कक्षा-4) ने अपनी बस में ड्राइवर को होशियार कहा। और अपनी बस में कंडक्टर भी रखा।

12. प्रिंयका (कक्षा-3) ने अपनी कहानी इस तरह से शुरू की ‘‘एक बार की बात है, एक बहुत सुंदर बस थी।

13. गजेन्द्री (कक्षा-3) की कहानी में सब कुछ बहुत सुंदर था। सुंदर बस अच्छा रास्ता, सुंदर हरा-भरा पेड़ और मजे की यात्रा।

14. प्रवीन (कक्षा-5) ने न जाने क्यों बस को सड़क से नीचे ही गिरा दिया।

रोहित, निधि, मनीष, शोभा, मनीषा, आईशा, शिवानी, मनोज, विशाल, अरविन्द, सरस्वती इन सभी बच्चों की कहानी में कुछ चीजें एक जैसी थीं। बस का चलना, किसी कारण बस का रुकना। एक और बात यह भी महत्वपूर्ण थी कि ज्यादातर बच्चों ने समस्या का समाधान निकालने के लिए मिलजुल कर प्रयास किया था। बरसात का मौसम है और सड़क व बस को लेकर अधिकांश बच्चों के अनुभव एक जैसे हैं। इस मौसम में पहाड़ी सड़कें जगह-जगह टूट जाती हैं, यातायात कुछ घण्टों के लिए बाधित हो जाता है और जीवन एक तरह से रुक जाता है। शायद इसीलिए ज्यादातर बच्चों की कहानियाँ मिलती-जुलती थीं। मंैने नोट किया कि सभी बच्चों ने अपनी कहानी को आत्मविश्वास के साथ सुनाया। वे बीच में कहीं रुके नहीं, ना ही किसी शब्द को पढ़ने में अटके। बच्चे अपना लिखा हुआ सुस्पष्ट व धाराप्रवाह पढ़ते हैं। चाहे वे शब्द मात्रात्मक रूप से अशु़़़द्घ क्यों न लिखे हों। शायद ऐसा उस शब्द को महसूस करके लिखने के कारण होता हो। स्वयं सोच-विचार कर कुछ लिखने से बच्चों के दिमाग में कोई शब्द या वाक्य अपने पूरे अर्थ व संदर्भ के साथ आकार लेता है। उनके लिए वह शब्द या वाक्य सिर्फ कुछ शब्द या वाक्य न होकर जीवंत अनुभव होता है। बच्चे उसे जी रहे होते हैं। उसे महसूस कर रहे होते हैं। उसकी कल्पना करते हुए पूरा दृश्य उनके सम्मुख उपस्थित हो जाता है। ठीक ऐसा ही तब होता है, जब बच्चे अपनी मनपसंद बात कह रहे होते हैं। तब वे धाराप्रवाह अपनी बात कह पाते हैं। मुझे यह महसूस होता है कि मेरी समझ कई बार कम पड़ जाती है और मैं इन अवसरों का भरपूर उपयोग नहीं कर पाती।
(Diary by Rekha Chamoli)

मध्यान्तर के बाद छोटे बच्चों का काम देखा।

कक्षा 2 के सारे बच्चों ने अखबार में ‘न’ व ‘क’ पर गोले बनाए थे। कक्षा 1 के भी कुछ बच्चों ने अक्षर पहचाने थे। कुछ बच्चों के अखबार का बुरा हाल था। पर कोई बात नहीं। अखबार का जितना प्रयोग होना था, हो चुका था। मैंने कक्षा 1 व 2 को उनकी कापी में गिनती व सरल जोड़ के सवाल हल करने को दिए जैसे एक पेड़ पर 25 पत्तियाँ या आसमान में 15 तारे बनाने हैं। छोटे बच्चे हर समय कुछ न कुछ करने को उत्साहित रहते हैं। इसलिए इनमें से कुछ अपने आप बाहर चले गए और बाहर जमा हुए पत्थरों की पक्तियां बनाने लगे। एक-दो बच्चे चाक ले गए और जैसी आकृतियाँ मैं बनाती हूँ, उसी तरह की आकृतियाँ बनाकर उन पर पत्थर जमाने लगे। मैंने कक्षा 3, 4 व 5 को अलग-अलग श्यामपट पर गणित के सवाल हल करने को दिए।

जब सारे बच्चे कुछ न कुछ करने लगे तो मैं बच्चों का सुबह का काम देखने लगी। बच्चों ने तो अपना काम कर दिया था। अब मुझे अपना काम करना था। पहला काम तो बच्चों की मात्रात्मक गलतियाँ सुधारना था। शुद्ध लिखना भाषाई कौशल का एक भाग है परन्तु हमारे परिवेश में ज्यादा जोर इसी बात पर रहता है। जिन अभिभावकों को पढ़ना आता है, वे भी यही देखते हैं कि क्या शिक्षक उनके बच्चों को शुद्ध लिखवा रहा है। हमारी शैक्षिक समझ यहीं तक पहुँची है। प्रशिक्षणों में आधे-अधूरे तरीके से भले ही यह बात होती है कि शुद्ध लिखना लिखते-लिखते आता है और यदि लिखने के भरपूर अवसर दिये जाएं तो बच्चे स्वयं ही शुद्ध  लिखने लगते हैं। फिर भी कई बार एकमात्र यही कौशल मूल्यांकन का आधार बन जाता है। मुझे स्वयं को इससे बचाना है। मुझे लगता है प्रतिदिन के काम के साथ बच्चों का ध्यान इस ओर दिलाना चाहिए कि शुद्ध  लिखने के क्या फायदे हैं।

कक्षा 3 के कुछ बच्चे बहुत गलतियाँ करते हैं। कक्षा 4 व 5 में भी एक दो बच्चे ऐसे हैं। मैंने बच्चों की कापी में उनकी गलतियाँ ठीक कीं। फिर काम को सही करने के लिए 1 चार्ट के चार बराबर भाग किए। उनमें पेंसिल से लाइनें खींचीं। इन्हीं चार्ट पेपर से हम अपनी किताबें बनाने वाले हैं। बच्चों को एक-एक चार्ट पेपर दिया जिसमें वे घर से अपनी-अपनी कहानी लिखकर व बची जगह में कहानी से सम्बन्धित चित्र बनाकर लाएंगे।

इस तरह आज के दिन का काम हुआ। मैं बच्चों के काम को देखकर बहुत खुश हूँ।

क्रमश:
(Diary by Rekha Chamoli)

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