महिला वार्ड पंच चल पड़ी बदलाव की डगर पर

लखन सालवी

इन्होंने घूंघट त्यागा, रूढ़िवादी विचारों को त्यागा, सामाजिक कुरीतियों को छोड़ा, बैठकें कीं, महिलाओं को संगठित किया, शिक्षित हुई, अपने अधिकारों को जाना और आज ग्राम पंचायत में भागीदारी सुनिश्चित कर गाँव के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं, यह सब आसानी से नहीं हुआ। दहलीज लांघी तो समाज के बुजुर्गों ने बंदिशें लगाई, पतियों ने मारपीट की, देवली (देऊ) बाई के पति ने तो कुल्हाड़ी से उसके सिर पर वार कर दिया। आँखों के आगे घूंघट रूपी पर्दा तो पीढ़ियों से पड़ा ही था उनके, जो उजाले की ओर बढ़ने नहीं देता था। पर्दे ने अभिव्यक्ति की आजादी को भी दबाए रखा, पर इन महिलाओं पर जुनून सवार था बदलाव का। वे एक सामाजिक संगठन के सम्पर्क में आईं, शिक्षित हुईं और ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायत की ताकत को समझा। फिर पंचायती राज एवं आरक्षण का लाभ लिया। वे न सिर्फ प्रयासों में सफल रहीं, बल्कि अपनी भागीदारी भी सुनिश्चित की।

उदयपुर से 20-25 किलोमीटर दूर के पई गाँव की आदिवासी समुदाय की पाँच महिलाएँ (देवली बाई, कडौली बाई, चौखी बाई, रोड़ी बाई व सोमुदी बाई) बदलाव के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं। लगभग ढाई दशक पूर्व वे एक सामाजिक संस्था से प्रेरणा लेकर, बंदिशों से आजाद हुईं और चुप्पी तोड़कर घर से बाहर निकलीं। वर्तमान में पाँचों महिलाएँ पई ग्राम पंचायत में वार्ड पंच हैं। देवली बाई तीन बार, काडौली बाई तीन बार, रोड़ी बाई दो बार, चौखी बाई चार बार तथा सेमुदी बाई दो बार वार्ड पंच रह चुकी हैं। कडौली बाई तो पंचायत समिति सदस्य भी चुनी गर्ईं। इन महिलाओं ने अन्य महिलाओं को भी आगे लाने का प्रयास किया। इस बार बेलकी बाई को भी वार्ड पंच का चुनाव लड़वाया। ग्राम पंचायत में इनकी पूर्ण भागीदारी नजर आती है। कोरम में इनका बहुमत है। सभी एक सुर में गाँव के विकास के लिए प्रस्ताव रखती हैं। देवली बाई कहती हैं- गाँवों में पुरुषों की राजनीति थी, पंचायतों में उनका राज था। महिलाएँ कभी पंचायत में पहुँच जाती थीं तो घूंघट तान चुपचाप एक तरफ बैठी रहती थीं। जब हमने पहली बार चुनाव लड़ा तो लोगों ने कहा कि ”क्या कर लेगी ये घाघरे वाली पंचायत में जाकर।” नयाफला गाँव के भैरूलाल का कहना है कि वार्ड पंच महिलाओं का यह ग्रुप सरकार की विकास योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुँचाने में कार्य कर रहा है। ये महिलाएँ ग्राम पंचायत के कार्यों पर निगरानी भी रखती हैं। वे निरक्षर थीं, पर साक्षरता कार्यक्रम से जुड़कर पहले खुद अक्षर लिखना-पढ़ना सीखा और गाँव की महिलाओं को भी पढ़ने के लिए प्रेरित किया। बच्चे-बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया। संघर्ष किया और ज्ञापन दे-देकर आंगनबाड़ियाँ एवं स्कूल खुलवाये। इन्हीं वजहों से क्षेत्र की करीबन 3,000 महिलाएँ इनसे जुड़ी हुई हैं।  इन सभी ने मिलकर शराबबन्दी का महत्वपूर्ण कार्य किया है। वन भूमि अधिकार, सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार जैसे मुद्दों पर पाँचों महिला पंचों ने सक्रिय भूमिका निभाई है। देवली बाई ग्राम पंचायत एवं पंचायत समिति से सूचना के अधिकार के तहत सूचनाएँ लेती रहती हैं। वह कहती है कि सूचना दो, अगर नहीं देते हो तो लिखकर दो कि सूचनाएँ नहीं दे सकता। उसके सवाल सुनकर अधिकारी भी झेंप जाते हैं। वह कहती हैं कि सूचना लेने का हमारा अधिकार है, सूचना देनी ही पड़ेगी। कई बार तो उनके आवेदन लेने से ही इंकार कर दिया गया। दो मर्तबा आवेदन की रसीद नहीं दी। विकास अधिकारी ने तो कह दिया कि सूचना लेकर क्या करोगी? लेकिन देवली बाई की तर्कसंगत बहस एवं जागरूकता के आगे अधिकारियों को झुकना पड़ा और उन्होंने आवेदन लिए तथा सूचनाएँ भी दीं।
Mahila Ward Panch

देवली बाई ने हाल ही में 27 फरवरी को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करके सूचना मांगी है कि ”उदयपुर से सराड़ा तक कितने लोगों की जमीन अधिग्रहित की गई है?” वह बताती है कि 103 पात्र लोगों को पट्टे दिलवाये हैं, लगभग 400 आवेदनों पर कार्यवाही चल रही है। पेंशन योजनाओं के लाभ दिलवाने में इन्होंने सराहनीय कार्य किये हैं। पात्र महिलाओं के आवेदन करवाए। 2,000 मजदूरों को मनरेगा के तहत काम नहीं मिल रहा था। इन्होंने बैठक की और जिला कलक्टर को अवगत कराया। संघर्ष की बदौलत उन्हें रोजगार मिला। सरकार के ”प्रशासन गाँव के संग अभियान” की तरफदारी करते हुए कडौली बाई कहती है- ”इस अभियान के तहत आयोजित शिविरों में लोगों के प्रशासन से संबंधित अधिक से अधिक कार्य करवाए जा सकते हैं।” देवली बाई ने बताया कि हमने इस कार्यक्रम के तहत लोगों की राशनकार्ड, जॉब कार्ड, पेंशन, प्रमाण पत्र, बिजली कनेक्शन, जमीन से संबंधित समस्याओं के समाधान करवाए हैं।

गाँव में माध्यमिक विद्यालय में अध्यापक समय पर नहीं आते थे तथा पूरे समय तक विद्यालय में नहीं रुकते थे। देवली बाई को गाँव की महिलाओं से जब यह जानकारी मिली तो शिविर में इस मुद्दे को उठाया। शिविर प्रभारी ने उस अध्यापक को हटाकर दूसरे अध्यापक की नियुक्ति करवा दी। उसके बाद से विद्यालय समय पर खुलता है और अध्यापक भी पूरे समय तक विद्यालय में रुकता है। इसके अलावा, वह आंगनबाड़ी केन्द्रों ‎में पोषाहार एवं विद्यालयों में  मिड-डे मील का अवलोकन करती हैं। यही नहीं, इन महिला पंचों ने साझे प्रयास कर पिपलवास, कुम्हरिया खेड़ा, सूखा आम्बा, निचलाफल, पाबा, किम्बरी में प्राथमिक विद्यालय भी खुलवाए हैं। विद्यालय खुलवाने के लिए बार-बार ज्ञापन दिए और जिलाधिकारियों से पैरवी की। ग्राम पंचायत के वार्ड नं. 8 में विद्यालय भवन नहीं हैं। अध्यापक बच्चों को पेड़ के नीचे बैठाकर पढ़ाता है। वहीं इस वार्ड में 20 से अधिक बच्चे हैं लेकिन आंगनबाड़ी केन्द्रों नहीं हैं। आजकल पाँचों महिला पंच विद्यालय भवन एवं आंगनवाड़ी केन्द्रों के लिए भवन की मांग कर रही हैं। गत 14 फरवरी को उन्होंने जिला कलक्टर को ज्ञापन देकर भवन-निर्माण की मांग की है। भ्रष्टाचार की घोर विरोधी हैं ये पाँचों पंच। इन्होंने सूचना के अधिकार का उपयोग कर पई ग्राम पंचायत द्वारा किए गए फर्जीवाड़े को उजागर किया। फर्जीवाड़े की जानकारी मिलने के बाद इन्होंने सामाजिक अंकेक्षण करवाने का प्रस्ताव रखा। सामाजिक अंकेक्षण किया और पाया गया कि ग्राम पंचायत द्वारा नाली निर्माण नहीं करवाया गया, जबकि नाली निर्माण के नाम फर्जी बिल वाउचर का इस्तेमाल कर लाखों रुपये का गबन कर दिया गया। कडौली बाई कहती हैं कि जब हम पहली बार वार्ड पंच बनीं तो लोग कहते थे कि यह क्या कर लेगी घाघरा वाली। लेकिन, हमने जो काम अब तक किए हैं, उन्हें देखकर अब वही लोग हमें निर्विरोध वार्ड पंच बनाने लगे हैं। देवली बाई 3 बार वार्ड पंच रह चुकी हैं। इस बार उसे निर्विरोध वार्ड पंच बनाया गया है। रोडी बाई का कहना है कि हम किसी से नहीं रूकने वाली हैं। हम ग्राम पंचायत में न तो कुछ गलत करती हैं और न ही गलत होने देती हैं।

इन महिलाओं को यह डगर सामाजिक संगठन ‘आस्था’ के कार्यकत्र्ताओं ने कोई 25 वर्ष पहले दिखाई थी। यह सामाजिक संगठन नहीं होता तो इन महिलाओं के जीवन में परिवर्तन शायद ही संभव हो पाता। संस्था के लोगों ने इन्हें इनके अधिकारों की जानकारी दी, पंचायती राज की जानकारी दी और साथ दिया। आज ये महिलाएँ पंच बनकर ग्राम का विकास करवा रही हैं। इन महिला वार्ड पंचों ने एक मिसाल कायम की है।
Mahila Ward Panch

साभार: पंचायती राज अपडेट, जून 2012
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