मैं माँ नहीं हूँ, और यह मुश्किल है- एफ्रैट लिवनी

अनुवाद: स्वाति मेलकानी

अमेरिकी लेखिका एफ्रैट लिवनी का यह लेख मदर्स डे 2019 पर QUARTZ में प्रकाशित हुआ था। इस लेख से पता चलता है कि आज भी अमेरिकी समाज में माँ होना एक मूल्य की तरह स्थापित है तथा माँ न हो पाने की स्थिति में औरतों को कितनी अवमानना झेलनी पड़ती है।
माँ महान होती है। मेरी भी एक बेमिसाल माँ है। उन्होंने मुझे बताया कि एक बच्चे को बड़ा करना किसी कलाकृति को सँवारने जैसा है। इसलिये मैंने पहली बार स्वयं अपने बच्चों की कामना की। हालांकि जब यह प्राकृतिक रूप से नहीं हुआ तो इस बारे में परेशान होने के स्थान पर मैंने जीवन के इस चमत्कार को डॉक्टरों या बच्चा गोद दिलाने वाली संस्थाओं के बजाए ईश्वर के भरोसे छोड़ दिया। यद्यपि इस बारे में कई बार मन पक्का कर लेने के बावजूद  मैं कभी भी पूरे संकल्प से इसके लिये तैयार नहीं हो पाई।
हर स्त्री में माँ बनने की तीव्र इच्छा का होना अपेक्षित है और ऐसा न हो पाने की स्थिति में समाज में उसका स्थान न्यूनतम स्तर पर पहुँचा दिया जाता है। माँ बनने के लिये कुछ भी कर गुजरने की प्रचलित धारणा ने मेरे भीतर के प्रतिरोध व संदेह को और बढ़ा दिया क्योंकि इसका एकमात्र आशय यही था कि अन्य किसी भी तरह का जीवन मूल्यहीन है और ऐसा सोच पाना मेरे लिये सर्वथा अप्रिय और संदिग्ध था। ऐसी कोई भी बात स्पष्ट रूप से मेरे सिद्धान्तों एवं महिलावादी सोच के विपरीत थी।
(Mother is Great)
समाज में यह स्थापित कर दिया गया है कि माँ बनने के लिये एक औरत कुछ भी कर सकती है। माँ बनने में आ रही कठिनाई की बात को अधिकतर छिपाया जाता है परन्तु इसकी जरा-सी झलक पाते ही लोग तुरन्त आईवीएफ करवाने की सलाह दे डालते हैं। यह सलाह इतनी सरलता से दी जाती है जैसे कि आईवीएफ एक सामान्य प्रक्रिया हो और इसमें बच्चे पैदा हो जाने की पूरी गारंटी हो। परन्तु अमेरिका जैसे देश में आईवीएफ सिर्फ महंगा, लम्बा और कई बीमारियों को जन्म देने वाला है बल्कि अधिकतर मामलों में असफल साबित होता है।
एक सुखद अंत की संभावना बढ़ती उम्र के साथ घटती जाती है। इसीलिये 34 से ऊपर  की कई महिलाएँ तेजी से इस विकल्प को अपना रही हैं। कुछ मामलों में इसके लिये राज्य द्वारा वित्तीय सहायता भी दी जाती है। बच्चा गोद लेना भी एक बेहतर विकल्प प्रतीत होता है परन्तु इसकी अपनी सीमाएँ हैं। यह तरीका उन लोगों के लिए अधिक कारगर है जो अपने दोस्तों से अपने उपयुक्त माता-पिता होने के लिये सिफारिशी पत्र प्राप्त करने से परहेज नहीं करते तथा सरकारी व निजी एजेन्सियों के बार-बार निरीक्षण करने के बावजूद लगातार प्रतीक्षा, प्रार्थना और कीमत अदा करते रहते हैं।
भिन्न जाति या नस्लीय मूल के बच्चे को गोद लेने पर हमें कई प्रकार के विवादों तथा पहचान की राजनीति से भी गुजरना पड़ सकता है। क्रमिक अन्यायों की बड़ी कड़ी में अमेरिका में अल्पसंख्यक बच्चों के उनके घर से निष्कासन का पूरा इतिहास है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गोद लेने में भी कई तरह की दिक्कतें आ सकती हैं। इन दोनों ही पद्धतियों की नैतिक स्तर पर आलोचना होती है तथा इसे उपनिवेशवादी मानसिकता का ही एक विस्तार माना जाता है। इस तरह का एक मामला तब सामने आया जब मैडोना ने मालावी से एक बच्चा गोद लेना चाहा तथा व्यापक विरोध को जन्म दिया।
यदि हम तमाम आलोचनाओं के बावजूद एक अनाथ बच्चे को प्रेम देने के फैसले पर अडिग रहें तो भी हमें उस बच्चे की अपनी पहचान खो जाने के उन खतरों को संज्ञान में लेना होगा जो कि एक जाति या एक नस्ल के बच्चे को दूसरे जातीय उद्भव के माता-पिता द्वारा गोद लिये जाने पर उत्पन्न होते हैं। पहचान खो जाने से उत्पन्न होने वाला यह विवाद कुछ जटिल प्रश्नों को उठाता है।
(Mother is Great)
वास्तव में आई.वी.एफ तथा गोद लेने की प्रक्रिया बेहद लम्बी और कष्टकारी है। इसी प्रकार की बातें अमेरिकन जरनल एस.टी.इ.एम. में उन आठ महिलाओं द्वारा लिखे आलेख में उठाई गई थीं, जिन्हें सन्तान प्राप्ति के लिए संघर्ष के दौरान शर्म, अपमान तथा गोपनीयता से गुजरना पड़ा। अत: मुझे यह दोनों ही विकल्प उचित नहीं लगे। मैं जितना इनके विषय में सोचती उतना ही किसी निर्णय से दूर होती जाती।
नि: सन्तान या सन्तान मुक्त?
कुछ महिलाएँ स्वयं को सहर्ष सन्तानमुक्त घोषित करती हैं। वल्चर अखबार को दिये एक साक्षात्कार में अभिनेत्री अजेलिका ह्यूस्टन ने कहा कि वह कभी स्वयं की एक बच्चे की देखभाल करती महिला के रूप में कल्पना नहीं कर पाती। एक महिला का सर्वोत्तम उपयोग जीवनोत्पत्ति के लिए आवश्यक पात्र के रूप में ही हो सकता है और समाज द्वारा स्थापित इस मान्यता के विरुद्ध लिये गये किसी भी निर्णय को दोषपूर्ण और अस्वीकार्य मान लिया जाता है। बच्चा न चाहने वाली महिलाओं की एक स्वार्थी छवि बना दी जाती है। यदि कोई महिला सीधे तौर पर सन्तानमुक्त रहने की बात बोल भी दे तो उसे अपने बचाव में कुछ न कुछ जोड़ना पड़ता है जैसे कि उसे अपने भतीजे-भतीजी से बहुत प्यार है या उसे बच्चों के साथ समय बिताना पसंद है आदि-आदि।
संतानमुक्त महिलाएँ नि:सन्तान महिलाओं जितनी अवसादग्रस्त या निराशा फैलाने वाली नजर नहीं आतीं। प्राचीन समय से ही नि:सन्तान महिलाओं को ‘बेचारी’ माना जाता रहा है। इस प्रकार से ‘बाँझ’ कहलाये जाने वाली महिला परिवार और मित्रों के बीच जीवन की सहज गति में एक अवरोध के समान होती है और उसे किसी सार्वजनिक समारोह में सदैव एक नकली मुस्कान धारण करने की सलाह दी जाती है ताकि उसका बाँझ होना किसी भी अवसर की खुशियों को नजर न लगा पाये।
अपने परिवार के साथ-साथ छुट्टियाँ बिताते हुए मैं कई बार इस तरह के होटलों में ठहरी हूँ, जो बच्चों और उनके माता-पिता से भरे हुए थे। वैसे माहौल में मुझे अपने बहिर्मुखी और रंगीन मिजाज होने का नाटक भी करना पड़ा। क्योंकि कोई भी एक नीरस और ऊबाई व्यक्ति के साथ छुट्टियाँ बिताना पसंद नहीं करता।
(Mother is Great)
अक्सर हमारे समाज में सृजन के इस दार्शनिक प्रश्न पर बहुत अधिक चर्चा नहीं होती। मैं हमेशा अपने खुद के बच्चे पैदा करना चाहती थी पर मेरे आसपास के लोगों की मान्यता के विपरीत मैंने किसी भी कीमत पर संतान प्राप्ति की प्रतिज्ञा नहीं की थी। मेरे करीबी लोगों के अति आग्रह ने मुझे संशय की स्थिति में डाल दिया। रात-दिन कलम चलाने के बावजूद कोई भी मेरे लेखक बन पाने को लेकर आश्वस्त नहीं था। जबकि माँ बनना मेरी अंतिम परिणति मान लिया गया था।
मेरे लिए यह दुखद अहसास था कि मेरा समाज मातृत्व को मेरे जीवन के एकमात्र लक्ष्य के रूप में स्थापित करना चाहता है तथा ऐसा न कर पाने की स्थिति में मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व निरर्थक हो जायेगा। (जबकि एक बड़े अर्थ में हर जीवन की अंतिम परिणति निरर्थक हो जाना ही है) मेरे दोस्त, परिवार, डॉक्टर, नर्स तथा सलाहकार सब यही बताते प्रतीत होते थे कि एक महिला की पूर्णता का मातृत्व के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है। मातृत्व मेरे लिए एक जीवित होने या न होने के बीच की स्थिति बन गई थी। मुझे कई पक्षों द्वारा प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से यह चेतावनी दी गई थी कि यदि मैंने इस हेतु बेहतर प्रयास नहीं किये तो मेरा जीवन एक ऐसी भूली हुई कहानी बनकर रह जायेगा जिसे दोबारा शुरू करने के लिए कोई छोर शेष न हो नि:सन्देह अब मुझे लगने लगा कि यह सब गलत है। क्या जीवन का अन्य कोई अभिप्राय नहीं हो सकता। यदि पूरे मनोयोग से चाहने पर भी मनुष्य अपनी मनचाही वस्तु को प्राप्त करने में असफल रह जाये तो क्या वह किसी भी खुशी का हकदार नहीं रह जाता।
(Mother is Great)
मुझे हमेशा लगता था कि एक नन्हे मानव का निर्माण बहुत सुन्दर कृत्य है। यह निश्चय ही स्वयं मेरे और मेरे सच्चे प्रेम की प्रतिकृति बनता। यह एक ऐसी गुड़िया होती, जिसे हम अपना कह पाते। हम दोनों ही इस स्वाभाविक घटना के लिए तैयार थे परन्तु जब यह सहजता से नहीं हुआ तो इसके लिए आवश्यक प्रयासों के बारे में हम दोनों ही स्पष्ट नहीं थे। परन्तु एक महिला होने के नाते इस बारे में सिर्फ मैं ही रोये जा रही थी। सारा तिरस्कार और नसीहतें सिर्फ मेरे हिस्से थीं जबकि मेरा पति बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के भी सम्पूर्ण था। उसे किसी गुड़िया या गुड्डे की जरूरत नहीं थी, कम से कम दूसरों की नजर में तो हरगिज नहीं। अन्तत: कुछ कर गुजरने की सारी जिम्मेदारी मेरे सर पर आ गई। जबकि वह मुझे विनम्रता से यह बताता रहा कि मुझे अपने शरीर, समय और जीवन के साथ क्या करना चाहिए। पर जिस समाज में मुझसे एक नया मानव जोड़ने की अपेक्षा की जाती है, उसमें मेरे बजाय मेरे पति को बहुत कम प्रश्नों से जूझना पड़ता था, जो कि मेरी नजर में समाज का बहुत बुरा पक्ष था। मैं और मेरा पति दोनों कई बार उस पारंपरिक ज्ञान पर प्रश्न चिह्न लगाते थे, जो कहता है कि हर चीज अन्तत: फलदायी होती है। हम दोनों में से कोई इस घिसी-पिटी राय से सन्तुष्ट नहीं था कि बच्चा पैदा करना अपनी शारीरिक जटिलताओं के भी ऊपर है। परन्तु सिर्फ मुझे ही एक निर्णय तक पहुँचने के तनाव को झेलना पड़ता था।
मुझे हमेशा लगता था कि हर माता-पिता के पास अपने बच्चों को देने के लिए सदैव यह उत्तर तैयार रहना चाहिए कि वे अपने बच्चों को इस दुनिया में क्यों लेकर आये? मैं जन्म विरुद्ध नहीं हूँ पर मैं डेविड बेनेटर जैसे उन दार्शनिकों से भी सहमत हूँ, जो जन्म लेने के उद्देश्य को लेकर माता-पिता को कठघरे में खड़ा करते हैं।
ऐसा नहीं है कि इस जीवन में खुशी के स्रोतों का अभाव है पर कई स्तरों पर जीवन क्रूर और तकलीफदेय भी है। इसीलिए जब एक बार मुझे इसके बारे में गम्भीरता से सोचना पड़ा तो मुझे इस दर्दनाक अस्तित्व की मजबूरी के पक्ष में कोई ऐसा उत्तर समझ में नहीं आया जो कि एक बच्चे को समय आने पर दिया जा सके। मैं खुद अब तक यह पूर्णतया तय नहीं कर पाई हूँ कि क्यों और कैसे जीना चाहिए, इसीलिए मैं इस भ्रम के जंजाल में अपने भावी बच्चे को सिर्फ इसी कारण नहीं ले आना चाहती कि सब यही करते आए हैं और यही मेरी भी नियति है।
तो मैंने अपने दोस्तों (जो इस बारे में मुझसे ज्यादा निश्चित थे) से पूछा, ‘‘आप अपने बच्चे को जीवन की पूर्णता और खुशी के बारे में क्या बतायेंगे? उसे हताशा से जूझना किस प्रकार सिखायेंगे?’’ इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बच्चों को अच्छा बनने के लिए प्रेरित करने जैसी कुछ मामूली बातें ही कहीं। जब मैंने उन्हें अच्छा बनने को परिभाषित करने के लिए कहा तो वे इस प्रकार आश्चर्यचकित होकर मुझे देखने लगे, जैसे यह कोई बेहूदा प्रश्न हो। इस प्रकार अपने भ्रम और संशय से ग्रस्त होकर मैंने अपने दोस्तों को दुश्मन बनाने की सीमा रेखा तक पार कर ली। इसके पश्चात् मुझे पता चला कि माँ न बन पाने के कारण मैं अनजाने में एक मूक अल्पसंख्यक वर्ग की सदस्य बन गई हूँ। यह वह वर्ग है जिसे या तो मातृत्व के विषय में विनीत विचार रखने होते हैं अन्यथा उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है।
(Mother is Great)
परन्तु मुझे अभी तक ऐसा कोई उत्तर नहीं मिल पाया था, जिसे वास्तव में उत्तर कहा जा सके। शायद जीवन को किसी व्याख्या की आवश्यकता नहीं है। यह एक ऐसी जैविक जरूरत है, जिससे होकर सभी जमीनी जीव गुजरते हैं। निश्चित रूप से कई लोगों द्वारा मुझे यही उत्तर मिला पर मेरे अपने विचार से ऐसे जवाब तभी दिये जा सकते हैं, जब ‘क्यों’ और ‘कैसे’ जैसे सवाल शुरूआती दौर में ही अवरोध उत्पन्न करने के लिए मौजूद न हों।
वह प्रयोग जिसे अस्तित्व कहते हैं
नि:सन्देह जीवन का अर्थ एकमात्र दुख भोगना ही नहीं है पर आपके द्वारा संसार में लाया गया प्रत्येक बच्चा यहाँ होने की तकलीफों को भोगेगा। यह सब इसी प्रकार चलता आया है और यदि यह सब एक सुनियोजित तरीके से न चले तो यह बात समाज के कई लोगों को चुभने लगती है। निराशा और क्रोध के समक्ष आप बच्चे को यह कैसे बता सकते हैं कि मानव जीवन ईश्वर की एक कृपा है। जीवन की व्यापक अनिश्चितताओं के बीच आप उसे वास्तविकता का प्रतिरोध करके निश्चित परिणाम प्राप्त करने के लिए कैसे कह सकते हैं। अरुचिकर विकल्पों की उपलब्धता के बीच यह प्रश्न मुझे लगातार बेधता रहता है।
यदि जीवन इतना ही सरल है तो इसे वास्तव में किसी व्याख्या की आवश्यकता नहीं। पर मातृत्व के प्रश्नों से संघर्ष करते हुए जो मुझे अनुभव हुआ, वह मेरी परिस्थितियों में जीवन की इस सहजता के विपरीत था। मुझे एक बच्चे की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने कार्य और नौकरी को त्यागने या समायोजित कर लेने के विचार से कोई परहेज नहीं था पर एक बच्चे के लिए प्रयास करते हुए वर्षों तक अपने भाग्य का परीक्षण करते रहने और फिर निरन्तर निराश होते रहने में मुझे कोई समझदारी नजर नहीं आती। यदि मैं इसे एक आसान रास्ता मानकर स्वीकार भी कर लूं तो भी इसका भविष्य मुझे निश्चित तौर पर अनिष्टकारी प्रतीत होता है।
संभव है कि भविष्य में कभी मुझे यह स्वीकारना पड़े कि मैं प्राकृतिक रूप से माँ बन पाने में अक्षम हूँ परन्तु फिर भी मुझे यह सही नहीं लगता कि माँ बनने का मेरा वह सपना जो कि अब तक एक दु:स्वप्न बनता जा रहा है, उसे पूरा करने के लिए मुझे अपनी वर्तमान समझ के अनुसार बनी धारणाओं को पूरी तरह उपेक्षित कर देना चाहिए।
कुछ लोग जीवन पर प्रश्न नहीं उठाते पर मैं नये-नये प्रश्नों से गुजरती रहती हूँ। यदि आप खुद दयनीय हैं तो बच्चों को खुशियाँ कैसे बाँट सकते हैं। जब आप अति गंभीर हैं तो लतीफा कैसे सुना सकते हैं? हम अपने बच्चों को एक अच्छा इंसान बनने की नसीहत कैसे दे सकते हैं जबकि हमें ऐसा होने या बन सकने का रास्ता खुद न पता हो। जब आपके पास स्वयं के लिए बहुत कम उत्तर हैं तो आप अपने बच्चों की सफलता के लिए कैसे आश्वस्त हो सकते हैं?
तभी अचानक मेरा उत्तर मेरे सामने आ गया। किसी अनदेखे अस्पष्ट विकल्प पर कार्य करने के बजाय मैं अपने जीवन के प्रश्नों को स्वयं हल करूंगी शायद तभी जब यह प्रश्न मुझसे सीधे पूछे जायेंगे तो एक घिसा-पिटा, कई बार दोहराया गया उत्तर देने के बजाय मैं उनका सच-सच जवाब दे पाऊंगी। मनुष्य होने की सीमाओं को सीमित करने के बजाय मैं उन्हें विस्तार दूंगी।
(Mother is Great)

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स्रोत: http://qz.com//1617516/