विमेन ग्रैजुएट्स यूनियन

मधु जोशी

बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में जब महिला-पुरुष समानता की विचारधारा अपने शैशवकाल में थी और जब शिक्षा द्वारा महिला-सशक्तीकरण की अवधारणा अंकुरित हो ही रही थी, मुम्बई (तब बम्बई) में चन्द प्रगतिशील, शिक्षित महिलाओं ने विमैन ग्रैजुएट्स यूनियन (डब्ल्यू.जी.यू.) नामक संस्था की स्थापना की। 1915 में स्थापित इस संस्था का उद्देश्य विशेष रूप से महिलाओं की स्थिति में सुधार करना तो है ही, व्यापक रूप में इसकी रुचि समाजोत्थान में भी है। इसका मूल उद्देश्य शिक्षित महिलाओं को इस बात के लिए प्रेरित करना है कि वह समाज के हाशिये से बाहर निकलकर, सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक तथा नागरिक मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करने के साथ-साथ, उन मुद्दों से जुड़ी समस्याओं के निवारण में अपना योगदान भी दें। इसके अलावा यह संस्था महिलाओं तथा उनके परिवारजनों से सम्बन्धित मसलों पर भी विशेष रूप से ध्यान देती है।

फरवरी 2015 में अपना शताब्दी-समारोह मनाने वाली इस संस्था की स्थापना ‘‘असोसिएशन ऑफ ब्रिटिश यूनिर्विसटी इन इंडिया’’ की पहल पर की गयी थी। कामा अस्पताल में कार्यरत डाक्टर ऐनैट बैन्सन द्वारा आयोजित बैठक में हैस्टर ग्रे, भीखाजी इन्जीनियर, डाक्टर जैरबानू मिस्त्री, एस पारेख, ऐग्नैस मक्कैन्जी, ओलिविया डा कून्हा आदि ने बम्बई प्रैजिडैन्सी विमैन ग्रैजुएट्स यूनियन की स्थापना की और घोषणा की कि किसी भी विश्वविद्यालय की कोई भी स्नातक महिला इस संस्था की सदस्य हो सकती है। उल्लेखनीय है कि 1888 में कॉर्नीलिया सोराबजी ने प्रथम श्रेणी में स्नातक (कला संकाय) की उपाधि प्राप्त की थी और बम्बई प्रेसिडैन्सी की इस प्रथम महिला स्नातक से प्रेरित होकर, 1915 तक इस क्षेत्र में लगभग 200 महिलाओं ने स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली थी।

ग्रैजुएट विमैन्स यूनियन की सभाओं में महिला स्नातकों को निश्चित अन्तराल पर मिलने, विचारों का आदान-प्रदान करने तथा सामाजिक और शैक्षणिक मसलों पर राय कायम करने के अवसर मिलते हैं। आरम्भ में यह धारणा थी कि यूनियन महिला स्नातकों को उबाऊ घरेलू कार्यों और व्यावसायिक नीरसता से इतर कुछ बातचीत करने के मौके प्रदान करेगी किन्तु शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि यह महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में रुचि, पूर्ण जानकारी तथा सहभागिता की तरफ अग्रसर होने के अनेकानेक अवसर प्रदान कर रही है। जैसे-जैसे इस संस्था की नींव सुदृढ़ हुई और जैसे-जैसे इसकी गतिविधियों का विस्तार हुआ, नयी स्नातकों का स्वागत करने वाला इसका वार्षिकोत्सव इन महिलाओं को उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित करने के अलावा उन्हें सक्रिय सामाजिक जीवन में पदार्पण करने का मंच भी प्रदान करने लगा।

1918 में इस संस्था की 126 सदस्य थीं और 1937 में यह संख्या बढ़कर 250 हो गयी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान संस्था की सदस्य संख्या और गतिविधियाँ दोनों में ही कमी आयी और 1948 में इसकी सदस्य संख्या केवल 77 रह गयी। इसके बाद इसकी सदस्य संख्या में पुन: बढ़ोत्तरी होने लगी और अपने हीरक जयन्ती वर्ष में इसकी सदस्य संख्या बढ़कर 634 हो गयी। शीघ्र ही यह ‘‘इंडियन फैडरेशन ऑफ यूनिर्विसटी विमैन्स असोसिएशन’’ की सबसे बड़ी इकाई बन गयी।

शनै: शनै यूनियन के प्रयास रंग लाने लगे और 1925 में इसके द्वारा निरन्तर की गयी माँग के फलस्वरूप तीन महिलाओं डॉ. टर्नर  वॉट्स, डॉ. काशीबाई नौरंगे और भीकाजी इंजीनियर की मुम्बई में जस्टिस ऑफ द पीस के रूप में नियुक्ति की गयी। 1950 से यूनियन ने विधायी कार्यों, विशेषकर नागरिक स्वतंत्रता, मूल अधिकारों, हिन्दू नागरिक संहिता तथा सम्पूर्ण देश में बम्बई बाल कानून से प्रेरित कानून बनाने की तरफ ध्यान देना शुरू किया। 1962 से 1965 के दौरान संस्था ने सामाजिक-र्आिथक अध्ययन भी कराये, उदाहरणत: कामकाजी महिलाओं की समस्याओं, महिला स्नातकों की शिक्षा, प्रशिक्षण तथा रोजगार से जुड़े मुद्दों पर संस्था द्वारा गहन अध्ययन कराये गये। कुछ समय बाद यूनियन ने भारत की राष्ट्र भाषा पर भी अध्ययन कराया और यह दत्तक ग्रहण विधेयक 1972 से भी जुड़ी रही। 1962 में चीन के साथ युद्ध और 1965 तथा 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान इसने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री द्वारा देश के रक्षा प्रयासों के प्रति योगदान में भी सहभागिता की। 1972 में यूनियन ने ‘‘1970-71 के दौरान भारत में महिलाओं की रोजगार सम्बन्धी प्रवृत्तियाँ’’  पर सर्वेक्षण कराया। 1974 में विदेशी छात्राओं के समक्ष उत्पन्न होने वाली समस्याओं को ध्यान में रखते हुए यूनियन द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय छात्र समूह की स्थापना की गयी।
(Women Graduates Union)

शिक्षा, विशेषकर महिलाओं के शैक्षणिक स्तर को सुधारना, वह प्रमुख मुद्दा है जिस पर विमैन ग्रैजुएट्स यूनियन ने आरम्भ से ही ध्यान केन्द्रित किया है। 1930 के दशक में जब सरकार द्वारा नियुक्त ‘‘शैक्षणिक तथा सामाजिक सुधार समिति’’ ने शिक्षा के क्षेत्र में वांछनीय परिवर्तनों पर विचार किया तो उस समिति में यूनियन की दो सदस्य एमी रुस्तमजी तथा गोदावरी गोखले भी शामिल थीं। इसके अलावा यूनियन ने समिति के समक्ष महिला शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न प्रस्ताव भी प्रस्तुत किये।

यूनियन महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत महिलाओं के संरक्षण तथा कल्याण पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करती है। जब कर्नाटक विश्वविद्यालय तथा गुजरात विश्वविद्यालय ने अपने अधिनियमों की समीक्षा की तो यूनियन ने महिलाओं के लिए आवासीय व्यवस्था, इन आवासों में महिला स्नातकों की वार्डन के रूप में नियुक्ति, महाविद्यालयों में महिलाओं के लिए मूलभूत स्वच्छता तथा स्वास्थ्य सुविधाओं से सुसज्जित विश्राम कक्ष की व्यवस्था तथा गृह अर्थशास्त्र विभाग की स्थापना जैसे मुद्दों पर समीक्षा समिति का ध्यान आर्किषत किया।

1970 के दशक में यूनियन ने छात्राओं के लिए परामर्श तथा मार्गदर्शन सेवा आरम्भ की तथा इस विषय पर जैवियर इन्सटीट्यूट ऑफ ऐड्यूकेशन द्वारा सर्वेक्षण भी कराया गया। आज इस परामर्श तथा मार्गदर्शन केन्द्र को यूनियन की सदस्याएँ स्वयं संचालित करती हैं। शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में संस्था प्रतिवर्ष परिचर्चा आयोजित करती है जिसमें महिला केन्द्रित विषयों पर चर्चा होती है। 1973 में यूनियन ने ‘‘यूनिर्विसटी वुमन’’ नामक पत्रिका आरम्भ की जिसमें संस्था की अपनी गतिविधियों के अलावा ऐसे अन्य समाचार, जिनमें  शिक्षित महिलाओं की रुचि हो सकती है, प्रकाशित होते हैं।

1959 में यूनियन की सदस्यों को महसूस होने लगा कि उन्हें बम्बई के बाहर से आने वाली कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास बनाना चाहिए किन्तु धनाभाव तथा सीमित संसाधनों सरीखी कठिनाइयों के कारण इस योजना को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। अन्तत:, 1960 में यूनियन को भारत सरकार से र्आिथक सहायता प्राप्त हुई और मुम्बई के तत्कालीन राज्यपाल श्री प्रकाश, टाइम्स ऑफ इंडिया के महाप्रबन्धक जे.सी. जैन, समाजसेवी एस. के. वानखेड़े तथा के.एम. चिनप्पा की सहायता और संस्था की सदस्यों के अनथक प्रयासों के फलस्वरूप 1974 में कोलाबा में कामकाजी महिला आवास की स्थापना हुई जिसमें आज भी सौ से ज्यादा महिलाओं के रहने की व्यवस्था है।
(Women Graduates Union)

1977 में यूनियन ने ‘‘हीरक जयन्ती चिकित्सा शोध छात्रवृत्ति’’ आरम्भ की जो महिलाओं की व्याधियों पर शोध के लिए महिला तथा पुरुष शोधार्थी दोनों को ही दी जाती है। 1984 में संस्था ने सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण हेतु मिठन लाम छात्रवृत्ति तथा नर्सिंग की छात्राओं के लिए जे.एन. हेरेडिया छात्रवृत्ति प्रारम्भ की। 2015 में यूनियन ने 115 महिलाओं को उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की।

यूनियन के कोलाबा स्थित कामकाजी महिला आवास के भवन में महिलाओं के लिए विभिन्न सुविधाएँ उपलब्ध हैं। इसमें कम्प्यूटर केन्द्र, परामर्श तथा मार्गदर्शन केन्द्र, बेहरामजी लालकका बालबाड़ी, अध्ययन केन्द्र, योग तथा एैसेबिक कक्षाएँ, उपभोक्ता तथा नागरिक मामलों से जुड़ा केन्द्र तथा विभिन्न छात्रवृत्तियाँ शामिल हैं। संस्था ने एक हीरक प्रकोष्ठ भी आरम्भ किया है जिसमें वरिष्ठ महिलाओं की सामाजिक आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाता है। इसी तरह से संस्था के अध्ययन केन्द्र में कक्षा एक से कक्षा आठ तक के, सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को नि:शुल्क ट्यूशन दिया जाता है और होमवर्क करने में उनकी सहायता की जाती है। संस्था की शीघ्र ही नर्सों के प्रशिक्षण हेतु केन्द्र खोलने की योजना है जिसमें नर्सों को वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जायेगा। स्पष्टत: यूनियन महिला सशक्तीकरण हेतु अपनी गतिविधियाँ केवल वैचारिक आदान-प्रदान अथवा कागजी कार्यवाही तक ही सीमित नहीं रखती है- यह वास्तविकता के धरातल पर इन्हें अमली जामा पहनाने के लिए भी सतत प्रयासरत है।

2016 में यूनियन अपना स्वर्ण जयन्ती वर्ष मना रही है। इस अवसर पर संस्था द्वारा अतीत की अपनी उपलब्धियों र्का ंसहावलोकन करने के साथ भविष्य की योजनाओं का खाका भी तैयार हो रहा है। शताब्दी समारोह समिति की अध्यक्ष स्वर्ण कोहली ने उपभोक्ता मामलों, सफाई व्यवस्था, नागरिक मामलों, ट्रैफिक संचालन आदि क्षेत्रों में और अधिक सक्रिय भागीदारी के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की है। इसी भावना से प्रेरित होकर 27 फरवरी 2016 को यूनियन ने ‘‘कानून द्वारा महिला सशक्तीकरण’’ पर सेमिनार आयोजित किया जिसमें उच्चतम न्यायालय की भूतपूर्व न्यायाधीश सुजाता मनोहर, मुम्बई उच्च न्यायालय की भूतपूर्व न्यायाधीश रोशन दलवी तथा वरिष्ठ वकील रजनी अय्यर ने सम्पत्ति सम्बन्धी कानूनों, वैवाहिक कानूनों तथा कार्यस्थल पर महिलाओं के अधिकारों पर विस्तृत जानकारी दी। यूनियन की वर्ष भर इसी तरह सेमिनार, व्याख्यान, कार्यशाला तथा जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने की योजना है। इसी श्रृंखला में 3 जून 2016 को यूनियन ने संस्था की विविध गतिविधियों के लिये धन जुटाने को कार्यक्रम आयोजित किया।

भविष्य के लिए योजनाओं को रेखांकित करते हुए विमैन ग्रैजुएट्स यूनियन की अध्यक्ष नंदिता सिंह ने कहा, ‘‘अनेक उपलब्धियों के बावजूद हमें अभी अन्त नहीं नजर आ रहा है। हम अभी भी समान कार्य के लिए समान वेतन के लिए संघर्षशील हैं।’’ उनके इस वक्तव्य से साफ जाहिर होता है कि पिछली शताब्दी के दौरान अनेक मील के पत्थर पार करने वाली यह संस्था भविष्य में भी विभिन्न छोटे-बड़े मुद्दों पर प्रयासरत रहकर महिलाओं के सशक्तीकरण तथा कल्याण हेतु अपना संघर्ष जारी रखने के लिए कृतसंकल्प है।
(Women Graduates Union)