बेसुधों की सुध

मुक्ता गोले

समाज सेवा के औपचारिक तौर-तरीके से अलग हटकर हरियाणा के हिसार की वीणा ने अपने स्तर से कई ऐसे कार्यों को अंजाम दिया है जो सरकार और समाज के लिए प्रेरणादायक हैं। वीणा ने घर-समाज से खदेड़ी गईं, उत्पीड़न की शिकार, सुध-बुध खोई अनेक महिलाओं को अपनी तत्परता और सूझ-बूझ से पुनर्वासित करने में कामयाबी हासिल की है। दिल्ली, गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा की कई महिलाएँ, जो सामान्य जिन्दगी नहीं जी पा रही थीं, उन्हें फिर से घर वापस भिजवाया और परिजनों से उन्हें जोड़ा। वीणा को इन कामों के लिए गाँधी हिन्दुस्तान साहित्य सभा और विष्णुप्रभाकर प्रतिष्ठान, नई दिल्ली ने काका कालेलकर समाज सेवा सम्मान से सम्मानित भी किया है। इस सम्मान के बाद वीणा के काम की ओर समाज का ध्यान गया तो उनके काम की सराहना करने वालों की कतार लग गई और उन्हें कई संस्थाओं ने सम्मान दिया, जिसकी वह हकदार भी हैं।

बचपन से ही वीणा का जरूरतमंदों और मोहताजों की मदद करने का स्वभाव रहा है, जो आगे चलकर उसके मजबूत इरादों में तब्दील हो गया। वीणा ने अपनी जिन्दगी का रास्ता अपने तौर पर चुना और उन्हीं रास्तों पर आज भी चल रही हैं। दिल्ली में जन्मी और पली-बढ़ी वीणा ने प्रारम्भिक दौर में तय कर लिया था कि वह अपना जीवन समाज के वंचित व दुखियों की मदद करने में गुजारेगी। धीरे-धीरे यह मदद समय के साथ कई चुनौतीपूर्ण कामों को भी अंजाम देने लगीं, जो हर किसी के वश की बात नहीं होती।

भटकी हुई स्त्रियों की मदद करने में वीणा हमेशा अपनी सूझ-बूझ को ही प्राथमिकता देती है। आमतौर पर भटकी हुई स्त्रियों के मामले में लोग प्रशासन व पुलिस की मदद लेने की कोशश करते हैं पर वीणा ऐसा नहीं करती है। वीणा अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताती है कि वास्तव में पुलिस कानूनों की कसौटी पर उतरकर सब कुछ करने की कोशिश करती है लेकिन सुध-बुध खोई स्त्रियाँ शोषण-उत्पीड़न से इतनी हताश हो चुकी होती हैं कि किसी भी तरह की इंसाफ और मदद की दरकार नहीं समझती हैं। पुलिस भी ऐसे मामलों में गहराई में उतरने की जरूरत नहीं समझती।

वीणा को एक बार एक लड़की हिसार रेलवे स्टेशन पर अकेले दिखाई पड़ी। उसे अगर वह अपनी हिम्मत और सूझ-बूझ से उसके घर राजस्थान नहीं पहुँचाती तो उसका जीवन नारकीय बन गया होता। क्योंकि जिस समय वह लड़की  रेलवे स्टेशन पर अकेली रो रही थी, उस समय कई असामाजिक तत्व मदद करने के बहाने गिद्ध दृष्टि गढ़ाये तैनात थे, जिनके मनसूबों को भाँपकर वीणा आनन-फानन में उस लड़की को अपने घर ले आई और पूरी तैयारी के साथ उसे राजस्थान पहुँचा दिया।

वीणा हमेशा प्रचार-प्रसार से दूर रहती आईं हैं। उनका मानना है कि रास्ते में भटकी और बेसुध हुई महिलाओं की दुर्दशा का प्रचार हो जाने से उनके पुनर्वास में दिक्कत आती है। वीणा को जब कभी कोई बदहाल महिला मिलती है तो वह उसके घर-द्वार का अपने स्तर से पता करती है, उसके परिजनों से सम्पर्क करती है फिर उन्हें सौंप देती है।
care of the unconscious

वीणा कहती है कि मैं अपनी उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार करने लगूं तो अब तक जितनी महिलाओं का पुनर्वास किया है, उन सबके लिए आज भी बहुत-सी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं, क्योंकि हमारा समाज आज भी रूढ़िग्रस्त है और भटकी हुई स्त्रियों को आज भी माफ करने के लिए तैयार नहीं होता।

वीणा हिसार स्थित वर्मा न्यूज एजेन्सी की निदेशक हैं। स्वाध्याय में गहरी रुचि रखती हैं। पत्र-पत्रिकाओं में लेखन करने व रंगमंच से भी जुड़ी रही हैं। पत्र-पत्रिकाओं व पुस्तक व्यवसाय से जुड़ी होने के कारण हमेशा साहित्य और पत्रकारिता से जुड़े लोगों के सम्पर्क में रहती हैं तथा उनके आयोजनों में शिरकत भी करती है। अपने मान व उपलब्धियों के विषय में बताने में हमेशा संकोच करती है।

स्वाध्याय के कारण उनका मानस समृद्ध हुआ है और अपने व्यावसायिक हितों को दरकिनार करके कई वर्षों से हिन्दी पखवाड़ा भी मना रही हैं। 15 दिन सभी को खुला आमंत्रण होता है, जो लोग पत्रिकाएँ, पुस्तकें नहीं खरीद पाते उन्हें मुफ्त में बाँटती हैं। ऐसे ही अनूठी व मौलिक सोच व कार्य शैली के कारण लोग अचम्भित हुए बगैर नहीं रह पाते। हिसार में रहते हुए वीणा का सम्पर्क विभिन्न राज्यों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से भी हुआ जिन्होंने उनके काम की सराहना की और कहा कि वीणा जी जैसे कार्य तो एन.जी.ओ. भी नहीं करते। इसी तरह के कार्यों के क्रम में उन्होंने बिहार स्थित भागलपुर के चंपानगर में वंदना जो अपने इलाके की हिन्दू-मुस्लिम लड़कियों को सिलाई सिखाती हैं, उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना चाहती थी, की मदद की। वीणा ने उसकी इच्छा को सिरे चढ़ाने के लिए भागलपुर पहुँचकर दो सिलाई मशीनों की व्यवस्था की व प्रशिक्षण के लिए कारगर सलाह भी दी। आज वंदना द्वारा संचालित मदद फाउण्डेशन से दो सौ से ज्यादा लड़कियाँ प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं और प्रशिक्षण जारी है। वीणा अभी भी इस केन्द्र को भरपूर योगदान देने में जुटी रहती हैं। 
care of the unconscious

उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika
पत्रिका की आर्थिक सहायता के लिये : यहाँ क्लिक करें