एक शिक्षिका की डायरी-5

रेखा चमोली

08/08/2011

आज सुबह जब विद्यालय पहुँची तो मन बहुत खराब हो गया। शनिवार को मैंने घर जाने से पहले कक्षा 4-5 के कमरों की दीवारों पर लगे चार्ट तथा छत से बच्चों द्वारा बनाया सामान निकालकर मेज पर रखकर पुराने मेजपोश, अखबार आदि से ढक दिया था। इन्हें बहुत सावधानी से निकालकर रखा था क्योंकि ये चीजें टेप से चिपकाई हुयी थीं। यह ध्यान रखना था कि एक साथ रखने पर ये आपस में चिपकें नहीं। दूसरे कमरे को खाली नहीं किया था क्योंकि पेंटर ने कहा था कि वे इसी कमरे में और बाहर बरामदे में रंग करेंगे। लेकिन विद्यालय आकर देखती हूँ कि इन्होंने दूसरे कमरे में काम शुरू कर दिया है। दीवारों व छत से सारे चार्ट, पोस्टर वाल हैंगिग, बच्चों के बनाए चित्र, तोरण, कविताएँ आदि बहुत ही लापरवाही से निकाल कर नीचे फर्श पर रखे हैं। बहुत सी चीजें फट गयी हैं। टेप से लगी होने के कारण चार्ट, पोस्टर आपस में चिपक गए हैं। तोरण फट गए है। उनकी डोर यहाँ-वहाँ अटकी है। वाल हैंगिग नीचे टूटे पड़े हैं। मेरा मन हताशा व गुस्से से भर उठा। अगर पेण्टर को दूसरे कमरे में भी पेंट करना था तो परसों ही कह देते, मैं सारा सामान उतार देती। इन्हें क्या पता, हमारे लिए ये चीजें कितने महत्व की हैं। मैं कितनी मेहनत से ये चित्र कहाँ-कहाँ से ढूँढकर लाई थी। सब खुले चित्र थे जो बच्चों से बातचीत करने के लिए काम आते थे। कविताओं के चार्ट बनाए थे। एक पूरी दीवार पर हमारे शोध कार्य ‘‘गणेशपुर भूकम्प के पहले व बाद’’ के चार्ट लगे थे। हमने कितनी मेहनत से यह कमरा तैयार किया था। मेरा मन रोने को हो रहा था। जब मैं बड़-बड़ कर रही थी, बच्चे भी मेरे पीछे आकर खाली कमरे को देखने लगे। छोटे बच्चे मजे से चीजें उलटने-पलटने लगे। जल्दी ही मैंने खुद को संभाला और बाहर आकर प्रार्थना सभा प्रारम्भ करायी।

अभी हम ‘गाँव के आजकल के समाचार’ पर ही पहुँचे थे कि हमारी प्रधानाध्यापिका दो अन्य शिक्षिकाओं के साथ आयीं, उन्होंने बताया कि रात तेज बारिश होने के कारण गणेशपुर से आगे सड़क टूट गयी है। सारी गाड़ियाँ रुकी हैं। प्रशिक्षण में मनेरी जाने वाले सभी शिक्षक सड़क पर खड़े हैं। संभवत: आज का प्रशिक्षण हमारे विद्यालय में हो। यह बताकर वे वापस चली गयीं।
(Diary by Rekha Chamoli)

अजीब हालात थे। आधे आंगन में बजरी, पत्थर आदि सामान पड़ा था पर काम शुरू ही नहीं हो रहा था। आफिस का सामान भी दूसरे कमरे में रखा था। मैंने बच्चों की मदद से बेंच बाहर निकाले। आफिस में कुर्सियाँ-मेज रख कर। उसे बैठने लायक बनाया। पहले कमरे का सामान एक किनारे करके कक्षा 1, 2 को उसमें बिठाया। दूसरे कमरे की दीवारों का पेंट अभी गीला था तो उसे बंद कर दिया। बरसात के कारण हवा में नमी है, इसलिए पेंट सूखने में देर हो रही है। शुक्र है, अभी बारिश नहीं हो रही है। अभी हम यह सब कर ही रहे थे कि ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कुछ शिक्षकों के साथ विद्यालय में आए। उनके साथ प्रधानाध्यापिका भी थी। मैंने उन्हें वस्तुस्थिति से परिचित कराया व अॉफिस में बिठाया। प्रधानाध्यापिका दीदी ने आफिस व्यवस्थित किया। पानी आदि दिया।

ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने कहा, आप आराम से अपना कार्य करें। हमारे कारण अव्यवस्था तो होगी पर आज यहीं प्रशिक्षण होगा। आप शिक्षकों की व्यवस्था देखें। हमारे विद्यालय के साथ ही संकुल संसाधन केन्द्र के भी दो कमरे हैं। अत: आज प्रशिक्षण संकुल संसाधन केन्द्र में होगा। लगभग 100 लोग हमारे विद्यालय में जमा हो गए। कुछ लोग बालसखा कक्ष में बैठ गए। कुछ बरामदे में, कुछ सीढ़ियों पर, कुछ यहाँ-वहाँ खड़े रहे।

बच्चों ने स्थिति को समझा और बहुत ही आराम से बेंचों पर बैठ गए। वे आपस में मिल-जुल कर बैठे और बची बेंच कुछ शिक्षकों को बैठने को दी। मेरे बिना कहे बडे़ बच्चों ने अपना काम शुरू कर दिया जिसे देख छोटे बच्चे भी अपनी कापियों में कुछ-कुछ करने लगे।
(Diary by Rekha Chamoli)

कुछ बच्चे किताब पढ़ने लगे। मैं भी उन्हीं के साथ बैठ गयी पता नही, आज हमारा काम आगे बढ़ पाएगा या नहीं, फिर भी मैने कक्षा 3,4,5 को श्यामपट पर शब्दों से कहानी लिखने को कहा व स्वयं शिक्षकों की बैठक की व्यवस्था करने लगी।

मध्यांतर तक यही सब चलता रहा। इतने में संकुल संसाधन केन्द्र की शिक्षिका आ गयीं। उन्होंने संकुल संसाधन केन्द्र के दोनों कमरे खोले और बाकी शिक्षक इन कमरो में बैठ गए। बच्चे कहानी लिख चुके थे। मैंने कहा इस पर कल बात करेंगे। मध्यांतर में बच्चों ने भोजन किया। थोड़ा खेला। बाहर धूप आ गयी थी। आजकल बहुत तेज धूप आती है। बच्चे यहाँ-वहाँ बरामदे में सिमट गए।

मध्यांतर के बाद कक्षा 3 को श्यामपट पर जोड़-घटाने के सवाल हल करने को दिए। कक्षा 5 को उनकी किताब में रिक्त स्थान भरने वाले सवाल हल करने को कहा व स्वयं कक्षा 4 के साथ मापन के सवाल हल किए। कक्षा 1 व 2 वाले अन्दर कमरे में कंकड़ो व गुटकों से खेलने में व्यस्त रहे।

कक्षा 1 व 2 की छुट्टी के बाद कक्षा 5 को अंदर बुला लिया व उनसे हमारे आसपास की किताब में एक बेंम जेनकल पर बात की। तीन-चार शिक्षक साथी भी इसी कमरे में बैठे रहे। कक्षा 4 से कहा वे कक्षा 3 के बच्चों की कापियाँ देखें व उन्हें और सवाल हल करने को दें। इस तरह आज दिन भर काम चलता रहा। बीच-बीच में बच्चे सामान लेने आते जाते रहे। लोग बातचीत करते रहे।

आज मैंने यह महत्वपूर्ण बात नोट की कि इतने सारे लोगों के बीच बच्चे सहजता से काम करते रहे। न तो शोर किया, न कोई हड़बड़ी मचाई, न फालतू इधर-उधर दौडे भागे।

शिक्षकों से बात की और उन्हें अपनी कापियाँ दिखाईं। ये सब महसूस कर मेरा मन गर्व से भर उठा। छ़ुट्टी के समय पर कुछ बडे़ बच्चों के अलावा सबकी छुट्टी की। हमने सामान व्यवस्थित किया।

आज पेंटर नहीं आए। बाद में पता चला उन्हें सड़क से ही कुछ शिक्षकों ने यह कहकर लौटा दिया था कि आज पेंट नहीं होगा। आज निर्माण कार्य वाले भी नहीं आए।
(Diary by Rekha Chamoli)
क्रमश:

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