महिला समस्याओं का बदलता स्वरूप

ब्रजेश जोशी

कई विद्वानों का तर्क है कि 19वीं  और 20वीं सदी में स्त्री-सुधार के सम्बन्ध में जो मूल मुद्दे थे, वर्तमान काल में उनका लगभग पूर्ण उन्मूलन हो चुका है। इसलिए अब स्त्री-आन्दोलन का स्वरूप भी स्त्री की नवीन समस्याओं के अनुसार ही होना चाहिए। वस्तुत: इसमें कोई दो मत नहीं कि विभिन्न स्त्री-आन्दोलनों एवं व्यापक सरकारी प्रयासों के कारण स्त्रियों की स्थिति दिन-प्रतिदिन सुधरती जा रही है। लेकिन जहाँ तक स्त्री, समस्याओं से सम्बन्धित मूल-मुद्दों की बात है तो इस सम्बन्ध में सच यह है कि अभी भी कई पुराने मुद्दे यथावत हैं। जिन मुद्दों के लोप होने का आभास होता है, वास्तव में वे लुप्त नहीं हुए हैं। उनके स्वरूप और मौलिक कारण बदल गए हैं। जैसे- अब सतीप्रथा के तहत किशोर विधवाएँ नहीं जलाई जा रही हैं लेकिन दहेज लोभ में बहुओं के जलने का सिलसिला कम नहीं हुआ है। बालिका शिशु वध का उदाहरण मिले ना मिले परन्तु गर्भावस्था के दौरान भ्रूण-परीक्षण द्वारा बालिका भ्रूण- हत्या की घटना कम नहीं हुई है तो दूसरी ओर वेश्यावृत्ति के व्यापार में बालिकाओं की तस्करी में अत्यधिक उछाल आया है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो (NCBR) की मानव तस्करी से सम्बन्धित रिपोर्टों के अनुसार वर्ष 2011 में उत्तर प्रदेश में 3517 लोगों की अवैध तस्करी हुई। 2012 में यह आँकड़ा 3554 तक पहुँचा। इसमें एक हिस्सा बच्चों का है लेकिन बड़ा हिस्सा महिलाओं की तस्करी से जुड़ा है। द एशिया फाउण्डेशन के अनुसार भारत में 90 प्रतिशत महिला तस्करी अंतर्राज्यीय होती है, देश में एक हजार के करीब रेड लाइट एरिया में 40 लाख से अधिक यौनकर्मी हैं, इसमें से ज्यादातर लड़कियाँ 16 वर्ष से कम की हैं। द ग्लोबल स्टोवरी इंडेक्स 2014 की रिपोर्ट के अनुसार नाबालिग लड़कियों की तस्करी में हमारे देश में लगभग 65 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है। युगों के दौर में नारी ने कब पुरुष के साथ देह-व्यापार का समझौता किया, यह बताना अत्यन्त कठिन है किन्तु हो सकता है कि नारी ने पेट की भूख मिटाने के लिए ही यह सब स्वीकार किया होगा या फिर यह भी सम्भव है कि युवतियों को अनाज, वस्त्र, आभूषण, रुपया-पैसा देकर अपनी वासना पूर्ति के लिए प्रलोभन दिया होगा। इसके बाद युवतियों ने इसको आय का एक सरल साधन बना लिया होगा। 18वीं सदी ईसा पूर्व से सुमेर, बेबीलोन में वेश्यावृत्ति अस्तित्व में थी। बाइबिल में इसका जिक्र था (उद्धरण- Ancient civilizations of the World Tyagi & Restogi).

आज विश्व के कई देशों में यह पनपता हुआ उद्योग है, बाल वेश्याओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है। भारत, थाइलैण्ड व फिलीपींस में 13 लाख बच्चियाँ वेश्वायृत्ति में लिप्त हैं। इस पेशे में आने के बाद इनके लिए समाज में स्थान बनाने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। इन्हें बदनामी, नफरत के अतिरिक्त कुछ भी हासिल नहीं होता। यह जानते हुए भी र्आिथक-सामाजिक मजबूरियों के कारण कितनी महिलाएँ इस पेशे में जबरन धकेली जाती हैं, यूरोपीय यूनियन की संसद ने सेक्स वर्कर्स के पक्ष में फैसला देते हुए कहा है कि सेक्स बेचना अपराध नहीं होगा लेकिन पैसे देकर औरत के शरीर को इस्तेमाल करना अपराध माना जाएगा। इसमें वेश्या के बजाय उसके ग्राहक को सजा मिलेगी (बी.बी.सी. हिन्दी, बी.बी.सी. विशेष से उद्धरित) लेकिन भारत में वेश्यावृत्ति को ग्राहक और विक्रेता के नजरिये से नहीं देखा जाता। यहाँ पर यह अपराध है लेकिन इस अपराध के लिए हमेशा औरत को ही पकड़ा जाता है।

रवीश कुमार (एन.डी.टी.वी. इण्डिया) में रवीश अपनी रिपोर्ट में जी.बी. रोड में वेश्याओं की स्थितियों की पड़ताल करते हुए कहते हैं कि जैसे अन्य  लोग रोजी रोटी के लिए काम करते हैं, उसी प्रकार वे भी अपना जीवन चलाने के लिए काम करती हैं। वे भी इस अंधकार से नयी रोशनी में जाना चाहती हैं लेकिन समाज का कड़वापन उन्हें जिन्दगी की मधुरता प्रदान नहीं कर सकता।

यह भी महिलाओं की नवीन समस्या है, जिसको समाप्त करने के लिए वेश्यावृत्ति से जुड़े समस्त असामाजिक तत्वों एवं वर्गों को जड़ से खत्म करने का अभियान चलाना होगा।
(Changing nature of women’s problems)

शिक्षा के अवसरों में भी महिलाओं के साथ असमानता ही सामने आयी है। विश्व र्आिथक फोरम के जेंडर गैप सूचकांक 2015 के अनुसार भारत लैंगिक समानता में श्रीलंका और बांग्लादेश से पीछे तथा 145 देशों में 108 वें स्थान पर था। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार महिला साक्षरता दर 65.46 प्रतिशत है। जबकि पुरुष साक्षरता दर 82.14 प्रतिशत है। विश्व में 12.3 करोड़ युवा पढ़ने और लिखने की बुनियादी क्षमता से वंचित हैं। इनमें 61 प्रतिशत लड़कियाँ हैं, वर्तमान भारत की संसद में विधानसभा/पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण का मुद्दा ऊपर और नीचे हो रहा है। विधायक, सांसद, प्रधान या अन्य पदों पर रहने के बाद भी क्या वे राजनीतिक निर्णय निर्माण प्रक्रियाओं में स्वायत्त हैं या नहीं, यह भी संदेह के घेरे में हैं। क्योंकि राजनीति में प्राय: वे अपने पति, पिता, भाई द्वारा ही नियंत्रित की जाती हैं जो कि एक गंभीर समस्या है। खुले समाज में कामकाजी महिलाएँ अपने सहर्किमयों या आपराधिक तत्वों द्वारा प्रताड़ित की जाती हैं। उन पर तेजाबी हमले लगातार हो रहे हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यद्यपि तेजाबी हमले को गैर जमानती अपराध माना है किन्तु इन हमलों में गिरावट कम नहीं हुई है। कार्यस्थलों का सुरक्षित वातावरण न होना अभी भी महिलाओं के लिए चुनौतीपूर्ण विषय है।

तेजपाल की घटना में अत्याचार की शिकार लड़की ने अपने पत्र में स्पष्ट लिखा है कि ‘‘मेरा शरीर सिर्फ मेरा है किसी के खेलने का खिलौना नहीं है’’। यद्यपि महिलाएँ खुले रूप से अत्याचार के खिलाफ लड़ रही हैं किन्तु कई बड़ी हस्तियाँ जिसमें जिया खान (बॉलीवुड, अभिनेत्री), प्रत्यूषा बनर्जी (बालिका वधू की आनन्दी) जो कि शोहरत की दुनियाँ में थीं, क्यों मृत्यु का शिकार हुईं या मार दी गईं? स्त्रियों की समस्याओं को जटिल बना देता है क्योंकि ये लड़कियाँ एक ऐसे वर्ग से थीं जहाँ पर हर वक्त मीडिया का पहरा रहता है और वे अपने खिलाफ हो रहे शोषण को बेझिझक बता सकती थीं लेकिन उन्होंने आत्महत्या की, क्यों? ऐसे ही देश में अनेक किशोरियाँ हैं जो साइबर क्राइम का शिकार होने के बाद सीधे आत्महत्या का विकल्प अपना रही हैं। आज सोशल साइट्स पर भी महिलाओं की निजता से छेड़छाड़ करने के अनेक प्रयास हो रहे हैं चाहे मॉल हो, होटल, ट्रायल रूम या वॉश रूम, खुफिया कैमरों द्वारा महिलाओं की निजता पर हमला किया जा रहा है। लड़कियों के एमएमएस बनाकर उन्हें बदनाम व ब्लैकमेल किया जा रहा है। यह काम उनके साथ पढ़ने वाले उनके दोस्त भी कर रहे हैं। जिस कारण बदनामी के डर से महिलाएँ आत्महत्या कर रही हैं। साइबर क्राइम विशेषज्ञों के अनुसार ऑनलाइन उत्पीड़न की चपेट में वे महिलाएँ आती हैं जो सतही जानकारी के साथ इस दुनिया का हिस्सा  बनती हैं परन्तु अपनी सुरक्षा का उपाय एवं उपयोग नहीं सीख पाती। ठउइफ के आँकड़ों के अनुसार लगभग 70 प्रतिशत महिलाएँ जो साइबर जगत का हिस्सा हैं, वे अधिकतर अश्लील सन्देश, अभद्र और पोर्नोग्राफिक सामग्री पर टैगिंग की शिकायत गुपचुप तरीके से करती हैं।

उपर्युक्त समस्याएँ स्त्रियों की नवीन समस्याएँ हैं और इनका समाधान समानता, तकनीकी, कानूनी शिक्षा एवं सामाजिक व्याधिकी द्वारा ही खोजा जा सकता है।
(Changing nature of women’s problems)
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