आपकी चिट्ठियां

उत्तरा का अंक मिला। आभार। सदा की तरह उत्तरा अद्यतन  मुद्दे गम्भीरता से उठाती रही है। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर उत्तरा का सम्पादकीय इसका प्रमाण है। इसे पढ़ते हुए मुझे इसी प्रसंग पर लिखी अपनी कहानी ‘वह फूल छूना चाहती है’ का स्मरण आया। यह मेरे कहानी संग्रह ‘दस चक्र राजा’ में संकलित है।
हरीश चन्द्र पाण्डे, गाविन्दपुर कालोनी, इलाहाबाद-211004
(Letters to Uttara Mahila Patrika April-June 2019)

उत्तरा, जनवरी-मार्च, 2019 में ‘सुल्ताना का सपना’ पढ़ना एक नयी सोच और दृष्टि से परिचित होना है। कोई 114 वर्ष पूर्व लिखी गयी यह रचना अपनी कल्पना और सोच में अद्भुत और क्रांतिकारी कही जाएगी। आपने सम्पादकीय टिप्पणी में इसे उपन्यास कहा है और ‘ज्यों का त्यों’ छापने की बात भी। क्या यह उपन्यास इतना ही संक्षिप्त है, जितना छपा है या एक अंश भर? पुस्तकों की समीक्षा या चर्चा के साथ उनके प्रकाशक, आदि का विवरण दे दिया जाए तो इच्छुक पाठक पुस्तक मंगवा सकते हैं। यही बात सीमा आजाद की किताब ‘जिंदांनामा’ और ‘माफिआ क्वींस ऑफ मुम्बई’ के बारे में भी कहना चाहता हूँ। इन पर टिप्पणियाँ पढ़ कर पूरी पुस्तक पढ़ने का मन हो आया। और हाँ, इस अंक से आपने राधा बहन की जीवन कथा प्रकाशित करना शुरू करके बहुत बढ़िया काम किया है़ आगे की किस्तों के लिए उत्तरा का इंतजार रहेगा। शुभकानाओं सहित-
नवीन जोशी, लखनऊ
(Letters to Uttara Mahila Patrika April-June 2019)

अंक प्रेषण हेतु धन्यवाद। उत्तरा समाज में स्त्रियों पर होते अत्याचारों व उनके शोषण के विरुद्ध जागरूकता तथा संघर्ष की वाहक प्रतिनिधि पत्रिका है। इस अंक में प्रकाशित सभी रचनाएँ उच्चस्तरीय व साहित्यिक हैं। उमा अनन्त ढौंढियाल ने अपनी रचना में नारी की विवशता को भली-भांति उकेरा है। फरीद खान व बृजराज सिंह ने अपनी कविताओं में आदिकाल से अब तक नारी पर पुरुषों द्वारा किये जाते पक्षपात व अत्याचारों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। कमल कुमार ने अपनी कविता में दर्शाया है कि एक छोटी बालिका बचपन में कैसे स्वर्णिम स्वप्नों का महल संजोती है? जब युवावस्था में उसके सपनों का महल ध्वस्त हो जाता है तो वह संघर्ष व आन्दोलन का मार्ग पकड़ लेती है। रमेशचन्द्र पंत की रचना में बेटी की सुरक्षा को लेकर माता-पिता की चिन्ता को उकेरा गया है। सम्पादकीय अच्छा है, इसमें नारी के प्रति होते अत्याचारों के विरुद्ध जनजागृति की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। लेख, कहानियाँ अच्छे हैं किन्तु ऐसे लेखों की भी आवश्यकता है, जो सीधे नारी की घर-गृहस्थी, स्वास्थ्य व सौन्दर्य से जुड़े हों। कुशल संपादन हेतु संपादक मण्डल बधाई का पात्र है। लेखकों के पते व फोन नम्बर भी दिये जाने चाहिए।
डॉ. चन्द्राणीराव इंगले, इंदिरानगर, झाँसी
(Letters to Uttara Mahila Patrika April-June 2019)

उत्तरा महिला पत्रिका का अंक 114 (जनवरी-मार्च 2019) मिला। सावित्री बिष्ट की स्वनिर्भरता वाला साक्षात्कार शेष महिला वर्ग के लिए अनुकरणीय आलेख है। ‘हम तो सबके भले-बुरे में लगने वाले ठैरे…/ लड़ती रहूंगी…/ कहीं लक्ष्मी आश्रम कौसानी की राधा भट्ट की आत्मकथा क्रमश: देकर सही किया है। वे आज भी गाँधीवादी रचनात्मक यात्रा में सक्रिय हैं, ईजा ने जैसा सुनाया-पीढ़ियों पूर्व के उत्तराखण्डी परिवेश में महिलाओं की दयनीय स्थिति के ऊपर सही बयाँ करने वाली है। हमारी दुनियाँ में विश्व के अलग-अलग देशों की महिलाओं की उपलब्धियों से परिचय कराया जाना ज्ञानवद्र्धक भी है और प्रेरणात्मक भी। पहाड़ी रीति-रिवाजों में विवाहिताओं का ससुराल से मायके आना व वापसी में कलेवा कंडू’ विशिष्टताओं भरा आलेख लगा। गढ़वाल में इसे ‘दूण-कंडी’ यानी एक मन आटा/चावल या अनाज को दूण और साथ में अरसे-लड्डू अथवा सुवाले-पूरी की बड़ी टोकरी को कंडी/कंडू कहा जाता है। इस अंक में आवरण पृष्ठों की दोनों कविताएँ अच्छी लगीं- रेखा चमोली की  ‘हत्या से ज्यादा’ और ‘छावनी’ देवेन्द्र नैथानी की। उत्तरा के अंकों में अब महज पर्वतीय अंचल की सीमितता न रही, बल्कि राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के प्रति जागरूकता का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, यह संतोष देता है। पत्रिका व उत्तरा परिवार के प्रति शुभकामनाएँ। सुशील बुड़ाकोटी ‘शैलांचली’, मानसा, पंजाब।
(Letters to Uttara Mahila Patrika April-June 2019)

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