कुछ कविताएँ
हर्ष लक्ष्मण रेखामेरी लक्ष्मण रेखाखींच ली है स्वयं ही मैंनेतय करते हुए़.दायरा अपने दर्द काऔर अपनी उदासियों की...
हर्ष लक्ष्मण रेखामेरी लक्ष्मण रेखाखींच ली है स्वयं ही मैंनेतय करते हुए़.दायरा अपने दर्द काऔर अपनी उदासियों की...
रश्मि बड़थ्वाल शाम ढलने लगी है। दूर-पास के सभी घरों में गहमागहमी बढ़ने लगी है। बीजी कल ही...
शीला रजवार विगत उन्नीस वर्षों से सुश्री दिव्या जैन के सम्पादन में निरंतर प्रकाशित हो रही महिला पत्रिका...
राजाराम विद्यार्थी शाम का वक्त, सूरज ढल चुका है। गाय-भैंसों को बाहर से अन्दर गोठ में बाँध दिया...
अनिल कार्की पहाड़ों पर नमक बोती औरतें बहुत सुबह ही निकल जाती हैंअपने घरों सेहोती है तब उनके हाथों...
1 गाँव खाली हो गये, बढ़ने लगी शहरों की भीड़।कट गये पीपल कि वो ताजी हवा गुम हो...
ललित मोहन राठौर ‘शौर्य’ 1 बेटियाँ मुश्किल में हैंघर और बाहरदोनों जगहबेटियाँ महफूजनहीं गर्भ मेंक्या कोईऐसी जगह हैजहाँउड़...
रुचि नैलवाल मुझे जावेद अख्तर की कही बात के शब्द तो ठीक से याद नहीं पर उसके मायने...
उमा भट्ट राजकमल प्रकाशन से 2012 में प्रकाशित इस पुस्तक का नाम है- एक और नीमसार: संगतिन आत्ममंथन...
गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ तुलसीदासोवाचः ….क्षिति जल पावक गगन समीरापंचतत्व यह अधम शरीरा मेरे बच्चे!मैं जानता हूँकि पानी की...
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