डायरी : जंग के खिलाफ

मलाला

बारह-तेरह साल की ही एन फ्रैंक थी। दूसरे महायुद्घ के दौरान फासीवादी हिटलर की सेना से छिपने-छिपाने के दौरान वह एक डायरी लिख रही थी। आखिर में यह बच्ची पकड़ी गई। हिटलर के यातना शिविर में 15 साल की उम्र में उसने दम तोड़ दिया। सालों बाद इस डायरी के जरिए एक बच्ची की नजर से दुनिया हिटलर के शासन में लोगों की जिंद्गी से रूबरू हुई।

‘गुल मकई’  की उम्र भी ऐसी ही थी। पाकिस्तान के खूबसूरत इलाके स्वात की रहने वाली। अफगानिस्तान के रास्ते तालिबान ने जब पाकिस्तान की ओर कदम बढ़ाया तो स्वात और उसके जिंदादिल लोग रास्ते में आए। तालिबान तो तालिबान हैं। वे हिटलर की तरह दुनिया को एक रंग में रचने का ख्वाब देखने वाले तालिबान स्वात के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया। स्कूलों को निशाना बनाने लगे और खास तौर पर लड़कियों के स्कूलों को। उन्होंने स्कूल बंद करने का फरमान जारी किया। स्कूल गिरा दिए। अंदाजा है कि 2001 से 2009 के बीच उन्होंने करीब चार सौ स्कूल ढहा दिए। इनमें से 70 फीसदी स्कूल लड़कियों के थे। उन्होंने लड़कियों का बाहर निकलना मुश्किल कर दिया। लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगाने का एलान कर दिया। काफी दबाव के बाद तालिबान को स्वात से निकालने के लिए फौज को कार्रवाई के लिए भेजा गया।

इसी बीच बीबीसी उर्दू पर स्वात की बेटी गुल मकई सामने आई। गुल मकई की नजर से दुनिया ने तालिबान के शासन में जिन्दगी के बारे में जाना। खास तौर पर लड़कियों और महिलाओं की जिन्दगी के बारे में। डायरी जनवरी से मार्च 2009 के बीच दस किस्तों में बीबीसी उर्दू की वेबसाइट पर पोस्ट हुई। स्वात से लेकर दुनिया के कई हिस्सों में इस डायरी ने तहलका मचा दिया। फौजी कार्रवाई खत्म होने के बाद दिसंबर 2009 में पता चला कि ‘गुल मकई’ स्वात की ही बेटी है और उसका नाम मलाला युसूफजई है। तालिबान से बचाने के लिए उसे यह नाम दिया गया था।

वर्ष 2014 में इन्हें और श्री कैलाश सत्यार्थी को शांति के लिए नोबेल पुरस्कार मिला है। यह सम्मान पाने वाली वह सबसे कम उम्र की है।

मलाला ने जो डायरी के पन्ने लिखे, वह एन फ्रैंक की डायरी की ही तरह हमें उस दुनिया से दो-चार कराते हैं, जिनमें वह रह रही थी। बीबीसी उर्दू की वेबसाइट से साभार उस डायरी को हम यहाँ पेश कर रहे हैं।

सनीचर, 3 जनवरी 2009 : मैं डर गई और रफ्तार बढ़ा दी
कल पूरी रात मैंने ऐसा डरावना ख्वाब देखा जिसमें फौजी हेलीकॉप्टर और तालिबान दिखाई दिए। स्वात में फौजी आपरेशन शुरू होने के बाद इस किस्म के ख्वाब बार-बार देख रही हूँ। माँ ने नाश्ता दिया और फिर तैयारी करके स्कूल के लिए रवाना हो गई। मुझे स्कूल जाते वक्त बहुत खौफ महसूस हो रहा था क्योंकि तालिबान ने एलान किया है कि लड़कियाँ स्कूल न जाएँ।

आज हमारे क्लास में सत्ताईस में से सिर्फ 11 लड़कियाँ हाजिर थीं। यह तादाद इसलिए घट गई है कि लोग तालिबान के एलान के बाद डर गए हैं। मेरी तीन सहेलियाँ स्कूल छोड़कर अपने खानदान वालों के साथ पेशावर, लाहौर और रावलपिंडी जा चुकी हैं।

एक बजकर चालीस मिनट पर स्कूल की छुट्टी हुई। घर जाते वक्त रास्ते में मुझे एक शख्स की आवाज सुनाई दी जो कह रहा था, ‘मैं आपको नहीं छोड़ूँगा।’ मैं डर गई और अपनी रफ्तार बढ़ा दी। जब थोड़ा आगे गई तो पीछे मुड़कर देखा तो वह किसी और को फोन पर धमकियाँ दे रहा था। मैं यह समझ बैठी कि वह शायद मुझे ही कह रहा है।

इतवार, 4 जनवरी 2009 : कल स्कूल जाना है, मेरा दिल धड़क रहा है
आज छुट्टी है, इसलिए मैं नौ बजकर चालीस मिनट पर जागी लेकिन उठते ही वालिद साहब ने यह बुरी खबर सुनाई कि आज फिर ग्रीन चौक से तीन लाशें मिली हैं। इस वाकए की वजह से दोपहर को मेरा दिल खराब हो रहा था। जब स्वात में फौजी कार्रवाई शुरू नहीं हुई थी उस वक्त हम तमाम घर वाले इतवार को पिकनिक के लिए मीर गुजार, फिजाए घट और कांजू चले जाते थे। अब हालात इतने खराब हो गए हैं कि हम डेढ़ साल से पिकनिक पर नहीं जा सके हैं।

हम रात को खाने के बाद सैर के लिए बाहर भी जाया करते थे। अब हालात की वजह से लोग शाम को ही घर लौट आते हैं। मैंने आज घर का काम-काज किया, होम वर्क किया और थोड़ी देर के लिए छोटे भाई के साथ खेली। कल सुबह फिर स्कूल जाना है और मेरा दिल अभी से धड़क रहा है।
Diary: against war

पीर, 5 जनवरी 2009 : जरक-बरक लिबास पहन कर नहीं आएँ
आज जब स्कूल जाने के लिए मैंने यूनिफार्म पहनने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो याद आया कि हेडमिस्ट्रेस ने कहा था कि आइंदा घर के कपड़े पहन कर स्कूल आ जाया करें। मैंने अपनी पसंदीदा गुलाबी रंग के कपड़े पहन लिए। स्कूल में हर लड़की ने घर के कपड़े पहन लिए जिससे स्कूल घर जैसा लग रहा था। इस दौरान मेरी एक सहेली डरती हुई मेरे पास आई और बार-बार कुरआन का वास्ता देकर पूछने लगी कि ‘खुदा के लिए सच-सच बताओ, हमारे स्कूल को तालिबान से खतरा तो नहीं?’

मैं स्कूल खर्च यूनिफार्म की जेब में रखती थी लेकिन आज जब भी मैं भूले से अपने जेब में हाथ डालने की कोशिश करती तो हाथ फिसल जाता क्योंकि मेरे घर के कपड़ों में जेबें सिलीं ही नहीं थीं।

आज हमें असेंबली में फिर कहा गया कि आइंदा से जरक-बरक (तड़क-भड़क, रंगीन) लिबास पहन कर न आएँ क्योंकि इस पर भी तालिबान खफा हो सकते हैं।

स्कूल की छुट्टी के बाद घर आई और खाना खाने के बाद ट्यूशन पढ़ा। शाम को मैंने टेलीविजन ऑन किया तो इसमें बताया गया कि शिकरदा से पंद्रह रोज के बाद  कफ्र्यू उठाया गया। मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि हमारे अंग्रेजी की उस्ताद का ताल्लुक इसी इलाके से है और वह शायद कल पंद्रह दिन के बाद पढ़ाने के लिए स्कूल आ जाएँ।

बुध, 7 जनवरी 2009 : न फायरिंग न डर
मैं मुहर्रम अल हराम की छुट्टियाँ गुजारने अपनी फेमिली के साथ जिला बूनीर आई हूँ। बूनीर मुझे बहुत पसंद आया। यहाँ चारों तरफ पहाड़ और सरसब्ज वादियाँ हैं। मेरा स्वात भी तो बहुत खूबसूरत है लेकिन वहाँ अमन जो नहीं। यहाँ अमन भी है और सुकून भी। न फायरिंग की आवाज और न ही कोई खौफ। हम सब घर वाले यहाँ बहुत खुश हैं।

आज पीर बाबा के मजार पर गए थे। वहाँ लोगों का बहुत ज्यादा रश था। वह मन्नतें माँगने आए थे और हम तफरीह के लिए। यहाँ पर चूड़ियाँ, झुमके, लॉकेट वगैरह बिकते हैं। मैंने शॉपिंग करने का सोचा था मगर कुछ भी पसंद नहीं आया। अलबत्ता अम्मी ने झुमके और चूड़ियाँ खरीद लीं।

जुमा, 9 जनवरी 2009 : मौलाना शाह दौरान छुट्टी पर चले गए
आज मैंने स्कूल में अपनी सहेलियों को बूनीर के सफर के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि तुम्हारे ये किस्से सुनते-सुनते हमारे कान पक जाएँगे। हमने एफएम चैनल पर तकरीर करने वाले तालिबान रहनुमा मौलाना शाह दौरान की मौत से मुतल्लिक उड़ाई गई खबर पर खूब बहस की। उन्होंने ही लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी का ऐलान किया था।

कुछ लड़कियों का कहना था कि वह मर गए हैं। कुछ ने कहा कि नहीं, जिंदा हैं। उन्होंने चूँकि गुजिश्ता रात तकरीर नहीं की थी इसीलिए उनकी मौत की अफवाह फैलाई गई थी। एक लड़की ने कहा कि वह छुट्टी पर चले गए हैं।

जुमा को हमारे ट्यूशन की छुट्टी होती है इसलिए हम आज देर तक खेलते रहे। अभी-अभी ज्यों ही मैं टीवी देखने बैठ गई तो खबर आई कि लाहौर में धमाके हो गए हैं। मैंने कहा – या अल्लाह, दुनिया में सबसे ज्यादा धमाके पाकिस्तान में ही क्यों होते हैं।
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बुध, 14 जनवरी , 2009 : शायद दोबारा स्कूल न आ सकूँ
आज मैं स्कूल जाते वक्त बहुत खफा थी क्योंकि कल से सर्दियों की छुट्टियाँ शुरू हो रही हैं। हेडमिस्ट्रेस ने छुट्टियों का ऐलान किया तो मगर मुकर्रर तारीख नहीं बताई। ऐसा पहली बार हुआ है। पहले हमेशा छुट्टियों के खत्म होने की मुकर्रर तारीख बताई जाती थी। इसकी वजह तो उन्होंने नहीं बताई लेकिन मेरा खयाल है कि तालिबान की जानिब से पंद्रह जनवरी के बाद लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी के सबब ऐसा किया गया है।

इस बार लड़कियाँ भी छुट्टियों के बारे में पहले की तरह ज्यादा खुश दिखाई नहीं दे रही थीं क्योंकि उनका खयाल था कि अगर तालिबान ने अपने ऐलान पर अमल किया तो शायद स्कूल दोबारा न आ सकें।

कुछ लड़कियाँ पुरउम्मीद थीं कि इंशा अल्लाह फरवरी में स्कूल दोबारा खुल जाएँगे लेकिन बाज ऐसी भी थीं कि जिन्होंने बताया कि उनके तालीम जारी रखने की खातिर उनके माँ-बाप ने स्वात से नक्ल मकानी (जगह बदलना) करने का फैसला किया है।

आज चूँकि स्कूल का आखिरी दिन था इसीलिए हम सहेलियों ने स्कूल के ग्राउंड में देर तक खेलने का फैसला किया। मुझे भी यह उम्मीद है कि इंशा अल्लाह हमारा स्कूल बंद नहीं होगा लेकिन फिर भी निकलते वक्त मैंने स्कूल की इमारत पर ऐसी नजर डाली जैसे दोबारा यहाँ नहीं आ सकूँगी।

जुमेरात, 15 जनवरी 2009 : तोपों की घन गरज से भरपूर रात
पूरी रात तोपों की शदीद घन गरज थी जिसकी वजह से मैं तीन मर्तबा जाग उठी। आज ही से स्कूल की छुट्टियाँ भी शुरू हो गई हैं इसलिए मैं आराम से दस बजे उठी। बाद में मेरी एक क्लास फेलो आई जिसने मेरे साथ होमवर्क डिस्कस किया।

आज 15 जनवरी थी यानी तालिबान की तरफ से लड़कियों के स्कूल न जाने की धमकी की आखिरी तारीख मगर मेरी क्लास फेलो कुछ इस एत्माद से होमवर्क कर रही है जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

आज मैंने मकामी अखबार में बीबीसी पर शाया होने वाली अपनी डायरी भी पढ़ी। मेरी माँ को मेरा फर्जी नाम ‘गुल मकई’ बहुत पसंद आया और अब्बू से कहने लगी कि मेरा नाम बदल कर गुल मकई क्यों नहीं रख लेते। मुझे भी यह नाम पसंद आया क्योंकि मुझे अपना नाम इसलिए अच्छा नहीं लगता कि इसके मानी ‘गमजद:’ के हैं।

अब्बू ने बताया कि चंद दिन पहले भी किसी ने डायरी की प्रिंट लेकर उन्हें दिखाई थी कि ये देखो, स्वात की किसी तालिबा की कितनी जबरदस्त डायरी छप रही है। अब्बू ने कहा कि मैंने मुस्कराते हुए डायरी पर नजर डाली और डर के मारे यह भी न कह सका कि ‘हाँ, यह तो मेरी बेटी की है।’

इतवार, 18 जनवरी 2009 : सिक्योरिटी फोर्सेज भी जिम्मेदार
आज अब्बू ने बताया कि हुकूमत हमारे स्कूलों की हिफाजत करेगी। वजीर-ए-आजम ने भी हमारे बारे में बात की है। मैं बहुत खुश हुई। लेकिन इससे तो हमारा मसला हल नहीं होगा। यहाँ हम स्वात में रोजाना सुनते हैं कि फलाँ जगह पर इतने फौजी मर गए हैं। उधर उतने अगवा हो गए। पुलिस वाले तो आजकल शहर में नजर आ ही नहीं रहे हैं। हमारे माँ-बाप बहुत डरे हुए हैं। वह कहते हैं कि जब तक तालिबान खुद ही एफएम चैनल पर अपना एलान वापस नहीं लेते, वह हमें स्कूल नहीं भेजेंगे। खुद फौज की वजह से भी हमारी तालीम मुतास्सिर हुई है। आज हमारे मुहल्ले का एक लड़का स्कूल गया था तो वहाँ पर उस्ताद ने उससे कहा कि तुम वापस घर चले जाओ क्योंकि कफ्र्यू लगने वाला है। वह जब वापस आया तो पता चला कि कफ्र्यू नहीं लग रहा है बल्कि उस रास्ते से फौजी काफिले को गुजरना था इसलिए स्कूल से छुट्टी कर दी गई।
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पीर, 19 जनवरी 2009 : स्कूल की बिल्डिंग को क्यों सजा दी जा रही है
आज फिर पाँच स्कूलों को बमों से उड़ा दिया गया। इनमें से एक स्कूल तो मेरे घर के करीब है। मैं हैरान हूँ कि ये स्कूल तो बंद थे फिर क्यों उन्हें आग लगाई गई। तालिबान के डेडलाइन के बाद तो किसी ने भी स्कूल में कदम नहीं रखा था। आखिर ये लोग बिल्डिंग को क्यों सजा दे रहे हैं।

आज मैं अपनी एक सहेली के घर गई थी। उसने कहा कि चंद दिन पहले मौलाना शाह दौरान के चचा को किसी ने कत्ल कर दिया था। शायद इसीलिए तालिबान ने गुस्से में आकर इन स्कूलों को जला दिया है। वह कह रही थी कि तालिबान को किसी ने तकलीफ पहुँचाई है। जब उन्हें तकलीफ पहुँचती है तो वह फिर इस तरह का गुस्सा हमारे स्कूलों पर निकालते हैं। फौजी भी कुछ नहीं कर रहे हैं। वह पहाड़ों में अपने मोर्चों में बैठे हुए हैं। बकरियाँ जबह करते हैं और मजे लेकर खाते हैं।

जुमेरात, 22 जनवरी 2009 : जहाँ फौजी वहाँ तालिब , जहाँ तालिब वहाँ फौजी नहीं
स्कूलों के बंद होने के बाद घर पर बैठ कर बहुत बोर हो गई हूँ। मेरी बाज सहेलियाँ स्वात से चली गई हैं। स्वात में आजकल हालात फिर बहुत खराब हैं। डर के मारे घर से बाहर नहीं निकल सकती। रात को भी मौलाना शाह दौरान ने एफएम चैनल पर अपनी तकरीर में ये धमकी दी कि लड़कियाँ घर से न निकलें। उन्होंने ये भी कहा कि फौज जिस स्कूल को मोर्चे के तौर पर इस्तेमाल करेगी वह उसे धमाके से उड़ा देंगे।

अब्बू ने आज घर में हमें बताया कि हाजी बाबा में लड़कियों और लड़कों के हाई स्कूलों में भी फौजी आ गए हैं। अल्लाह खैर करे। मौलाना शाह दौरान ने अपनी तकरीर में ये भी कहा कि कल तीन चोरों को कोड़े लगाए जाएँगे, जो भी तमाशा करना चाहता है वह पहुँच जाए। मैं हैरान हूँ कि हमारे साथ इतना जुल्म हुआ है, फिर लोग क्यों तमाशा करने जाते हैं। फौज भी तालिबान को ऐसा करने से क्यों नहीं रोकती। मैंने देखा है कि जहाँ फौज होगी वहाँ तालिब होगा मगर जहाँ तालिब होगा वहाँ फौजी नहीं जाएगा।

सनीचर, 24 जनवरी : ऑनर बोर्ड पर शायद इस साल किसी का नाम न लिखा जाए
हमारे सालाना इम्तेहानात छुट्टियाँ खत्म होने के बाद होंगे, लेकिन यह उस वक्त होंगे जब तालिबान लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत दें। तैयारी करने के लिए हमें कुछ चैप्टर बताए गए हैं, मगर मेरा दिल पढ़ने को नहीं कर रहा है।

कल से फौज ने भी मिंगोरा में तालीमी इदारों की हिफाजत के लिए कंट्रोल सँभाल लिया है। जब दर्जनों स्कूल तबाह हो गए और सैकड़ों बंद हुए तो अब जाके फौज को हिफाजत का खयाल आया। अगर वह सही आपरेशन करते तो यह नौबत पेश ही न आती। मुस्लिम खान ने कहा है कि वह उन तालीमी इदारों पर हमला करेंगे जिनमें फौजी होंगे। अब तो स्कूल में फौजियों को देख कर हमारा खौफ और भी बढ़ जाएगा।
क्रमश:
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