गाँव को आत्मनिर्भर बनाने में जुटी मुखिया दोरोथिया दयामनी

डॉ. विष्णु राजगढ़िया

वकालत की पढ़ाई के दौरान ही सामाजिक कार्यों में जुटी दोरोथिया दयामनी एक्का का एकमात्र सपना है अपनी पंचायत को आत्मनिर्भर बनाना। विधि स्नातक की डिग्री लेकर रांची बार काउंसिल में पंजीयन कराने के बाद वह राँची विश्वविद्यालय से एलएलएम की पढ़ाई भी कर रही है। इस बीच पंचायत चुनाव हुए तो वह रांची जिले के नामकुम प्रखंड की आरा पंचायत की मुखिया चुन ली गईं। दोरथिया ने वकालत का पेशा करने के बजाए अपनी पंचायत की आत्मनिर्भरता की वकालत का मन बना लिया। लिहाजा, उनकी सक्रियता के कारण स्थानीय लोगों की जिन्दगी पर काफी असर आया।

झारखंड में रांची जिले की आरा पंचायत की एक खासियत यह है कि इसके नौ वार्ड तथा एक पंचायत समिति के सदस्यों में सिर्फ एक पुरुष प्रतिनिधि हैं। इस तरह महिलाओं के भारी प्रतिनिधित्व वाली इस पंचायत में आत्मनिर्भरता की कोशिशों का खास महत्व है। दोरोथिया बताती हैं कि पंचायत चुनाव होने के बाद उन्होंने सभी महिलाओं के साथ बैठकर विचार किया। सबका कहना था कि पुरुषों के पास तो रोजगार के काफी अवसर होते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए अवसर बिल्कुल नहीं हैं। उन्हें घर पर ही कोई रोजगार मिल जाए, तो बेहतर होगा। इस सोच पर काम करते हुए आत्मनिर्भरता की कोशिशें की गईं, जिसमें कृषि ग्राम विकास केन्द्र का भरपूर सहयोग मिला।

आत्मनिर्भरता के लिए पशुपालन और किचन गार्डन जैसे क्षेत्रों पर जोर दिया गया। पंचायत के हरेक वार्ड में विदेशी उन्नत नस्ल का एक-एक बकरा दिया गया ताकि क्षेत्र में बकरियों की नस्ल सुधारी जा सके और बकरी उत्पाद में तेजी आए। बकरी पालन में ब्रीड चेंज की इस कोशिश का साफ असर दिख रहा है। अब तो दूसरी जगह के लोग भी आकर बकरे को माँग कर ले जाते हैं ताकि उन्हें भी इसका लाभ मिल सके।

इसी तरह, मुर्गीपालन को बढ़ावा देने के लिए क्रायलर मुर्गी 450 चूजे बाँटे गए। मात्र 30 रुपये में एक चूजा दिया गया, जबकि बाजार में यह 60 रुपये का आता है तथा उसकी नस्ल भी इतनी अच्छी नहीं होती। ऐसे चूजे काफी तेजी से बढ़ रहे हैं और मुर्गी पालन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता आ रही है। इसी तरह महिलाओं को मात्र 50 रुपये की अनुदानि दर पर बत्तख के पाँच-पाँच जूजे दिए गए। ये काफी अच्छी नस्ल के चूजे हैं, जो आम बाजार में उपलब्ध नहीं हैं तथा इन चूजों और बत्तखों को बिना पानी के रखा जा सकता है।

गाँव के एक मैकेनिक स्टीफन एक्का किसी दुर्घटना के कारण शारीरिक श्रम करने में लाचार हो गए थे। उन्हें सूअर पालन का प्रशिक्षण दिलाकर प्रखंड की ओर से पाँच सूअर दिलाए गए। इससे उन्हें अपना घर चलाने में काफी मदद मिली है। एक-एक सूअर सात-आठ हजार रुपये में बिकता है। अब तक वह कई सूअर बेच चुके हैं। आज भी उनके पास 14 सूअर बचे हैं। गाँव के दो किसानों को मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण देकर उन्हें दो बक्से मधुमक्खियाँ दी गई हैं। मछली पालन के लिए तालाब की तलाश की जा रही है। इसी तरह, किचेन गार्डन को बढ़ावा देने के लिए बैंगन, टमाटर, मिर्च, नींबू, इत्यादि के 21 प्रकार के बीज बाँटे गए तथा उनके उपयोग सम्बन्धी कलैण्डर भी दिए गए। ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश घरों में थोड़ी बहुत ऐसी जगह होती है, जहाँ किचेन गार्डन के रूप में अपने उपयोग की चीजें उपजाई जा सकें। इसमें घरेलू उपयोग का पानी भी काम आ जाता है। इसके लिए घरों में छत पर पानी की टंकी लगाकर ड्रिप इरीगेशन का भी प्रयोग किया गया है। लगभग एक सौ महिलाओं को मशरूम की खेती का प्रशिक्षण दिया गया है। कुछ महिलाओं को स्वीट कॉर्न के उत्पादन का भी प्रशिक्षण दिया गया है।

पंचायत समिति सदस्य सोफिया टोप्पो भी इन उपलब्धियों से काफी उत्साहित हैं। सोफिया टोप्पो बताती हैं कि दो साल के भीतर क्षेत्र में लगभग एक हजार फलदार वृक्षों के पौधे लगाए गये है। इनमें पपीता, आम, अमरूद, लीची, केला, सागवान इत्यादि शामिल हैं। पपीते के पेड़ों में बेहद कम समय में बड़ी संख्या में तथा अत्यधिक मीठे पपीतों का उत्पादन हो रहा है। श्रीविधि  से धान की खेती को बढ़ावा देने का भी प्रयोग किया गया। पिछले साल 11 किसानों ने यह प्रयोग किया। उनकी सफलता को देखकर इस साल लगभग 20 किसानों ने इसका प्रयोग किया। इस पंचायत क्षेत्र में महिलाओं के 22 स्वयं सहायता समूह कार्यरत हैं। लेकिन अधिकांश का विधिवत पंजीयन नहीं होने के कारण बैंक और अनुदान की सुविधा नहीं मिल रही है। दोरोथिया अब इन्हें विधिवत रूप से संचालित करने की कोशिश कर रही हैं। गाँव में जनवितरण प्रणाली की नई दुकानें खोलने तथा उनका संचालन महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को दिलाने की कोशिश की जा रही है। इन स्वयं सहायता समूहों की गतिविधियाँ भी विविध प्रकार की हैं। अगर स्कूल में दोपहर के भोजन के लिए राशन के पैसे घटते हैं तो इसके लिए एसएचजी से कर्ज मिल जाता है। एक समूह ने ऑटो खरीद कर किराए पर चलाना शुरू किया है और दूसरे समूह ने टेंट हाउस के सामान खरीद कर स्थानीय लोगों को सुविधा दी है। पंचायत की महिलाओं को कुछ अन्य प्रकार के रोजगार से जोड़ने की भी कोशिश हो रही है।
साभार: पंचायत अपडेट, अक्टूबर 2013
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