आईवा की कसम परेट : कहानी

अनिल कार्की

पूर्वी रामगंगा के चौड़े घाट और छिलविल पानी में रोज जंगार1 तैरते यात्रियों के कदमों की खुरचन से पानी के भीतर एक सीधा रास्ता साफ दिखाई देता है। नदी के तल की बालू खुरचती जाती है और पानी के भीतर कदमों के निशान साफ अंकित हो जाते हैं। इसी घाट के ठीक नीचे भँवर की गहरी ताल है, जिसका बहाव घुमावदार है यानी अगर कोई आदमी डूब जाए तो पानी उसे अपने घुमावदार बहाव के कारण सीधे नदी के तल पर पटक देगा और आदमी मरने के बाद ही बाहर दिखाई देगा। वो भी पानी के दबाव में घूमता हुआ।

हीरा उर्फ kआईवा’ आज से चालीस साल पहले जब अखम्म जवान हुआ करता था, तब वह चार-चार कुंतल के kस्लीपर’2 कंधे में रखकर घर पहुँचा देता था, घरवाली लालमती के साथ। लालमती उस समय उम्र के हिसाब से केवल तेईस साल की थी, लेकिन थी छ: जत्काल की औरत। सातवीं जत्काल3 बसु कुलबुला रही थी पेट में। रिंगाल की झोपड़ी को तख्तों की झोपड़ी में बदलने के लिए उसने दिन-रात मेहनत की। पेट आसमान की तरफ और खुद पतली, झड़े गेहूँ के डंठल सी लालमती ‘आईवा’ के साथ एक तरफ से ‘स्लीपरों’ पर कन्धा देती थी। बसु के ज़मीन में झड़ने से पहले हीरा ‘आसाम राइफल’ में भर्ती हो गया। उसकी पहली पोस्टिंग हुई नागालैण्ड के किसी बीहड़ में।

उन दिनों लकड़ियों का व्यापारी मालदार अपने तख्तों को व्यापार के लिए पूर्वी राम नदी में बहाकर टनकपुर ले जा रहा था। हीरा और लालमती इन स्लीपरों को चुराकर अपना तख्ते वाला घर बना रहे थे। यह एक खतरनाक काम था। पकड़े जाने पर लाश तक नहीं मिलती। भीषण जोखिम लेकर उन्होंने रात-दिन एक कर दिया था। तख्ते वाला घर बनाने के लिए। आज भी कभी लालमती चिल्लाती है, खींचो-खींचो, लग गया ‘स्लीपर’ रस्सी से, देखो-देखो मालदार के आदमी आ रहे हैं, भागो़..।

लेकिन उसकी नींद खुलकर जिस छत पर टिकती है वह अब तख्तों की नहीं, सीमेंट की छत है। वह धम्म से उठ कर बैठ जाती है। उसकी आँखों में राम नदी के किनारे वाली वह सुनसान चाँदनी रातें तैरने लगती हैं। जब हीरा और लालमती रात को चीड़, साल, और द्यार के ‘स्लीपर’ चुराकर अपना घर बनाने की जुगत भिड़ा रहे थे उन दिनों हीरा गाता था-

हाङ टूटो पीपली को, पात झड़ो खिराको
संग को मरन है जो, लालमती-हीराको।4

मरते दम तक पागलपन में भी लालमती इस न्योली को गाती रही। एक दिन हीरा जब ताल में पानी पीकर डूबी लकड़ी पर बाईस हाथ का रस्सा फसाने नदी की छाती में उतरा था, ठीक उसी समय मालदार के मुंशी ने अपने आदमियों के साथ लालमती को घेर दिया था-

कौन हो तुम?
बहाना बनाकर लालमती ने कहा, मैं एक दुखिया हूँ सैप, नदी में फाल5 मारने आई थी।
लेकिन फाल मारने से पहले बच्चों की माया ने रोक दिया।
जब मुंशी ने लालमती का पेट आसमान की तरफ उठा देखा तो समझ गया कि बहाने बना रही है। उसने सीधे कहा, कहाँ है तेरा बैग?”
आज तुम दोनों को एक साथ नदी में फाल मरवाता हूँ मैं।
अपने आदमियों को हुक्म देता हुआ मुंशी चिल्लाया, पकड़ो, भागने मत देना इसको।

तभी पीछे हटने का बहाना बनाकर कमर से रेत6 की पिटवा दराती निकाल लालमती वन बिल्ली की तरह झपटी मुंशी के आदमी की तरफ और मुंशी को संभलने का मौका तक न मिला। आसमान जैसा पेट लेकर वह धार की तरफ भाग गयी। मालदार के आदमी उस बिजली-सी चमक को देखते ही रह गये। इस वन बिल्ली की जात वाली औरत की गज़ब बात थी। जब हाँफती हुई वह घर लौटी तो उसे फिकर लग गई, कहाँ रह गया होगा हीरा?

रात भर रोती रही इस डर से कि कहीं मालदार के लोगों ने हीरा को मारकर नदी में तो नहीं फेंक दिया होगा?

सुबह ब्यानतारा7 दिखते ही फिर नदी किनारे चल दी। उस वक्त हीरा अकेला नदी से करीब चालीस तख्तों वाला, मालदार का मुहर लगा ‘स्लीपर’ बाहर निकाल रहा था। लालमती को सुकून था कि उसका हीरा जिन्दा है। लालमती ने मन ही मन सोचा, मजाल कि मुंशी मेरे अखम्म बैग8 पर हाथ डाल सके?

ब्यानतारे की उजास में लालमती ने कसकर पकड़ लिया हीरा को और खुद भी भीगकर निझूत9 हो गयी थी भीतर और बाहर दोनों तरफ से। हीरा ने उसे परे हटाते हुए कहा, तू तो बड़ी बहादुर है, रे!”

”बा बा हो! बेचारा मुंशी का नौकर तो चीख़ते चिल्लाते रह गया था। उसे पकड़ कर ले गये वो लोग। मैं नदी पार से यह सब कुछ सुन रहा था और ज्यूनाली रात में मैंने तुझे धार की तरफ भागते देखा था तो तसल्ली हो गयी। चल अब कान डाल स्लीपर में।
(aiwa ki kasam pared story)

लालमती ने एक तरफ से कंधा स्लीपर पर टेक दिया।

दूसरे दिन हीरा और लालमती पौ फटने से पहले ही घर से जंगल की ओर चले गये। उसी दिन शाम हीरा के घर आने के बाद कठनौला गाँव के मुहपत सिंह ने बताया, कल सुबह नौकरी पर जा रहा हूँ। हीरा, तू भी आता है तो भर्ती हो जायेगा।

हीरा को न जाने क्या सूझी कि वह लालमती से सलाह-मशवरा किये बगैर ही चल दिया जबकि लालमती का भी अंतिम महीना चल रहा था। रात को हीरा ने अचानक कह दिया, अब बहुत हो गया है पहाड़ में! तू घर बार संभाल लेना लालमती। मनी-ऑर्डर से पैसे भेजूँगा तो तख्ते चिरवाकर छत पर डाल लेना। अपना ख्याल रखना। मेरी चिंता मत करना।

लालमती कुछ न कह सकी थी तब। यहाँ तक कि उसने तो यह भी नहीं कहा,इतना बड़ा लाजम10 और एक ही छपरे में ढकने लायक छ: बच्चे कैसे संभलेंगे मुझसे?

चुप रही वह और यह भी नहीं कहा कि मैंने रात-दिन अपनी हड्डी नरम करके इसलिए तख्ते वाला घर बनाने में तुम्हारी मदद नहीं की कि ठीक टैम में तुम मुझे अकेला छोड़कर फौज में चले जाओ!

लेकिन दूसरे दिन सुबह ही हीरा चला गया भर्ती होने मीलों लम्बी यात्रा में। एक दिन खबर मिली, हीरा फौज में भर्ती हो गया है।

तब उन्हीं दिनों लालमती का सातवाँ जत्काल हुआ। घर में अकेली औरत और सात बच्चे एक साथ। न ठीक से खाना हुआ, न ठीक से रहना हुआ। आखिर, दस दिन बाद आँगन में हीरा की फोटो रखकर उसके ऊपर पिठाँ लगाकर बच्ची का नामकरण कर दिया गया। हीरा कभी-कभार सौ-पचास रुपये मनीऑर्डर द्वारा भेज देता था। पर इतना बड़ा लाजम अकेले लालमती तो संभाल नहीं सकती थी फिर भी वह हारमान न हुयी। दिन-रात काम करती रही।

यहाँ दस दिन पूरे हुए कि बसु की ईजा असौज के गाज्यो (घास) की कटाई में जुट गयी, लेकिन आदमी तो आदमी ही हुआ मशीन जो क्या हुआ। उसी बीच लालमती को बीमारी ने घेर लिया। लम्बे समय तक बीमार रही, लेकिन घिसती रही। इस बीमारी से उबरने में उसे कई महीने लगे और इस बीमारी के साथ ही उसे पागलपन के दौरे भी पड़ने लगे थे। उस बार जब ‘कसमपरेट’ खाकर हीरा लौटा तो वह खुद भी लालमती को पहचान नहीं पाया था। कौन सा खुद हीरा गबरू जवान रह गया था। फौज ने चूस मारा था उसे लेकिन हालात दोनों तरफ एक से थे। लालमती अपनी गृहस्थी बचाने के लिए इस हद तक लड़ रही थी कि उसने अपने बीमार होने की खबर तक हीरा को नहीं लगने दी थी।

हीरा को एक दिन दुकानदार से पता चला था। जब दुकानदार ने उससे कहा, यार फौजी! अपनी घरवाली को दिखा ला होसपिटल। बेचारी! कब तक एनलजीन की गोली खाकर जिन्दा रहेगी।

फिर, इत्मीनान से दुकानदार ने घर के सारे हालात बता दिए थे हीरा को। हीरा भी पहले का जैसा मायादार हीरा कहाँ रह गया था। अब तो वह ‘एक ही गोली, एक ही दुश्मन’ वाला हीरा हो गया ठैरा। उसका ध्यान कुल्ल फौज की डींग हाँकने और फिलिप्स के रेडियो में फौजी छाँट का चितकबरा खोल लगा कंधे में टाँगकर ‘वल धार से पल धार’11 घूमते रहने वाला हो गया ठैरा। फिर भी उसने लापरवाही से लालमती से  पूछ ही लिया, हाँलि, लालमती क्या हुआ था तुझे?
(aiwa ki kasam pared story)

लालमती के आँसू छलक पड़े। उसने कह दिया, चौमास12 की नदी तो मैंने भी नहीं देखी, पार कर डाली, किसलिए? इसलिए कि तुम हमेशा मेरे साथ रहो। दु:ख के दिन तो हँसते-खेलते कट ही जाते बसु के बबा। और तो और नदी से ‘स्लीपर’ लाते वक्त मैंने कभी नहीं कहा मेरे कंधे दुख रहे हैं। सपना देखा ठैरा मैंने तख्ते वाले घर का। अब तो घर पाथर वाला भी बन जाएगा। फौजी जो हो गये ठैरे तुम। चार दिन से देख रही हूँ ये सिक्किम वाली शराब पीकर ही बात करते हो। खुद तो देश चले गये लेकिन छोड़ गये इस खपराखंड घर में मुझे। वो भी सात बच्चों के साथ। सच कहूँ, बसु के बबा, ये जिसे तुम देश कह रहे हो ना, वो मेरे लिए तो परदेश ही हुआ। देश तो अपना मुलुक13 होता है जहाँ अपने इष्ट-मितुर हों।

लालमती आज रेडियो की तरह बोले ही जा रही थी। लगता था हीरा ने लालमती के किसी नासूर पर कसकर लात जमा दी हो जिससे मवाद बहता चला गया था। उसके बहने के साथ ही एक मार्मिक दर्द लगातार लालमती के गालों से टपकता रहा। उसका चेहरा सफेद हो चुका था। वह कहती रही, हवलदार इतने में ही संतुष्ट क्यों नहीं हो जाते। क्या पा लोगे अब फौज में जाकर? यहीं बहुत है हमारे लिए, हमारे बच्चों के लिए। सूखा खायेंगे पर साथ रहेंगे। सोच लो! दिन नहीं लौटते कभी बसु के बबा और अगर दिन लौट भी गये तो हौसिया14 प्राण बूढ़ा हो जाएगा तब तक।

हीरा चुप था। उसे लग रहा था कि लालमती सही कह रही है लेकिन पहाड़ी ही हुआ। जड़म्म15 से उठा और अपने ट्रंक से लाल कपड़े में रखी भगवद् गीता की किताब निकालकर लालमती को दिखाते हुए बोल उठा, लालमती देख गीता है गीता। भगवान श्रीकिशन ने लिखी थी। इसी में हाथ रखकर कसम खायी है मैंने कि मरते दम तक देश की रक्षा करूँगा। अब तू ही बता छोड दूं कसम? जुबान भी तो कोई चीज ठैरी। मुझे भी तो अपने घर-परिवार की याद आती ही होगी?

आँखों में आँसू भरकर यह सवाल खुद से ही पूछा था हीरा ने तभी लालमती ने कहा, छि:! अब ये भी कोई बात हुयी फिर। मैं भ्यास16 हूँ, मुझे तो पता ठैरा वहाँ कसम खिलाते हैं करके, फिर भी मैंने ऐसा कहा, कीड़े पड़ें मेरी जबान में। हो गया अब,आज से कभी नहीं कहूँगी तुमसे। तुम्हारे भी तो हाथ बँधे ठैरे।

हीरा ने कपड़े में बँधी गीता को ज़मीन में रख दिया था तो लालमती ने हीरा को डाँटते हुए कहा, अब इस पवित्र चीज़ को मट्टी में मत रखो। जाओ जहाँ से निकाला है वहीं रखो। मेरे भी कई दु:ख हैं, आजादी की जिन्दगी ठैरी। अपनी मर्जी से उठो, अपनी मर्जी से सो जाओ। दु:ख तो तुम्हारा हुआ बसु के बबा! खुखुरी की धार में जीना ठैरा तुम्हारा।

यह कहते हुए लालमती ने अपने आँख के आँसू पोछे और फिर उसी पल्लू से सब्जी का भदेला17 उतार कर नीचे रख दिया। तवा आँच पर चढ़ाया, चिमटे से आग खरोंची और कोयले बाहर खींच कर चूल्हे के मुँह पर फैला दिए ताकि मक्का और मडुवे की मिक्स रोटी में डाम18 दहक कर लग सके। चूल्हे के बाएँ डीलकण में घी का डब्बा रख दिया गरम करने को। इस बार हीरा की एक महीने अट्ठाइस दिन की लम्बी छुट्टी थी। कब छुट्टी कटी पता ही नहीं चला। आखिरकार, हीरा फौज में लौट आया। इसी तरह से हीरा ने अपनी पूरी नौकरी की। अब वह पेंशन आ चुका है।
(aiwa ki kasam pared story)

गर्मी के दिन हैं। हीरा आज पचास साल पहले के दिन भूल चुका है। उसे कुछ भी याद नहीं। सबसे बड़े बेटे का परिवार अब परदेश मे है। छोटा बेटा गोपिया  का परिवार घर पर ही रहता है, लेकिन गोपिया फौज में है। हीरा का घर अब सीमेंट वाला है। घर पर ‘स्लीपरों’ का कोई नामो-निशान नहीं। हाँ, पाख पर एक एंटीना है। घर के भीतर एक टीवी है जिसमें एक विज्ञापन चल रहा है- जापान की किसी इलैक्ट्रोनिक कम्पनी ‘आईवा’ का। हीरा के नाती-पोते और बहू सब टीवी देख रहे हैं। जैसे ही ‘आईवा’का विज्ञापन आया हीरा दौड़कर चाख पर पहुँच गया और खुद भी कहने लगा ‘आईवा’….’आईवा’..!

इस कम्पनी ने अपने विज्ञापन में अभिवादन का तरीका बदल दिया था इसलिए हीरा ने भी नमस्कार की जगह ‘आईवा’’आईवा’ कहना शुरू कर दिया था। इस शब्द को लगातार कहने के कारण अब हीरा भी ‘आईवा’ कहलाने लगा था। एक नम्बर का शराबी बुड्ढा था हीरा जिसकी पेंशन कभी भी घर नहीं पहुँचती थी। वह सारी पेंशन शराब में उड़ा जाता। बेटे जो कुछ रुपये अपनी ईजा को देते हीरा उन पैसों की भी शराब पी डालता और चिल्लाता था ‘आईवा’ ‘आईवा’।

हर वक्त उसके कंधे में फौजी चितकबरे खोल में रेडियो जरुर लटकता रहता। अब कोई भी हीरा को उसके नाम से नहीं जानता था। खासकर, नये बच्चे ‘आईवा’ताऊ  या ‘आईवा’बूबू ही कहते थे। उस समय जब हीरा टीवी में आईवा का विज्ञापन सुनकर उसे देखने के लिए चाख पर दौड़ा था, ठीक उसी समय बाहर आँगन के दूसरी तरफ लालमती को पागलपन का दौरा पड़ा हुआ था लेकिन अब उसकी तरफ कोई ध्यान ही नहीं देता। लालमती की इस रोज-रोज की ऊल-जलूल हरकत से उसके बहू-बेटे भी आजिज़ आ चुके थे। हीरा को भी अपनी घरवाली से कोई मतलब नहीं रह गया था। इस समय वह औरत गा रही थी-

हथगोली में काँणो बुड़ो, गाज्यो कुमरी को
छोडि ज़ालै पाप लागलो, बाली उमरी को।19

इस न्योली को लय में गाते हुए वह एकाएक जोर से रोने लगी और अचानक बड़ा सा पत्थर उठा लिया जिसके नीचे से फनफनाता हुआ साँप निकल आया था। गजब बात ये कि पूरा मुहल्ला लालमती के इस करतब को देख रहा था जबकि उसका परिवार फुल वाल्यूम में टीवी देख रहा था। बीच-बीच में हीरा नशे में धुत्त ‘आईवा’आईवा’ चिल्ला रहा था। इधर जब लालमती ने साँप को हाथ से पकड़कर सीमेंट के कट्ठे में डाल दिया तो गाँव वालों ने आवाज लगाई, ओ भीतर वालो! बुढ़िया मर जायेगी। बाहर आओ रे!

आवाज सुनकर हीरा बाहर आया और लालमती के हाथ से सीमेंट का कट्टा छीनकर दूर पछेट दिया लेकिन लालमती ने उस बड़े पत्थर की ओर इशारा करते हुए कहा, चलो कंधा लगाओ इस स्लीपर में।

यह सुनकर हीरा हँसा और ‘आईवा़..’ कहते हुए उसने लालमती को पकड़कर जानवरों के साथ गोठ में डाल दिया और बाहर से दरवाजा भेड़कर साँकल मार दी।

आखिरी जत्काल के दिनों के बाद लालमती ढीली पड़ती चली गयी थी। हीरा के फौज में जाने के बाद अब हीरा में वो बात नहीं रह गयी थी। न वह सहजपन ही बचा था। पहले लालमती कितनी ही थकी हो पर हीरा के दो आँखर प्यार से बोलने पर सारी थकान दूर हो जाती थी, लेकिन अब हीरा एक संवेदनहीन आदमी था। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, लालमती कितनी ही थकी हो। हीरा को खाना चाहिए और बिस्तर चाहिए। लालमती के घर का कोई सदस्य यहाँ तक कि उसके छोटे-छोटे नाती-नातिन भी कतराते थे ये सोचकर कि क्या पता बुढ़िया को किसी समय अचानक पागलपन के दौरे न पड़ने लगें। हीरा पेंशन आने के बाद से रेडियो कंधे में लटकाए हाथ में लम्बी लाठी लिए घूमता रहता। ईष्ट-मित्रों के यहाँ बारात-काज में सब जगह जाता। पीता और पीकर धुत्त रहता। बारातों में छलियों के बीच नाचता और लाठी कंधे में रखता ठीक बंदूक की तरह और एक पैर मोड़कर व एक पैर में खड़ा होकर चिल्लाता ‘आईवा ..आईवा़.!’
(aiwa ki kasam pared story)

लम्बे समय बाद एक दिन पागलपन के झौंके में लालमती ने भँवर की ताल में कूद मार दी। तीन दिन बाद उसकी लाश मिली। जैसे-तैसे उसकी अंतिम क्रिया संपन्न हुयी। अब भी हीरा के वही हाल थे। वह नहीं सुधरा। लालमती को भले ही पागलपन के दौरे पड़ते थे पर वह हीरा का पूरा ख्याल रखती थी। उसके कपड़े धोने से लेकर खाना-खिलाने और शराब पीकर आये तो खींचकर भीतर ले जाकर सुला देना। कभी-कभी हीरा इतना धुत्त होता कि वह उसे नहला भी देती थी। लालमती के मरने के बाद हीरा को बहू-बेटों ने मुँह नहीं लगाया। वह अब महीनों घर से बाहर रहता। कभी कहीं, कभी कहीं भटकता रहता। उसकी दाड़ी-बाल किसी औघड़बाबा की तरह बढ़ने लगे थे।

धीरे-धीरे हीरा की ताकत क्षीण होती जा रही थी और उसका बेटा गोपिया अपने बच्चों समेत पूरे घर में ताला ठोक कर परदेश चला गया। खुला छोड़गया ‘गोठ20’ अपने बाप के लिए। अकेला हीरा अब क्या खाए? पेंशन तो उसी दिन खत्म हो जाती जिस दिन मिलती या लोग उसे पिला कर लूट लेते। कहते हैं वक्त और हालात सब कुछ बदल देते हैं पर अफसोस कि हीरा को यह बात तब समझ में आई जब उसकी दीठ तिथान पर पहुँच चुकी थी फिर कहाँ शराब छूटती। अब उसे लालमती याद आने लगी। वह रोता और पुराने दिन याद करता था। वह लाचार जानवर-सा उस गोठ में घुटने लगा था। अक्सर ही वह फौज को गाली देता चीखता-चिल्लाता। ‘आईवा’शब्द जो कल तक सभी को रौनक से भर देता था, अब इसके भीतर एक उदास चीख थी, एक दारुण कहानी थी। अब हीरा का ‘आईवा’ कहना ‘ओ ईजा! ओ बबा!’21 सा सुनाई देने लगा था। जिस घर को बनाने के लिए लालमती और हीरा ने न रात देखे न दिन, स्लीपर चुराकर इकट्ठा करके जैसे-तैसे तख्ते लगाये। आज हीरा उसी घर के गोठ में जहाँ जानवर बाँधे जाते हैं सड़कर मरने को मजबूर था। वह फौज से नफरत करता था। वह कहता था, ये जहर मेरे भीतर फौज ने ही भरा है। कभी-कभी वह धार पर आता और ‘आईवा़….आईवा’ कहता फिर फौज के सैप लोगों का नाम लेकर गाली देता।

फौज ने मुझसे मेरी घरवाली छीन ली। मेरे बच्चों ने मुझे छोड़ दिया। गाँव वालो, देख लो। फौज में जावोगे तो कहीं के नहीं रहोगे रे! सुन लो बे।  

पहली तारीख को वह बैंक से पेंशन लेकर आया। बंसी की दुकान से उसने मच्छी मारने के बहाने एक डायनामाईट कारतूस खरीदा और ठीक छ: बजे घर पहुँचा। अपने थैले से शराब निकाली, नमकीन खोली और करीब पन्द्रह मिनट के बाद वह धार पर आया और ‘आईवा-आईवा’चिल्लाया। गाँव वाले समझ गये थे कि आज पहली तारीख है। अब हफ्ते भर जब तक पैसे खत्म नहीं हो जाते हीरा सिंह का यही चलेगा। यही सोचकर सब चुप रहे। ठीक सात बजे एक बड़ा धमाका हुआ। गाँव वाले हड़बड़ाहट में दौड़े तो देखा कि हीरा का घर मलवे के ढेर में तब्दील हो चुका था। उस समय ठीक साँझ के सात बजे थे। कहीं मलवे के भीतर से रेडियो में विविध भारती स्टेशन पर सैनिकों का कार्यक्रम ‘जयमाला’शुरू होने का बाजा बजा और गीत शुरू हो गया। गाँव वालों ने कान लगाकर सुना तो मलवे के ढेर के भीतर कहीं यह गीत बज रहा था-आओ बच्चो तुम्हें दिखाएँ झाँकी हिन्दुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की, बन्दे मातरम्, बंदे मातरम़्…!

अर्थ/भावार्थ

1. पानी में चलकर पार पहुँचने का घाट 2. तख्तों का मोटा सपाट छिला हुआ तना 3. गर्भवती 4. टहनी टूटी पीपल की झड़ा खीरे का पात/लालमती हीरा का मरना भी हो साथ। 5. नदी में कूद मारना 6. लोहे का एक प्रकार 7. धुव्रतारा 8. पति 9. पूरी तरह 10. घर-गृहस्थी 11. इस पहाड़ से उस पहाड़ 12. चातुर्मास 13. अपना गाँव घर 14. रंगीला 15. औचक 16. सब कुछ जानने समझने के बाद भी अपने मन की करने वाला 17. कड़ाई 18. सेक 19. हथेली के बीच में काँटा चुभा घास का/छोड़ जायेगा अगर तो पाप लगेगा इस कच्ची उम्र का। 20. जानवरों के बाँधने का स्थान 21. ओ माँ ओ पिता।
(aiwa ki kasam pared story)
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